By- VARUN SINGH GAUTAM
तितली रानी घूमड़ – घूमड़कर
कहाँ जा रही कौन जानें ?
कभी इधर गुम होती कभी उधर
न जानें कहाँ वों चली रङ्ग मनाने !
कल – कल कलित पुष्प आँगन में
पन्थ – पन्थ पङ्ख क्यों बिखेरती ?
छोटी – छोटी रङ्ग – बिरङ्गी शहजादी
सौन्दर्य – सी क्यारी रङ्ग फैलाएँ
बढ़े चलों उस गुञ्जित किरणों में
मधुरस मधुमय कलियों में त्यागी
मनचला प्याला उन्माद लिए सब
महफ़िल शृङ्गार करती किनको अलङ्गित !
यम भी साक़ी मतवाला हूँ बन चला
राम नाम सत्य की गूँज नहीं
ध्वनि प्रतिबिम्ब जयघोष में विलीन
पथिक पन्थ में है अँधरों की ज्वाला
उड़ – उड़ छायी क्षितिज किरणों में
बढ़ चला अनुपम गिरी मधु सिन्धु
असीम नीहार तीर सरसी प्रभा
देवदूत परेवा ईश पैग़ाम भव में
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
SN | NOTES |
1 | IMPORTANT TEST SERIES FOR ALL EXAMS |
2 | LIST OF ALL QUIZZES |
3 | IMPORTANT STATIC GK FOR ALL EXAMS |
4 | INTERESTING FACTS FOR ALL EXAMS |
5 | FREE SUBJECT WISE NOTES FOR ALL EXAM |
TELEGRAM GROUP LINK 2 – CLICK HERE