भारत (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM
मैं भी हूं भारत के नागरिक
आप आश्चर्य होंगे, किन्तु हूं
भूखें नंगे गरीब गंदे में फैले इंसान
मेरे मां बाप भी हैं, दो बच्चें भी
बीमारी, आंशू की रक्त बहा रहे
जो कचरों के ढ़ेरों में चुनने गए हैं
अपनी भविष्य या सुनहरी स्वप्न
नहीं! , अपितु फेंके हुए प्लास्टिक,
सड़ी हुई टिने, पॉलीथीन, कार्टून
{ ये वस्तुएं कीमती नहीं है }
जिसे बेचके मेरे प्यारे निराले बच्चे
खरीदेंगे एक रूपया से तिरंगा
[ अब दुकानदार एक रूपए में नहीं
देता तिरंगा, देता है दस-बीस रूपया में ]
किन्तु बच्चें के उत्साह उमंग उल्लास लिए
बेचेंगे हम, मां-बाप रक्त, आंत, देह, पसीना
बच्चें के पेट भरके हमलोग भूखें रहके
दस या महिना भर परन्तु दिलाएंगे
हमलोग बीस-बीस रूपया का तिरंगा
मेरे प्यारे न्यारे बच्चें भी फहराएंगे तिरंगा
गाएंगे राष्टगान जन गण मन जय हे
वसुधैव कटुम्बकम् समर्पण बलिदानी लिए
संस्कृतियों और समृद्ध विरासत की भूमि लिए
आर्यावर्त जम्बूद्वीप गर्वपूर्ण इतिवृत्त लिए
पढ़ाएंगे हम भी बच्चें को लिवर किड़नी बेचके
हम भी बनाएंगे एक दिवस बच्चें को कलक्टर अफसर