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राधा अष्टमी क्यों मनाईं जाती हैं।
देश में राधा रानी के प्राचीन मात्र दो ही मंदिर बताये जाते हैं जिनमें एक मंदिर वृंदावन के बरसाना और दूसरा मंदिर शहर के नंदवाना में स्थित है। बरसाना में तो राधारानी के श्रद्धालुओं को रोज दर्शन होते हैं, लेकिन विदिशा में पिछले 333 वर्षों से राधा रानी एक छोटे से गर्भग्रह में विराजमान हैं। जहां साल भर गुप्त रूप से उनकी सेवा की जाती है और राधा अष्टमी के दिन आम भक्तो के लिए पट खोले जाते हैं। अष्टधातु की बनी राधा रानी की प्रतिमा के साथ ही उनकी सखियां भी यहां विराजमान हैं।
राधा अष्टमी का पर्व रावल और बरसाने में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से राधा रानी की कृपा हमेशा बनी रहती है। जो लोग कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखते हैं उन्हें राधा अष्टमी का व्रत भी रखना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत रखता है और राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता उसे कृष्ण जन्माष्टमी के व्रत के फल की प्राप्ति नहीं होती।
पद्मपुराण ब्रह्माखण्ड में श्री नारद जी और ब्रह्माजी का सवांद देखने को मिलता है, जिसमें श्री नारद जी के पूछने पर ब्रह्माजी राधा जन्माष्टमी की महानता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि सतयुग में लीलावती नामक एक अतिसुंदर वरांगना थी उसने बहुत बड़े और कठोर पाप किये थे। एक दिन धन की लालसा में वह अपने नगर से निकल कर दूसरे नगर में पहुंची।
वहां उसने एक जगह बहुत से लोगों को एकत्रित देखा वह लोग राधा अष्टमी के व्रत का उत्सव मना रहे थे वहां पुष्प, दीप, धूप, वस्त्र तथा नाना प्रकार के फल अर्पित कर राधा रानी की मूर्ति की श्रद्धापूर्वक पूजा कर रहे थे। इस प्रकार हर्षोल्लास से उत्सव मनाते देख लीलावती ने उत्सुकता पूर्वक उनसे जाकर पूछा कि, ‘हे पुण्यआत्मा गण! आप लोग हर्ष से भरे यह क्या कर रहे हैं? कृपया मुझे भी बताये।’ उन्होंने कहा, ‘ भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष अष्टमी को दिन के समय वृषभानु के यहां रावल ग्राम में श्रीराधा जी का जन्म हुआ था। हम लोग उसी का व्रत करके महोत्सव मना रहे हैं।
इस व्रत को करके बहुत बड़े बड़े पापों का विनाश हो जाता हैं। उनकी बात सुनकर लीलावती ने भी व्रत करने का निश्चय किया । देवयोग से सर्प ने उसको डस लिया। जिससे उसकी मृत्यु हो गई। उसने बड़े पाप किये थे अतएव हाथों में पाश लिए यमराज दूत उसे लेने आ गये तभी विष्णु दूतों ने आकर चक्र से यमपाश को काट दिया। लीलावती सर्वथा पाप मुक्त हो गई और विष्णु दूत उसे गौलोक लें गये।
ब्रह्माजी ने कहा इस प्रकार पापों का नाश करने वाले और राधा रानी श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय राधा अष्टमी के व्रत को जो लोग नहीं करते उन्हें श्रीकृष्ण की पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती। यदि मनुष्य श्रीराधा जी की पूजा किये बिना ही श्रीकृष्ण की पूजा करता है तो उसे पूजा के फल की प्राप्ति नहीं होती।
भगवान श्रीकृष्ण के बिना राधा जी अधूरी है और राधा के बिना श्रीकृष्ण।
बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।
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