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NAVIN PRAKASH DVIWEDI KI KAVITA

शीर्षक:- काशी,मालवीय जी और विश्वविद्यालय
आओ मित्रों सब आ जाओ,
सैर तुम्हें करवाता हूं।
जो ज्ञान की पावन धारा है,
उसका दीदार कराता हूं।।
भारत के पावन शहरों में,
काशी नामक एक नगर है।
याद रखो तुम गौरव उसका,
स्मरण तुम्हें इतिहास अगर है।।
जिसको संज्ञा दी जाती है,
उस महादेव की नगरी से।
जो विश्वपटल पर छायी है,
कुछ विद्वानों की पगड़ी से।।
एक बात सदा सुनता आया,
शायद तुमने भी सुना होगा।
है महादेव की पुण्य भूमि,
जाने का ख्वाब बुना होगा।।
यह पुण्य भूमि गंगा तट पर,
बसी हुई है युग-युग से।
गंगा भी गंगा मैया हैं,
जलधार जहां हैं सतयुग से।।
जो स्वर्ग लोक में बहती थी,
अविरलता संग लिये आयी।
जिनका वेग प्रबल ही था,
यह नगरी थी उनको भायी।।
काशी को लेकर जाना तब,
गंगा जी ने था ठान लिया।
यह नगरी क्या कर सकती थी,
बस महादेव को मान लिया।।
जब महादेव की इच्छा थी,
कि वास करूंगा काशी में।
लहरें कैसें अब लें जाएं,
जब रोक दिया सन्यासी ने।।
तब महादेव ने शूल फेंक,
गंगा की धारा मोड़ दिया।
अब गंगाजी ने खुशी खुशी,
इस नगरी को यूं छोड़ दिया।।
एक बात कहा गंगा जी ने,
स्पर्श प्रभु का होगा अब।
यह मोक्षदायिनी कूल बनेगा,
मोक्ष मिलेगा सबको अब।।
यह वो नगरी है रचा जहां,
तुलसी जी ने था मानस को।
था सौंप दिया सत्कर्म हेतु,
निज जीवन भी जन मानस को।।
यह पुण्य भूमि रविदास जहां,
प्रकटे और जग में नाम किया।
कैसे भूले हम उन कबीर को,
साहित्य हेतु बहु काम किया।।
है पुण्य धरा बिक गए जहां,
जो हरिश्चन्द्र कहलाते थे।
है यही धरा उपदेश जहां,
खुद गौतम बुद्ध सुनाते थे।।
ऋषियों की तपस्थली जो थी,
राजाओं की रजधानी थी।
यह काशी अब भी वैसी है,
जैसी उसकी वो निशानी थी।।
है ज्ञान की पावन धारा यह,
था मालवीय जी ने सिद्ध किया।
जब बना लिया था कर्मभूमि,
जग में इसको परसिद्ध किया।।
इस नगरी के लिये मदन जी,
भिक्षाटन भी कर बैठे।
जो खुद में स्वयं समृद्ध रहे,
निज राष्ट्र हेतु कुछ कर बैठे।।
दान और भिक्षा लेना,
योगी को शोभा देता है।
जो मांग करे बस परहित में,
विरला ही योगी होता है।।
जब स्वप्न देखना जुर्म रहा,
उस समय स्वप्न देखा जिसने।
है कोटि-कोटि सादर प्रणाम,
निज जीवन को फेंका जिसने।।
चाह रही होती उनकी,
शायद उद्योग बना देते।
कुल के लिये जीवन भर का,
ऐसा वो भोग बना देते।।
था बता दिया जनमानस को ,
जो चाहो वो मिल जाता है।
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है।।
मांग मांग कर धन दौलत,
था खड़ा कर दिया विद्यालय।
विद्यालय ही नहीं बल्कि ,
कह दो इसको तुम देवालय।।
नाम दे दिया इसको बीएचयू,
जो शिक्षा का केंद्र बन गया है।
नव ज्ञान और विज्ञान लिये,
सबके जीवन में रम गया है।।
है पवित्रमयी शिक्षा इसकी,
जग में सम्मान लिये भी है।
शिक्षा तो शिक्षा ही दी,
जग को विद्वान दिये भी है।।
यह नवीन की बातें थी,
जिसको तुम लोग सुन रहे थे।
जो सुना दिया था दादा ने,
जब वो चने भुन रहे थे।।
हे दूर दूर के छात्र सुनो,
आओ पढ़ लो बी एच यू में।
यह नगर और विद्या दोनों,
पा जाओगे बी एच यू में।।
पा जाओगे बी एच यू में…
~नवीन प्रकाश द्विवेदी
विधि छात्र,
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय
मूल निवास-जनपद मऊ उ.प्र.