By- VARUN SINGH GAUTAM
कवित्त भाग – सात
तेरे शरीरों की चुम्बन
पाने की तड़प
सिर्फ
शरीर में ही है
कहां बिखेरे !
कहां उड़ेले !
बस विपरीत नफ़्स
चाहत पाने को।
अकेला तेरी कल्पनाओं में
शरीर पाने को
क्षणिक की पर्याय
पर्याप्त नहीं है
तुझे पाने को
स्वं को उड़ेलता
चित्रपट देख अनंग-क्रीड़ा के
आंगन में कवित्त बन
तेरी स्मरण में
भींग जाता हूँ….।
फिर कहर शांत हो
निद्रा को पाता हूँ।
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