देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM
देह या मानव
ये प्रिय तुम्हारे हृदय के भूगोल में
खगोलीय कांति है
जो मुझे बार – बार आकर्षित कर रही है
या फिर तुम्हारे देह के भूगोल में
आखिर कौन इतिहास है!
जो बार – बार तुम्हें और ज्यादा ही सौन्दर्य बनाती है
है प्रिय सच जान लो मैं अपने प्रीत लिए
तुम्हें बार – बार आवाहन कर रहा हूं
आज नहीं तो कल
तुम्हारे हृदय और देह मेरे अधिकार में होगा
तुम होगी पास, तुम्हारा प्रिय परिवार
सभी अपने होंगे जैसे जन्म देते बच्चे की मां
फिर रचेंगे सम्पूर्ण साहित्य और शास्त्र
रोज कविता बनेगी, गढ़ेगी एक कहानी
बस तुम्हारा होगा सारा संसाधन
बस मैं और तुम
और कोई नहीं अस्तित्व में
मैं मनु तू शतरूपा
नयी दुनिया रचेंगे बनेंगे नया ब्रह्माण्ड
ये सारा आवाहन करेंगे
आकाश पृथ्वी पाताल सभी कौतूहल करेंगे
देखेंगे हम दोनों को एक होने को
बनेंगे नया मानव जो सिर्फ मानव हो
कोई राक्षस नहीं।
लेखक :-
Varun Singh Gautam