VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA
VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

शीर्षक:- सर्पपाश

शीर्षक :- पुतला

मैं उस दिन का पुतला हूँ
जिसे आज लाश बनकर उड़ जाना है
उड़ जाना है झोपड़ पट्टी,
आँगन में गोरैयें, परिवार सबकुछ!
इस रिक्त स्थान को भरने
गांव के शहर बनने की प्रक्रिया में
दह जायेंगे, सड़ जायेंगे
फिर उड़ जायेंगे
वहीं पुतला!
जिसके बनने की प्रक्रिया में लगे थे
सौ साल।
भग्नावशेषों के शिलाओं पर
बचेंगे तजर्रुद, पाशविक, कामुकता,
अंबरलेखी अट्टालिकाओं के दीवारों पर
लगेंगे छिपकलियों के गश्त
जिस बिल्डिंग से लाइट फॉक्स करेंगी
वहीं मिलेंगे ‘उस दिन का पुतला’
जो बिल्कुल नग्न, अस्तित्वहीन।

शीर्षक :- नदी अब तक क्यों सभ्य नहीं हुयी

फिर नदी बताती है कि
अपने अस्तित्व के लिए,
खुद को बचाने के लिए
मनुष्य के सर्पदंशों से
बच रही हूँ
आखिर बोलो
मेरा क्या कसूर ?

शीर्षक :- वरुणा नदी

मैं वह आदमी हूँ
जिसका पूर्वजन्म
वरुणा नदी के रूप में हुआ था
पर मैं आज आदमी हूँ
यह जन्म नहीं यह अवतार है
अपने अधिकार लिए
सुप्रीम कोर्ट में लड़ेंगे
लोगों से लड़ेगे
मेरी क्रांति मेरी हित में होगी
हमें यह उम्मीद है
भरोसा है
हम जरूर जीतेंगे।

शीर्षक :- हड़प्पा सभ्यता

बृहत्स्नानागार सङ्घ का अस्तित्व
थी स्थानीय स्वशासन संस्था
धरती उर्वरता की देवी थी
शिल्पकार , अवसान का इस्बात है

शीर्षक :- जीवन का प्रादुर्भाव

जीवन का प्रादुर्भाव
सौर निहारिका की अभिवृद्धि से ,
हुआ हेडियन पृथ्वी का निर्माण ।
आर्कियन युग का आविर्भाव ,
हुआ जीवन का प्रादुर्भाव ।
हीलियम व हाईड्रोजन संयोजन से ,
सूर्य नक्षत्र का आह्वान हुआ ।
कोणीय आवेग के प्रतिघातों से ,
हुआ व्यतिक्रम ग्रहों का निर्माण ।
ग्रह – उपग्रह का उद्धरण आया ,
आया गुरुत्वाकर्षण का दबाव ।
ज्वालामुखी सौर वायु के उत्सर्जन से ,
हुआ वातावरण का प्रसार ।
सङ्घात सतह मेग्मा का परिवर्तन ,
किया मौसम – महासागर का विकास ।
लौह प्रलय के प्रक्रिया विभेदन से ,
ग्रहाणुओं से स्थलमण्डल का विकास ।
अणुओं रासायनिक प्रतिलिपिकरण से ,
मिला जीवाणुओं से जीवन का आधार ।
आवरण सन्वहन के सञ्चालन से ,
हुआ महाद्वीप प्लेटों का निर्माण ।
एक कोशिकीय से बहु कोशिकीय बना ,
वनस्पति से मानव का हुआ विकास ।
संस्कृतियाँ आई सभ्यताएँ आई ,
है मिला विश्व जगत का सार ।
सम्प्रदायों के परिचायक एकता से ,
मिला टेक्नोलॉजी का आधार ।
राजतान्त्रिक से लोकतान्त्रिक बना ,
हुआ मानव कल्याण का विकास ।

शीर्षक :- ऐ नगेश हिमालय !

ऐ नगेश ! रक्षावाहिनी !
ऐश्ववर्य – खूबसूरती महान !
प्रातः कालीन का सौन्दर्य तुङ्ग ,
रत्नगर्भा मानदण्ड हो !
मार्तण्ड नीड़ – पतङ्ग में तान रहा ,
पुरुषत्व समवेत महीधर हो ।
जम्बू द्वीपे के हिम उष्णीष ,
सिन्धु – पञ्चनन्द – ब्रह्मपुत्र के चैतन्य ।
तू ही ब्रह्मास्त्र – गाण्डीव हो ,
रत्न – औषधि – रुक्ष का वालिदा ,
हिमाच्छादित , वृक्षाच्छादित हो ।
युग – युगान्तर तेरी महिमा ,
गौरव – दिव्य – अपार ।
टेथिस सागर प्रणयन है ,
जहाँ ऋषि – मुनियों का विहार ।
जीवन की अंकुरित काया ,
सर्वशक्तिमान नभ धरा हो ।
प्रियदर्शी – पारलौकिक – अजेय ,
सांस्कृतिक – आर्थिक अविनाशी हो ।
सुखनग – अभेध – जिगीषा ,
शाश्वत ही पथ प्रदर्शक हो ।
कैसी अखण्ड तेरी करुणा काया ?
तड़प रही विश्वपटल का राज ।
सदा पञ्चतत्व में समा रहा ,
कोरोना के रुग्णता का हाहाकार ।
मुफ़लिस कुटुम्ब नेस्तनाबूद हुए ,
मरघट हो रहा कृतान्त का समागम ।
क्यों मौन है ऐ विश्व धरा ?
ले अंगड़ाई , हिल उठ धरा ।
कर नवयुग शङ्खनाद का हुँकार ,
सिंहनाद से करें व्याधि विकार ।

S. NO.VARUN SINGH GAUTAM
1एक घड़ी या दो घड़ी….
2एक पैग़ाम ( ग़ज़ल )
3मैं हूँ निर्विकार
4पवित्र बन्धन
5मैं तड़प रही
6हरीतिमा स्वंहृदय में
7विजयपथ
8मेरे गुरुवर
9शृङ्गार अलङ्कृत
10विकल पथिक हूँ मैं
11अकेला
12साँझ हुई
13क्यों है तड़पन ?
14पङ्खुरी
15अग्निपथ का अग्निवीर
16सतरङ्गी
17आँगन
18शून्य हूँ
19विजय गूञ्ज
20कबीर
21कल्पित हूँ
22अश्रु धार
23World Music Day
24योग कुरु कर्माणि
25सुनसान
26पङ्ख
27तन्हा मैं
28आखिर क्यों
29कहर
30गर्मी उफ़ रे गर्मी
31वाह रे चीन….!
32शोणित धार
33ये सात लम्हे कैसे बीत गए नवोदय के
34दीवाली पर विशेष
35सब भूलेंगे जरूर
36आत्मशून्य मैं
37कवित्त
38कवित्त
39ठिठुरन
40.कंपकंपी
41.ये अन्धेरी रात
42.गाँव की शामें
43मेरी सम्पूर्ण
44स्पन्दन
45कशिश
46कवित्त भाग – तीन
47इकतीस, December
48कवित्त भाग – चार
49निःशेष लिए… भाग – एक
50कवित्त भाग – पांच
51कवित्त भाग – छः
52कवित्त भाग – सात
53कवित्त भाग – आठ

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