VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

शीर्षक:- सौ
पूरा पा लिया है, यह मत समझों
इस धरती पर माँ के गर्भ से उतरना
उसके बाद
एक शताब्दी होना
यह बस संयोग मात्र है।
जन्मतिथि के एक शताब्दी बाद भी
जीवित रहना
जन्मदिन मनाना
शुभान्वित होना, मुबारकबाद लेना
आशीर्वाद मिलना। बधाई।
यह सौभाग्य है
वह दिन जीवनकाल का पूर्ण दिन होगा।
वह विरले ही है , यह जीवनकाल पाते हैं
पूरा सौ!
इक्कीसवीं शताब्दी में सौ होना
मनुष्य होने का प्रमाण है।
उम्र सौ का नहीं ढ़लना
अकालमृत है
यह कालमृत होना ही सौ है ?
जीवन प्रत्याशा तिहत्तर होना
इस देह का पुराना होना
विश्व प्रमाणिक है।
एक शताब्दी पचास वर्ष की आयु!
पांचवीं पीढ़ी को देख पाना
नामुमकिन है।
शीर्षक :- रेखीयगणित
स्त्री के देह के स्पर्श मात्र से
उसके मन को छू पाना!
असंभव है
यह क्रिया बार-बार पुरुष करता है
स्तन और जांघों के मध्य
तलाशता रहा अपनी सभ्यता
पुरुष होने का प्रमाण देने के लिए
उसके चेहरे पर खोजता रहा अपना इतिहास
भौंहों, मुंह के दो जीभों के क्रिया के बीच
पंचइन्द्रियों पर केशों के गहराईयों के दरमियान
उनके रेखागणित पर बनाता रहा
अमावस्या का चंद्रमा
उनके परस्पर क्रियाओं के गर्माहट से बनता रहा रेखीयकोण के ऊपर
नये समकोण की त्रिज्याएँ
अनन्त बारम्बारता के बल से फिर बनेंगी
नौ महिने बाद सम्पूर्ण टूकॉपी पृथ्वियाँ
स्त्री के मन को छू पाना अर्थात्
अभिक्रिया की आण्विकता पर खगोलीय चंद्रमा का होना!
शीर्षक :- अर्धांगिन
गालों पर रंगों का मलना
आकाश होना है
तेरे होठों से उठ रहे फाग
भोर का सूर्योदय होना है
गोरे तन से रंगों का छंटना जैसे
नूपुर मंगनी में वर-वरण को आई
प्राची-प्रतीची के संगम में
मेहंदी रंग के इन्द्रधनुष ब्याह-मंडप में पधारी
सुंदर सुंदर चित्र दिखे हैं तुम्हारे घेरे में
चन्द्रमा होने के जैसा तुम हो
सुन्दरियों के गोल-सुडौल बदन में
लिपटे साड़ी-ब्लाउज के अंगों में भंग है
तुममें थिरकती देह, थिरकता मन में
मृदंग पर तालों की नृत्य करती अप्सराएँ
रंगों का समुद्र होना मानों
तुम हो, देश है, सूर्योस्त होने को है।
दोनों के बीच खालों का उतरना
मधुयामिनी, अंतरिक्ष, अर्धांगिन भव है
शीर्षक :- औरत
स्त्री देह पर
चूल्हे का पकना
{ एक औरत होना है }
ज़िम्मेदारियों के चंद्रमा पर
सृजन होना है
{ उदर का पहाड़ होना है }
तेरी गोद में बैठा भविष्य
छाती उड़ेल देना
{ अर्थात देश होना है }
पर शब्दों के दीवारों पर
बुनी हुई कविताएँ
{ कन्या भ्रूण की हत्या! }
स्त्रियों के इच्छाओं का मरना
लाश होना है
{ मानव विलुप्ती होना है }
चूल्हे में जले हुये लकड़ियों का राख होना
{ जिसे पानी के छीटें मारकर बुझाया गया }
एक स्त्री की मौत!
शीर्षक :- रेखाचित्र पर पूर्णिमा
अधमरे लाशों पर बैठा कई सारे
हत्याएँ
जिसके पेट पर कब्रिस्तान खोदना!
तुम समझते हो कि मेरा अन्तिम संस्कार है।
पुस्तकालय में सबसे नीचे तख्त पर रखी हुई
मेरी किताब के अंतिम पन्नों के हाशिये पर
मेरा किया हुआ अंतिम हस्ताक्षर
मेरा नाम होगा
जो प्रमाणित करता मेरा होना
मेरा वजूद, मेरा परिचय, सबकुछ तुम्हें
सहस्त्राब्दियों के अतीतगर्भ में
दबी हुई सभ्यताओं के शिलालेख पर मिलेंगे
‘ आ ‘ वर्ण की आकृतियों का होना
जैसे मिट्टी के चूल्हे के आँच पर रखी हुई
गर्म तवा पर मेरी माँ को रोटियाँ सेंकना
जिसे सींचने मात्र से सृष्टि बचाना नहीं अपितु
आदमी होना है।
इस पृथ्वी के गर्भगृह में द्वीप पर बैठा खगोलीय चंद्रमाएँ
जिस पर लिखी जा रही है कविताएँ
रेगिस्तान के ऊपर प्रेम की कविताएँ
तुम हो, तुम्हारे होने मात्र से
पूरी हो सकेंगी मेरी कविताएँ ?
तुम्हारे हाथों पर बनी हुई रेखाचित्र पर
तुम्हारे देह के भूगोल पर असंख्य आकृतियों का होना
दोनों का प्रतिबिंब बनना
मेरे हाथों के रेखाचित्र पर पूर्णिमा होना है।
अमावस्या के काली चन्द्रमाओं पर लिखी हुई कविताएँ
मेरा लाश होना है।
शीर्षक :- ओस
हरी-हरी दूब पर भोर की ओस छरहरी जैसी
जिसके स्पर्शमात्र से ही सहसा
मेरे मन की उत्कंठाएँ
आनंदित, उत्सव जैसी त्यौहारों में
मेरे देह पर नृत्य करती हुईं नलिकाएँ
मुझे रहस्यमयी जादूई अंतरिक्ष बना देती है,
मेरे पुराने स्मृतियों के पिरामिडों में
जिसके आँसूओं पर बुनी हुईं
सभ्यताएँ
पर ब्रह्ममुहूर्त के बेला पर खिला हुआ
गुलमोहर जैसी
चित्रदीर्घा से लौटती ओस पर्ण पर
खिलखिलाते हुए माँ की गोद से शिशु का उतरना मानों
प्रतीची से लौटता
प्राची में सूर्योकार का होना है।