VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

शीर्षक:- बरखा आई घूम – घूम के
बरखा आई बूँद – बूँद के करते मृदङ्ग
बढ़ – बढ़ आँगन के चढ़ते – उतरते बहिरङ्ग
सङ्गिनी चली बयार की लीन्ही सतरङ्ग
जल – थल मिलन मिली छूअन हर्षित अनुषङ्ग
ओढ़ घूँघट के दामिनी स्वर में झूम – झूम
आती क्षितिज से घूमड़ – घूमड़ घूम – घूम
घोर – घनघोर पुलकित आशुग ठुम – ठुमके
स्पन्दन क्रन्दन में सङ्गीत रश्मि नूपुर – सी रुनझून
निशा बिछाती विभोर विरहनी सावन
गुलशनें निवृत्ति निझरि – सी स्वर आप्लावन
पिक मीन सिन्धू वात तड़ित् सङ्ग करावन
हरीतिमा नभचर जीवन सृजन कितने मनभावन !
कर जोर विनती तुङ्ग धरा करती आलिङ्गन
इन्द्रधनुषीय छटाएँ छलकाएँ तरणि आँगन
कृष्ण राधा – सखियाँ सङ्ग करती प्रेमालिङ्गन
हो धरा प्रतिपल प्रेमिल धोएँ ध्वनि लिङ्गन
हुँ – हुँ स्वर कलित भव में चिन्मय हुँकार
तड़ित् ऊर्मि वारिद अँगन में ऊर्ध्वङ्ग धुङ्कार
पन्थ – पन्थ पन्थी आहिश्वर रव ओङ्कार
मण्डूक ध्वनि नतशिर झमाझम बरखा झमङ्कार पर सो जाता हूँ!
शीर्षक :- मैं हूँ आर्यावर्त
हम नभ के है रश्मि प्रभा चल
उड़ता गर्दिशो मे पङ्क्ति प्रतीर के अचल
केतन लें चलूँ मैं मातृ – भूमि के वसन्त
अरुण मृगाङ्क जहाँ निर्मल करती नयन
निर्वाण आलिङ्गन वतन के हो जहाँ तन
शङ्खनाद मेरी महासमर के हुँकार के हो भव
अर्जुन – कर्ण के प्रतीर जहाँ कृष्ण के जहाँ पन्थ
अभिमन्यु हूँ चक्रव्यूह के शौर्य ही मेरी दस्तूर
गङ्गा – सिन्धु धार वहाँ अश्रु मैं परिपूर्ण
नगपति हूँ आर्यावर्त के दृग धोएँ पद्चिन्ह
खिला कुसुम कश्मीर के शिखर चला सौगन्ध
स्वछन्द तपोवन तीर का लहूरङ्ग के मलयज
उन्माद बटोरती तस्दीक के गुमनामी पतझड़
मधुमय कलित मन में क्या करूँ मै प्रचण्ड ?
शून्य क्षितिज तड़ित् न जाने हेर कौन रहा ?
तरङ्गिनी तरी सर चला जलप्लावन तरङ्ग
उद्भाषित प्रतिपल का जगा कस्तूरी उरग के
त्वरित प्रच्छन्न वनिता वदन रुचिर उर में
यह द्युति त्रिदिव के इला गिरि समीर सर
नीले – नीले दिव नयन इन्द्रधनुषीय – सी मयूर
शीर्षक :- मेसोपोटामिया सभ्यता
दजला और फरात नदियाँ माँझ
मेसोपोटामिया सभ्यता का इराक
अर्द्धुक सभ्य शिष्ट वृहत साहित्य
अंक खगोल विद्या का प्रसार
सुमेर अक्कद बेबीलोन असीरिया
सुमेरी अक्कदी अरामाइक भाषा
इमारत मूर्ति आभूषण कब्र औजार
मुद्राओं लिखित दस्तावेजों का सार
ओल्ड टेस्टामेण्ट बुक ऑफ जेनेसिस शिमार
पुरखा मेदिनी पन्थी प्राज्ञी यूरोप
उत्तरी सीरिया तुर्की भूमध्यसागरीय प्रदेश
उतनापिष्टिम जलप्लावन आज्ञप्ति
असतत भौगोलिक पूर्वोत्तर इराक
वृक्षाच्छादित गिरिपान्त हरीतिमा मैदान
निर्मल उत्स कान्तार सारङ्ग मेह
काश्त आगाह आजीविका निर्ज्वर साधन
शरत वृष्टि उत अरण्य तृण
परवरिश होती त्रिशोक बाशिन्दा
दजला मुआफिक संवहन विषघ्निका तिय
याम्या मरुखण्ड पुर लिपी प्रादुर्भाव
फरात दजला उर्वर रज लतीफ़
उदीची अंझाझारा प्लावन आप्लावन
ग्राम्य उत्कर्ष शहर उद्भव पराकाष्ठा
समवर्ती हड़प्पा चीन मिस्र सभ्यता संयोग
कांस्य लोह युगेन पुरातात्त्विक काल
सिकन्दर वाया उच्छित्ति सभ्यता
रालिंसन बिहिस्तून आत्त तफ़्तीश
शिलालेख से अध्येय ओहार अध्याहार
आदर्श एकल विवाह वनिता अहमियत
आस्तिक शिक्षित अधिवासी विशिष्टता
कीलाकार लिपिक संहिताबद्ध धारा
वार्का शीर्ष आमदरफ़्त एकछत्र साया
शीर्षक :- कहाँ ओझल ?
आमद पुनः , पुनः कहाँ ओझल
भव दीवा क्षीर तम नीर
पपीहे पिक रीछ भव सार
खोजूँ मैं विरह वेदना तीर
उद्विग्न हिय अरुक्ष कली
आण्विक शून्यता अतल रोध
तुङ्ग अब्दि इन्दु तत्व ओज
आसव प्लावित चित्त निवृति
अँगना अंगना रम्य जोन्ह
अशक्त असक्त अनल अनिल
दीर्घ उद्दीप्त कृति कीर्त्ति
अलि भोर विहग रति कूजन
मरीची मरीचि वल उडु ओज
करील करिल – सा उपरक्त उपरत
आसत्ति आसक्ति अभेद अजिर
विभोर यति यती पुष्कल – सा विरद
तरणि दामन तरणी प्रवाह
आधि आर्त अगम झल – सा
मृदु कल्पनातीत चरम चाव अलिक
अत्युग्र अश्म – सा हयात धार
शीर्षक :- अंशु नूर
मारुत चली वक्त के तालीम
गिरि धरा वारिश अवलेप समर
घनघोर व्यवधान रही इस मसविदा
प्रत्यागमन करूँ या अग्रेषित रहूँ ?
इच्छा शक्ति पखान भग्न क्यों ?
आरजू पारावार विस्मृत कहाँ ?
मञ्जुल अनागत का अन्धियारा
प्रतिभास बलिण्डा अत्युग्र क्यों ?
रोहिताश्व धधक रही उद्विग्नता में
अविक्रान्त है मम प्रज्ञा तस्कीन
अवसान रहा प्राणान्त के कगारे
इम्तहान महासमर में मशक्कत मेरी
हौसला विहग में तरणि मराल
व्याघात ही अभ्यनुज्ञा चाक्षुष
चन्द्रहास बनूँ अलमास वज्र
उच्छेदन कर दूँ मातम प्रतिकार
प्राग्भार फणीश उत्ताल अभ्र
प्रवाहमान धार निस्सीम ब्रह्माण्ड
आत्मोद्भवा प्रज्वलित अंशु नूर
भव सिन्धु अधोभुवन निराकार