By- VARUN SINGH GAUTAM
कवित्त भाग – पांच
मैं प्रेमी तो था, पर अब नहीं
क्योंकि आसक्ति है ही नहीं
झुरियां तो खिल उठीं है
ज्वाला सी बवंडर बनके
शरीर भी मेरी फूट पड़ी
दशहत और विकराल होके
भूल गए हर कोई ये जमीं पे
संगिनी भी नहीं, देह भी नहीं
कहां जाऊं जो है खीझाने को
तड़पाने को है, हनन को है
अन्तर्मन तो दंश झेल रही है
ग़ज़ल नज़्म से नहीं सहम पाती
गीत अब किसके लिए लिखूं
मैं नहीं तो कौन और सही ?
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