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RAKSHA BANDHAN KAVITA : राखी पर कविताएँ

BABITA SHARMA RAKHI SPECIAL KAVITA
हुई शादी और बीत गये कई साल
ना आया मन में भइया का ख्याल
रम गयी नई दुनियां को सजाने में
सभी को तन – मन से अपनाने में
सब खुश थे नयी बहु के आने में
पूरे घर को संभाला अपने जाने में
आया त्यौहार जब रक्षा-बंधन का
याद आयी जिनसे था रिश्ता मन का
पूछने लगी घरवालों से जाना है वहाँ
बचपन में उस घर आंगन खेली जहाँ
तुरंत तैयारी हुई मेरे घर द्वार जाने की
राखी के पावन रिश्ते को निभाने की
इस भाई बहन के प्यार का ये रिश्ता
जुड़ा सदियों से कभी जुदा ना होता
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PUSHPA SAHU RAKHI SPECIAL KAVITA
हर बंधन से प्यारा रक्षाबंधन है,
बड़े नसीबों से मिलता है जो ये वो धन है।
जिनको नही मिलती ये दौलत,
अक्सर दुखी रहता उनका मन है।
भाई बहन का प्यार जहाँ हो,
वहाँ न कोई बाधा न कोई
अड़चन है।
राखी के धागों में साफ झलकता है,
भाई बहन का प्यार, रक्षाबंधन का दर्पण है।
राहों में उसकी न आए कोई बाधा,
मेरा भाई है बहुत सीधा साधा।
कुछ देने का करता नही कोई वादा,
पर स्नेह पूरा दिया,दिया न कभी आधा।
छोटी-छोटी बातों से घबराता है,
मेरा भाई खुलकर कहाँ कुछ कह पाता है।
पर उसका प्रेम आखों से छलक जाता है,
बिना कहे मेरी हर बात समझ जाता है।
सबसे मधुर है ये प्रेम का बंधन,
हर रिश्ते से पवित्र है ये संबंध।
भाई के बिना बहन का और
बहन के बिना भाई क्या जीवन।
टूट कर भी टूटे न जो भाई
बहन का तो ऐसा अटूट नाता है।
एक को भी दुख हो अगर तो
दूजा भी कहाँ मुस्काता है।
राखी का पर्व जब जब आता है,
ढेरों खुशियाँ साथ लाता है ।
ये वो पर्व है जो हर साल मुझे
ससुराल से माइके लाता है।
न कोई गिफ्ट न उपहार देना,
भईया मुझे बस अपना प्यार देना।
न चाहिए रुपया न कोई पैसा,
बस अपना प्यार दुलार देना।
भईया तुमसे बस इतना ही कहना,
न लेगी तुमसे कुछ तुम्हारे बहना।
भईया मेरे तुम सदा खुश रहना,
बस यही दुआ माँगे तेरी ये बहना।
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HIMANSU VERMA RAKHI SPECIAL KAVITA
पवित्र बंधन है राखी
भाई बहन का प्रेम है राखी
सबसे पवित्र बंधन है राखी।
बहनों का विश्वास है राखी
संबंधों का मज़बूत डोर है राखी।
दो दिलों को जोड़ता है राखी
भाई बहन का अनमोल प्यार है राखी।
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NAVIN PRAKASH DVIWEDI RAKHI SPECIAL KAVITA
सुनो सुनो सब मित्र सुनो,
मैं तुम्हें बताने आया हूं।
सब त्यौहारों में श्रेष्ठ है जो,
उसको समझाने आया हूं।।
यह मेरा देश अलौकिक है,
बहु पर्व मनाये जाते हैं।
पर उन पर्वों में कुछ पर्व,
रिश्तों में निभाये जाते हैं।।
नामित है रक्षाबंधन से,
जो भाई बहन का प्यार है।
जो रेशम के धागों से बांधे,
कुल रूपी संसार है।।
भाई और बहन की मैं,
परिभाषा कुछ बतलाता हूं।
खुद में बहुत कठिन है जो,
अब तुमको भी दिखलाता हूं।।
यदि भाई एक लहर है तो,
फिर बहन जलधि की धारा है।
वह भाई ही निज बहन हेतु,
उसका अपना ध्रुव तारा है।।
वह आदि भी है और अंत भी है,
वह अंक भी है और अनंत भी है।
वह भाई भी सत्कर्म किये,
भगवान भी है और संत भी है।।
कच्चे धागे का पर्व है ये,
जो भाई बहन मनाते हैं।
एक दूजे की रक्षा का वचन,
देते और निभाते हैं।।
तुम युग युग जीना हे भैया,
ऐसी ही मेरी इच्छा है।
यह कहती हैं सारी बहनें,
कुल से मिली जो दीक्षा है।।
फिर भाई भी कुछ वादा करता,
आजीवन तेरा ढाल बनूँ।
जब-जब तुम पर संकट आये,
तब- तब मैं उसका काल बनूँ।।
कच्चे धागे में प्राण सबल,
संबल हर आश भरोसा है।
ऐसे संबंध स्थापित हैं,
लगता विश्वास परोसा है।।
यही जोड़ का है प्रतीक,
जो उचित समय पर दिखता है।
सच्चे मन से यदि बांध दिया,
जन्मांतर तक यह टिकता है।।
द्रौपदी ने भी बांधा था,
केशव के प्यारे हाथों को।
केशव ने तब दिखलाया था,
शक्ति इसकी हर माथों को।।
स्वागत है इस धागे का,
जिसकी भक्ति में शक्ति है।
आभार व्यक्त करना उसको,
जिसके कर से यह बंधती है।।
सौरभ सौभाग्य महक जाता,
जब हाथों में यह सजती है।
अमृत संदेश सजा जाये,
ऐसी इसकी अनुरक्ति है।।
ऐसी इसकी अनुरक्ति है…
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PARTH SARTHI SHUKLA RAKHI SPECIAL KAVITA
आ गया पर्व उस बंधन का
जब डोर कलाई सजाती है,
रहती चाहे कहीं हो जग में
वो इस दिन तो आती है।
एक भाई अपनी बहन की लाश के सिरहाने से बैठे हुए कहता है :
कि, सुना सा वो हाथ लिए
सिरहाने उसके बैठा हूं
उठ जा प्यारी उठ जा प्यारी
धीरे-धीरे कहता हूं
उठ जा अब तो देर हो गई
आंसू पूछ, क्यों रोती है ?
मुझको रोज जगाती थी
फिर खुद क्यों आज तू सोती है?
जल्दी उठेगी तो ही तुझसे
मैं राखी बंधवाऊंगा
चाहिए होगा तुझको जो-जो
मैं लेकर के आऊंगा
संग चलेंगे हम दोनों फिर
कहीं घूम कर आएंगे
संग रहेंगे हम दोनों फिर
कभी दूर न जाएंगे।
क्यों ऐसे तू लेटी है
क्यों नहीं तू कुछ भी बोल रही
दिल पर रख के हाथ देख
कैसे ये सांसें डोल रही
क्यों तड़पाती है तू मुझको
राखी बांध के सो जाना
एक बार तू उठ जा फिर से
ख्वाब के जग में खो जाना।
सोते-सोते कहां चली तू
गई, मुझे बतलाती जा
अगर तू ज्यादा दूर हो मुझसे
धीरे-धीरे आती जा
अगर कहीं पर भटक गई तू
लेने तुझे मैं आता हूं
हाथ पकड़ कर चलना पीछे
मेरे जिधर मैं जाता हूं।
कहां चली तू गई, मुझे
बस यही तो अब है पता कहां
बोल रहा हूं कब से मैं
पर सुनता कहां है कोई यहां
मैं खुद एक आशा, आशाओं के
घेरों में जो छुपा हुआ
और उन आशाओं के पीछे
एक आशा लेकर रुका हुआ!
वो नहीं उठेगी जान के भी
एक आस में लेकर बैठा हूं
उसकी आंखों में झलक रहा
वो आंसू बन में बहता हूं
उस आंसू की कीमत क्या
जो शब्द ही है दो अक्षर में
ठुकराता इसको हर कोई
जाने रहता वह किस घर में?
मैं समझ गया तू नहीं उठेगी
क्योंकि मुझसे रूठी है
यह दुनिया जाने क्या कहती
यह दुनिया सारी झूठी है
मैं नहीं जाऊंगा तब तक की
जब तक तू मुझसे ना बोले
मैं नहीं जाऊंगा तब तक की
जब तक तू आंखें न खोले।
बस एक बार तू कह दे की
अब लौट के ना मैं आऊंगी
मैं चली गई हूं दूर कहीं
अब कहीं और मैं जाऊंगी
तो मैं भी तुझको हंसी खुशी से
बिन रोए ही विदा करूँ
पर तू न कुछ भी बोल रही
अब कैसे मैं अलविदा करूं?
चली जा तू जहां कहीं भी
तुझको यूं अब जाना हो
कहती तो थी भाई-भाई, पर
शायद भाई न माना हो
हाँ, गलती मेरी थी बस ये
एक अच्छा भाई ना बन पाया
अपने इस सूने से जीवन में
क्या खोया और क्या पाया॥
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