VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

शीर्षक:- सौ

शीर्षक :- रेखीयगणित

स्त्री के देह के स्पर्श मात्र से
उसके मन को छू पाना!
असंभव है
यह क्रिया बार-बार पुरुष करता है
स्तन और जांघों के मध्य
तलाशता रहा अपनी सभ्यता
पुरुष होने का प्रमाण देने के लिए
उसके चेहरे पर खोजता रहा अपना इतिहास
भौंहों, मुंह के दो जीभों के क्रिया के बीच
पंचइन्द्रियों पर केशों के गहराईयों के दरमियान
उनके रेखागणित पर बनाता रहा
अमावस्या का चंद्रमा
उनके परस्पर क्रियाओं के गर्माहट से बनता रहा रेखीयकोण के ऊपर
नये समकोण की त्रिज्याएँ

स्त्री के मन को छू पाना अर्थात्
अभिक्रिया की आण्विकता पर खगोलीय चंद्रमा का होना!

शीर्षक :- अर्धांगिन

शीर्षक :- औरत

शीर्षक :- रेखाचित्र पर पूर्णिमा

शीर्षक :- ओस

S. NO.VARUN SINGH GAUTAM
1एक घड़ी या दो घड़ी….
2एक पैग़ाम ( ग़ज़ल )
3मैं हूँ निर्विकार
4पवित्र बन्धन
5मैं तड़प रही
6हरीतिमा स्वंहृदय में
7विजयपथ
8मेरे गुरुवर
9शृङ्गार अलङ्कृत
10विकल पथिक हूँ मैं
11अकेला
12साँझ हुई
13क्यों है तड़पन ?
14पङ्खुरी
15अग्निपथ का अग्निवीर
16सतरङ्गी
17आँगन
18शून्य हूँ
19विजय गूञ्ज
20कबीर
21कल्पित हूँ
22अश्रु धार
23World Music Day
24योग कुरु कर्माणि
25सुनसान
26पङ्ख
27तन्हा मैं
28आखिर क्यों
29कहर
30गर्मी उफ़ रे गर्मी
31वाह रे चीन….!
32शोणित धार
33ये सात लम्हे कैसे बीत गए नवोदय के
34दीवाली पर विशेष
35सब भूलेंगे जरूर
36आत्मशून्य मैं
37कवित्त
38कवित्त
39ठिठुरन
40.कंपकंपी
41.ये अन्धेरी रात
42.गाँव की शामें
43मेरी सम्पूर्ण
44स्पन्दन
45कशिश
46कवित्त भाग – तीन
47इकतीस, December
48कवित्त भाग – चार
49निःशेष लिए… भाग – एक
50कवित्त भाग – पांच
51कवित्त भाग – छः
52कवित्त भाग – सात
53कवित्त भाग – आठ

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