By- VARUN SINGH GAUTAM
मैं आया सुनसान जगत से
क्या करुणा – सी क्या काया ?
तुम उठें हो इस धरा से
वाम से ही जलती है ज्वाला
बीत चुकी है इस पतझड़ में
मृदु वसन्त की अंतिम छाया
इस कगारे जीवन में सब हम
विचलित मधुकर मतवाला
धू – धू जलती इस तड़पन में
मोह का बलिण्डा प्रज्वलित माया
रख लें तुम कष्ट धैर्य अपना
रहती सदा अखिल निर्जन प्याला
इस खण्डहर – सी ख़ादिम ख़्याति
तिरोहित न्योछावर स्फुर्लिङ्ग क्यारी
तृण समर्पित क्षिति क्षितिज में
अकिञ्चन अगम्य अट्टहास अंगारा
अनवरत आतप उत्तेजित उज्ज्वल
इन्द्रधनुषीय शकुन्त उन्मुक्त कशिश
स्वर्ण – रश्मि स्तब्धता – सी साखि
विह्वल व्याधि निरीह निशा गर्वित
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
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