By- VARUN SINGH GAUTAM
टूट पड़ा पलकों से आँसू बनके
मत पूछ मेरी हालात इस गर्दिशों में
बिखर गया हूँ पङ्खुरी के पङ्ख से
मैं साँझ बन चला इस दीवानें के
अजनबी राही में गस्ती , ठहराव कहाँ मुझे ?
व्यथा भरी शहर में मैं भी फँस गया
क्यों काँटे भर पड़ी इस तन में ?
इस शोले वेदन में , क्यों मैं बावला !
दुआ दस्तूर के भी आलम नहीं
लहू धार भी बन चला पसीनो से
किस्मत मेरी स्वप्निल में कफन
धराशायी एतबार मेरी दहलीज़ के
नफरत रञ्ज के घूँट – घूँट में
अविचल रहा दुर्दान्त अहर्निश
मैं तड़पन ग्लानि में पतवार बना
निर्मम चन्द्रहास शमशीर धार बनें हम
मञ्ज़िल की राहों में धूमिल आँसू
भटक गया मैं , ख़्यालों से भी हूँ गुमनाम
होश में नहीं असमञ्जस हिय क्षिति से
विलीन में अपरिचित भव छोड़ चला
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
SN | NOTES |
1 | IMPORTANT TEST SERIES FOR ALL EXAMS |
2 | LIST OF ALL QUIZZES |
3 | IMPORTANT STATIC GK FOR ALL EXAMS |
4 | INTERESTING FACTS FOR ALL EXAMS |
5 | FREE SUBJECT WISE NOTES FOR ALL EXAM |
TELEGRAM GROUP LINK 2 – CLICK HERE