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तुलसी विवाह पूजन क्यों मनाया जाता है?
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कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मां तुलसी और शालिग्राम भगवान का विवाह होता है।
पुराणों के अनुसार श्री हरी योग निद्रा से 4 माह के बाद कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी के दिन अपने धाम वैकुण्ठ लौटते हैं। इसे प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है, दिन उपवास करने का विशेष महत्व है। पद्मपुराण के अनुसार इस दिन व्रत करने से सारे पापों और कष्टों से मुक्ती मिल जाती है। अगले ही दिन द्वादशी तिथि को तुलसी विवाह होता है तुलसी माता का विवाह भगवान विष्णु के स्वरूप शालीग्राम के साथ कराया जाता हैं इसलिए हर साल देवउठनी एकादशी के अगले दिन तुलसी विवाह बड़े ही धूम धाम से सभी के घरों में मनाया जाता है।
तुलसी पूजन का महत्व
तुलसी के पौधे में लाल रंग की चुनरी के साथ सोलह श्रृंगार करना चाहिए। इसके साथ ही इस मंत्र को बोले- ‘महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते। माना जाता है कि इस तरह से चुनरी चढ़ाने से देवी तुलसी के साथ भगवान शालिग्राम भी प्रसन्न होते हैं और सुख-शांति और धन-वैभव की प्राप्ति होती है फिर तुलसी के पौधे के पास घी का दीपक जलाएं और पूरी के साथ खीर या हलवा का भोग अर्पित करें। करने से सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।
माता तुलसी को पवित्र और पूजनीय माना जाता है. तुलसी को मां लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। कहते हैं कि तुलसी विवाह कराने से अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता है।
भगवान शालिग्राम से पहले क्या तुलसी का विवाह दानव के साथ हुआ था…? आइए जानते हैं…
शास्त्रों के अनुसार पिछले जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था। भगवान गणेश के श्राप के कारण वृंदा का विवाह असुर शंखचूड़ के साथ हो गया। एक बार देवता और दानवों में युद्ध छिड़ गया , जिससे वृंदा ने संकल्प लिया कि जब तक उसका पति रणभूमि से जीतकर वापस नहीं लैटेगा वो अपना संकल्प नहीं तोड़ेगी।
तब सभी देवी- देवता विष्णु जी के पास पहुंचे और उनसे इस समस्या को हल करने की प्रार्थना की। भगवान विष्णु जानते थे कि वृंदा उनकी सच्ची भक्त है और उसका संकल्प तोड़े बिना शंखचूड़ को हराना असंभव है। तब भगवान विष्णु ने शंखचूड़ का रूप धारण किया और उसके महल पहुंच गए। महल में अपने पति को आता देख वृंदा खुश हो गई और अपना संकल्प तोड़कर अनुष्ठान से उठ गईं। जैसे ही वृंदा ने अपना संकल्प तोड़ा, देवताओं ने शंखचूड़ को मार गिराया और शंखचूड़ का सिर घर के आंगन में आ गिरा।
वृंदा को जब ये बात पता चली तो उस पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। तभी उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया। इसके बाद वृंदा अपने पति के सिर को लेकर सती हो गई। कहते हैं कि उसी जगह एक पौधा निकला जिसे भगवान ने ही तुलसी नाम दिया। भगवान विष्णु ने कहा कि आज से मेरा एक अंश इस पौधे में रहेगा और सारा जग हमें तुलसी-शालिग्राम मानकर ही पूजेगा। बिना तुलसी के मैं कोई भोग स्वीकार नहीं करूंगा। कहते हैं कि उसी दिन से तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह कराने की परंपरा चली आ रही है।
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