By- VARUN SINGH GAUTAM
कवित्त भाग – चार
लोग छुट जाते
समय के मध्यांतर से
विरह की अग्नि को
क्या कहूं ?
बहुत ही ज्यादा तड़पाती है
पता है
सांत्वना देने के बजाय
लोग सिर्फ पूछते हैं
तेरी जात क्या है ?
या तुम किस ख़ून से
संबंध रखते हों
ग़र जात न मिले
पता है क्या बोलते हैं !
तुम हमारे हो कौन ?
कैसी विडम्बना है
इस फिल्म भरी सीन में
कितने किरदार है
बनावटी के
परन्तु यथार्थ कुछ और है
अजीब दास्तां है न
इस नग्न भरी फ़िल्माया में
सिर्फ मदहोश करती
उत्साह नमक मात्र भी नहीं
सींच – सींच रक्त भी
पृथ्वी अस्थि बंजर हो रहे…
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