By- VARUN SINGH GAUTAM
दर्द दिलों में दृग अंगारों के
बिखरी मैं दास्ताँ के पन्नों से
लौट आ तन्हा पतझड़ व्योम के
पिक वसन्त प्रतीर के दृश्य अतुल
स्वप्निल धार असीम तुहिन में
बढ़ चला क्षितिज किरणों में , मैं समीर
मत रोक मुझे प्रस्तर पन्थ तड़ित्
मैं दीवाने मीत स्वप्न तमन्नाओं के
तरणि तपन शृङ्गार रग – रग में
द्विज प्रतिबिम्बि मधुकर प्याले
आभा कस्तूरी मत्स्य – सी सौन्दर्य
सिन्धु – सी वनिता यामिनी हंस
विहग ध्वज लहरी सरित् किश्त
रङ्गमञ्च रसिक नहीं पन्थ रथी हूँ
विकीर्ण स्यायी लीन स्निग्ध में कुत्सित
कुण्ठित भव विभूत नहीं स्वप्निल
बीन स्वर झङ्कृत स्पन्दन में
रागिनी चक्षु हूँ मैं प्रलय प्रचण्ड के
प्रथम जाग्रति थी करुणा कलित में
विकल चल शून्य हूँ बिन्दु कल के
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
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