By- VARUN SINGH GAUTAM
विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर अति सुन्दर सृजित कविताएँ
मैं तड़प रही अपनी काया से ,
मेरी कराहना क्यों नहीं सुन रहें ?
मैं अधोगति के कगारे हो रही ,
मैं और कोई नहीं , पर्यावरण हूँ ।
मत काटो मेरे तरुवर छाया को ,
क्या बिगाड़ा है तेरा मनुज ?
जीने क्यों नहीं देते मुझे ?
मेरी अपरिहार्ता तू क्या जानों ?
जीवों का आस है जहाँ ।
हयात इन्तकाल क्यों कर रहें ?
समभार का आत्मविस्मृत द्रुम ,
जियो और जीने दो सदा जहाँ ।
मत करो पर्यावरण का उपहास
क्यों कर रहें हो खिलवाड़ ?
रक्तस्त्राव का गात प्रपात
अब न करो मेरी दाह संस्कार
हरीतिमा ध्वस्त , हो रहा विकराल
पानी की है अकुलाहट अब जहाँ
किल्लत होगी ऑक्सीजन की तब
दुनिया का होगा हयात इन्तकाल
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