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बचपन (कविता) – TEJPAL KUMAVAT
कितने प्यारे थे वो दिन
जब मस्त घूमा करते थे
ना फिकर थी भविष्य की
बस नंगा घूमा करते थे
खेला करते थे सारा दिन
रात को अपना आसरा था
ना जिंदगी की कोई फिकर थी
बस खेलने का बहाना था
रोते थे जब हम
मां चुप करा देती थी
ना किसी से कोई दुश्मनी थी
डांट से बचाने के लिए
दादी मां हमारा साथ देती थी
आज बड़े हो गए हैं हम
याद वो दिन आते हैं
किसी भी वक्त खाना खा लेते थे
यदि डांट पड़ती तो
साथ में डांट खाते थे
स्कूल जब जाते थे
मम्मी 1 रुपया देती थी
एक रुपैया भी करोड़ों की खुशी देता था
जब मां स्कूल जाते वक्त देती थी
साथ खेलने के बहाने अनेक थे
रोने हंसने के बहाने अनेक थे
रोते हुए भी हंसा देते थे
दोस्तों के पास हंसाने के बहाने अनेक थे
छोटे छोटे घर बनाकर खेला करते थे
अपनी मस्ती में घूमा करते थे
साथ मिलकर काम करते
बंद घरों में लुका छुपी खेला करते थे
जेब में हर वक्त कंचे रखते थे
शाम को महफिले सजाया करते थे
जब कोई अपने घर से खाने की चीज लाता था
खुशी-खुशी बांट कर खाते थे
खुशियों का अपने पास खजाना था
दिन-रात दोस्ती का सहारा था
कभी हंसते कभी झगड़ते
बस यही एक काम हमारा था
गिल्ली डंडे से शुरुआत थी
रोते रोते स्कूल जाते थे
कंचो से जेब भरी रहती थी
झुंड में खेला करते थे
बनाकर गेंद कपड़े की
सितोलिया खेला करते थे
कभी अदालत कभी फिल्मों का
अपना रोल किया करते थे
कभी चोर कभी पुलिस बनकर
एक दूसरे के पीछे भागा करते थे
BY – TEJPAL KUMAVAT
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