हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। यहां पर पुष्पा साहू मीरा जी की कविता प्रकाशित किया जाएगा। आप सभी इसका आनंद लीजियेगा।
PUSHPA SAHU KI KAVITA

शीर्षक:- उम्मीद बचा कर रखिए
अंधेरों भरी इस दुनिया में
एक उम्मीद बचा कर रखिए
जलती बुझती स्याह रात में
एक चिराग जला कर रखिए
नींद आए या ना आए पर
ख्वाब आंखों में जगा कर रखिए
हो कितनी भी मुश्किलें
बस हौसला बना कर रखिए
दुश्मन हो सामने तो भी
गले उसे भी लगा कर रखिए
नफरत से उजड़ जाता है सब
प्रेम की बस्ती बसा कर रखिए
शीर्षक:- कुछ अधूरी मुलाकातें
कुछ अधूरी मुलाकाते हैं
कुछ अनकही सी बातें हैं
हर रोज याद आते हो तुम
पास बस तुम्हारी ही यादें हैं
मुलाकात से पहले बिछड़ गए
कुछ कस्मे कुछ टूटे हुए वादें हैं
ख्वाब हों तुम्हारे या तसब्बुर
हर बात में तुम्हारी ही बातें हैं
सुबह की नई उम्मीद के साथ
जलती शामें और बुझती रातें है
शीर्षक:- बिना फोन का शहर
काश कि ऐसा फिर से हो जाए
बिना फोन का हर शहर हो जाए
ना भटके बेशर्मी के गलियारों में
बचपन फिर से घर को लौट आए
ना हो कोई झूठा प्रेम प्रसंग फिर
जवानी दहलीज से बाहर न जाए
घर के कुछ कामों में मां-बाप का
बेटी बेटा दोनों फिर से हाथ बटाएं
भले गिने चुने ही दोस्त हो मगर
पहले की तरह उम्र भर साथ निभाए
हर कोई फोन में ही ना घुसा रहे
साथ बैठ परिवार के वक्त बीताएं
ना उलझे रहे फोन के गेम में बच्चे
दादी,नानी की कहानी से दिल बहलायें
साथ बैठकर मोहल्ले की औरतें
फिर से सारे तीज त्यौहार मनाएं
होली,दिवाली हो या करवा चौथ
सब मिले जुलें, और घर-घर जाएं
लौट आए वह पुराने दिन फिर से
जहां रिश्ते फिर से अहमियत पाएं
कोई इंटरनेट हो ना कोई फोन कॉल
बस दिल से दिल के तार जुड़ जाएं
काश की ऐसा फिर से हो जाए
बिना मोबाइल का शहर हो जाए
शीर्षक:- आजाद सोच
धुंध छट जाएगी धीरे-धीरे
धूप फिर खिल जाएगी,
होगा नया सवेरा नई
किरण उम्मीद जगाएगी |
बदलेगा समाज जब सोच
इंसान की बदल जाएगी,
आजाद सोच जब समाज
में आज़ादी लाएगी |
ना उतरेंगे रंग पंखों से
फिर किसी तितली के,
रंग-बिरंगे फूलों पर नन्हीं
तितली फिर इतराएगी |
ना लुटेगी किसी मासूम की
अस्मत इस समाज में,
खिलेगी नन्ही कली बाग में
फिर से बहार आएगी |
भरेंगी उड़ान बेटियां फिर
से खुले आसमान में,
आजाद सोच समाज की
लडकियों को पंख दे जाएगी |
कभी रंग बिरंगी तितली
बनकर आंगन में उड़ेगी,
तो कभी नन्ही चिड़िया बन
आसमान में उड़ जाएगी |
आजादी का मतलब क्या है
क्या इसकी सीमा रेखा है,
आजाद सोच की परिभाषा
आजाद हमें कर जाएगी |
सिर्फ भौतिक नहीं मानसिक
बदलाव भी जरूरी है,
आजाद सोच ही समाज को
प्रगति की ओर ले जाएगी |
आजाद सोच रखने का हर
किसी इंसान को हक है,
भला कैद और बेड़ियाँ किसी
को कब तक रास आएंगी |
ना हो विचारों में आजादी
तो जीवन निरस होगा,
ये हंसीन जिंदगी कैद की
घुटन में सांस ना ले पाएगी |
ना ये जिंदगी गुलज़ार होगी,
ना कोई मौसम रंगीन होगा,
शाख से पत्तों की तरह टूट
कर ये जिंदगी बिखर जाएगी |
शीर्षक:- वीरों की कुर्बानी
माँ भारती ने जब वीरों को पुकारा था |
दे दी प्राणों की आहुति सपूतों ने,हिम्मत न कोई हारा था ||
खतरे में पड़ी जब आजादी |
शहीदों ने सर पर कफन बाँधा था ||
काँप उठा था ब्रिटिश साम्राज्य |
जब इन्कलाब जिन्दाबाद का गूँज रहा नारा था ||
मर मिटे थे वतन पर मरने वाले |
देश जिनको जान से भी प्यारा था ||
गाँधी जी ने कहा, अंग्रेजो भारत छोड़ो|
ये हिन्दुस्तान हमारा है,हमारा था ||
तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा|
सुभाष चंद्र बोस ने जब ये पुकारा था |
भारत का हर नवजवान कूद पड़ा
था रणभूमि में, सबने अंग्रेजों को ललकारा था ||
माताओं ने खोए थे लाल कई |
जो लाल उनकी आँखों का तारा था ||
खून से लतपथ थी काया उसकी |
जिसे माँ ने बड़े नाजों से पाला था ||
झाँसी की रानी ने जब तलवार उठाई थी |
पीठ पर उसके भी एक छोटा सा लाला था ||
जो झूल गए फाँसी पर हँसते-हँसते |
वो भी तो किसी के बुढापे का सहारा था ||
आखिरी साँस तक लड़ते रहे |
पर दुश्मनों के आगे हथियार न डाला था ||
कोई कमी न आने दी तिरंगे की शान में |
वतन परस्तों ने वतन पर सब कुछ वारा था ||
जय हिंद
शीर्षक:- जिंदगी गुलज़ार हो जाए
तेरा साथ मिले तो जिंदगी
गुलज़ार हो जाए,
तुम जो आओ तो पतझड़
भी बसंत बहार हो जाए |
बोझ सी लगती ये जिंदगी,
रूठी रूठी सी रहती है,
तुम जो हमकदम हो तो हर
दिन तीज त्यौहार हो जाए |
शीर्षक:- सुनो ना
इस बार तो आ जाओगे ना?
सावन के बरसते बरसते |
कितने मौसम बीत गए हैं,
तेरा इन्तजार करते तरते |
एक उम्र तो न गुजर जायेगी,
पतझड़ को बहार करते करते |
न जाने और कितना वक़्त लगेगा,
दिल के जख्मों को भरते भरते |
कहीं मर तो न जाऊँगी मैं,
तुम पर यूँही मरते मरते?
पुष्पा साहू मीरा
प्रयागराज उत्तर प्रदेश

