By- VARUN SINGH GAUTAM
गर्मी, गर्मी कितनी गर्मी
इतना तू क्यों बरसती गर्मी!
पानी भी, उफ़
तुरंत गरम हो जाता
ठंड – ठंड पीने के लिए
जी बहुत ललचाता…
पसीने से तरबतर
शरीर से भी
दुर्गन्ध आने लगती
खूब जोर बरस…
मिलता सुकून बस
सुबह और शाम
हमेशा रहता बस
कहर ही कहर बस कहर
बिजली के गुल होने से
हो जाते हम परेशान
ऊपर – ऊपर चलता पंखा
घूम घनाघन घूम…
आइसक्रीम का ठेला
निहारता सड़क के पार
नहीं दिखता तो फिर
हो जाता मन उदास
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