By- VARUN SINGH GAUTAM
उड़ जा धूल उस महिधर में
यहाँ धारा धार में द्वेष भरा
मत रूक ढ़ाल तरणी को जगा
प्रवार वसन्त में गरल व्याल
पथ – पथ प्रतिशोध क्यों ज्वाला ?
अवशी जीवन अवृत्ति विषाद
छीन लिया तिनका नहीं है कुन्तल
ओझल भी नहीं जीवन चषक
दिलकशी भरी कुच कीस हरण
लूट गया हूँ सदेह सीकड़ में
तीहा नहीं शाण उत्पीड़न में पड़ा
पीर आक्षेपी लौ कुढ़न कराह
तन्हा मैं बिखरा रणभेरी समर में
मुदित मशगूल रूपहली आभा
व्याधि रक्तिम मन्दाग्नि अंगार
प्रखर नूर मञ्ज़िल नीड़ नहीं विस्मित
दुकूल भुजङ्ग तृण तिमिर अलङ्गित
क्षितिज में मैं विलीन अनूप के
गुञ्जित विरक्त कलसी इत्मीनान
इन्द्रधनुष उषा अश्रु अक्षुण्ण
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
SN | NOTES |
1 | IMPORTANT TEST SERIES FOR ALL EXAMS |
2 | LIST OF ALL QUIZZES |
3 | IMPORTANT STATIC GK FOR ALL EXAMS |
4 | INTERESTING FACTS FOR ALL EXAMS |
5 | FREE SUBJECT WISE NOTES FOR ALL EXAM |
TELEGRAM GROUP LINK 2 – CLICK HERE