By- VARUN SINGH GAUTAM
सुबह – सुबह देखो सूरज आया
इसकी कितनी है सुन्दर लालिमा !
नीलगगन सतरङ्गी स्वरूप – सी
वसुन्धरा जीविका की परवरिश है
खेत – खलियान भी है हरे – भरे
सुन्दर – सुन्दर कितने मोहक !
छोटे – छोटे कलित कलियाँ तरुवर
कुसुम मीजान कितने मृदु धरा !
खेचर कलरव कितने अनमोल !
कितने दिलकश पन्थ पङ्ख निराले !
उड़ – उड़के होते भूधर तस्वीर
हौंसले बुलन्दी के भी अभीरु आलम
अर्णव की निर्मल कल – कल तरङ्गित
उस व्योम को करती नित नतशिर
अंतर्ध्वनि – बहिर्ध्वनि में उज्ज्वलित प्राण
सर्वस्व न्योछावर में होती विलीन
निशा निमन्त्रण विधु करती ज्योत्स्ना
क्रान्ति कारुण्य मकरध्वज स्याही
शबनम लिबास कमलनयन धार में
समीर भी अनन्त चञ्चलचित्त सार में
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
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