By- VARUN SINGH GAUTAM
इंसान की मुसीबत क्या है ?
धन – बीमारी – मृत्यु
सम्पदा के दोहन से
अपनी पेटी क्यों भर रहें लोग ?
लोग धन के लिए तड़प रहें
मनुष्य धन का किङ्कर क्यों ?
आखिर मनुष्य ही ऐसा क्यों ?
मनुष्य की मर्यादा खत्म क्या !
क्या इंसान मनुज हैं या दनुज
अपहरण – लूट – हत्या
मनुष्य भ्रष्ट क्यों हो रहें ?
मनुष्य , मनुष्य के दुश्मन क्यों ?
क्या मनुष्य जल्लादों हैं ?
क्या यहीं मानव सभ्यता है !
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
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