By- VARUN SINGH GAUTAM
बलाहक ऊर्मि का दहाड़ देखो
रिमझिम – रिमझिम मर्कट दामिनी
देखो कैसे बुलबुलें भी उर्दङ्ग मचाती ?
वों भी क्षणिक उसी में असि होती
क्लेश विरह तनु अपने आँगन से
क्या विशिखासन विशिख टङ्कार ?
कोई कुम्भीपाक कोई विहिश्त में विलीन
क्या दैव प्रसू , तड़पन सुनें कौन ?
बूँद – बूँद खनक प्रतीर दृग धोएँ
इस उद्यान इन्दु अर्क पथ में विलीन
रैन मयूक वृन्द निलय नतशिर
हाहाकार में मचली झाँझि मृदङ्ग
सिन्धु गिरी मही तुण्ड में विस्मृत
तरुवर नृत्य ध्वनि में झङ्कृत
त्वरित घनीभूत क्लेश वृतान्त उगलती
क्यों वेदना झङ्कृत बगिया विस्मित ?
मैं भी आहत अहनिका खल प्रचण्ड
कटाक्ष तड़ित् शोणित वह्नि में
कौतूहल इन्तकाल द्विजिह्व में प्रच्छन्न
त्रास – सी अली हूँ उद्भिज तड़पन
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
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