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क्यों मनाया जाता है गोवर्धन, क्या है इस पूजा का महत्व
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गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। गोवर्धन पूजा को अन्न कूट का पर्व भी कहा जाता है। गोवर्धन पूजा में विभिन्न प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित किया जाता है, इसी वजह से इस पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा है।
गोवर्धन पूजा श्री कृष्ण के द्वापर युग से चली आ रही है। इस पूजा का क्या महत्व है और इसे क्यों मनाया जाता हैं? तो आइए जानते हैं.
विष्णु पुराण में गोवर्धन पूजा के महत्व का वर्णन देखने को मिलता है। कहा जाता है कि देवराज इंद्र को अपनी शक्तियों पर अंहकार हो गया था और भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र के अंहकार को तोड़ने के लिए एक लीला रची थी। इस कथा के अनुसार एक समय गोकुल में लोग हर्षोल्लास के साथ गीत गा रहे थे और नाना प्रकार के पकवान बना रहे थे। यह सब देखकर बालकृष्ण ने यशोदा मइया से पूछा कि आप लोग किस उत्सव की तैयारी कर रहे हैं? मां यशोदा ने कहा कि हम देवराज इंद्र की पूजा कर रहे हैं।
माता यशोदा के जवाब पर कृष्ण ने फिर पूछा कि हम इंद्र की पूजा क्यों करते हैं? तब यशोदा मां ने कहा कि, इंद्र देव की कृपा से अच्छी बारिश होती है और अन्न की पैदावार होती है, हमारी गायों को चारा भी मिलता है। माता यशोदा की बात सुनकर कृष्ण ने कहा कि, यदि ऐसा है तो हमें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि हमारी गाय वहीं चरती है, वहां लगे पेड़-पौधों की वजह से बारिश होती है।
कृष्ण की बात सुनकर सभी गोकुल वासियों ने गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू कर दी। यह सब देखकर देवराज इंद्र क्रोधित हो गए और अपने इस अपमान का बदला लेने के लिए मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। प्रलयकारी वर्षा देखकर सभी गोकुल वासी घबरा गए। तभी भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को संकट से बचाने के लिए गोवर्धन पर्वत को छोटी सी अंगुली पर उठा लिया और समस्त ग्राम वासियों को पर्वत के नीचे शरण दी। यह देखकर इंद्र ने वर्षा और तेज कर दी लेकिन 7 दिन तक लगातार मूसलाधार वर्षा के बावजूद गोकुल वासियों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
इसके बाद इंद्र को अहसास हो गया कि मुकाबला करने वाला कोई साधारण मनुष्य नहीं हो सकता। इंद्र को जब यह पता चला कि वह भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण है। तब देवराज इंद्र लज्जित हुए और भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगी। और तभी से सारे लोग गोवर्धन पूजा का पर्व मनाने लगे। इस पौराणिक घटना के बाद से गोवर्धन पूजा की शुरुआत हुई।
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