By- VARUN SINGH GAUTAM
शिक्षा दायिनी मेरे गुरुवर
प्रभा प्रज्वलित हो तिमिर में
मैं छत्रछाया हूँ आपके अजिर के
पराभव अगोचर आपके चरण में
पथ – पथ प्रशस्त रहनुमा हमारे
कुसीद में साँवरिया आपके भव
घन – घन वारि इल्म विस्तीर्ण
अक़ीदा प्रज्ञा नय संस्कार अलङ्कृत
आराध्य करूँ मैं कलित नव्य हयात
पारावार मीन हूँ तड़पित खल
तेरी करुणा आनन्दित सरोवर
अवलम्ब श्रीहीन अंगानुभूति धरा
निश्छल पैग़ाम तहज़ीब बसेरा
शून्य शिथिल में मै तर्पित
दामिनी प्रारब्ध अकिञ्चन धार
दहलीज़ तेरी याचक नूतन
चक्षु बूँद स्मृति धूल मैं
नतशिर सदा उज्ज्वलित बिरद
गिरि दिव में मार्तण्ड स्पृहा
जय ध्वनि दीप्ति क्षितिज में
यह कविता मँझधार पुस्तक से वरुण सिंह गौतम की स्वंयकृति है।
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