By- VARUN SINGH GAUTAM
मैं अग्निपथ का अग्निवीर
नायक था किन्तु अब नहीं
महानायक का भी स्वप्न नहीं
देखूं भी अब कैसे यहाँ पे
दूधमुंहा चलेगी सरहद तैयारी.
कैसे बचे, किन्हें कहें ये दर्द जुबानी
क्या कहूँ, जो सोचा, देखा नहीं
कैसे बताऊँ ये उपद्रवी संसार
किन्तु दुष्कर्ता यहाँ पर देखो
अनुकूल नहीं प्रतिकुल यहाँ
भौकाल हैं ये, भ्रष्ट हैं ये
न समझ हैं ये, अल्हड़ हैं ये
आंतकवादी के बहकावे में सब
देश तड़प रहा है, रो रहा
जल रहा है बस धू धू
तप रहा, ख़ाक हो रहा भारत
चीख चीख के बर्बाद हो रहा भारत
निः शब्द, निः स्तब्ध हैं यहाँ के शहंशाह /सरकार
टुकुर- टुकुर सब देख रहे बस
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