Varun Singh Gautam

पङ्ख

By- VARUN SINGH GAUTAM तितली रानी घूमड़ – घूमड़करकहाँ जा रही कौन जानें ?कभी इधर गुम होती कभी उधरन जानें कहाँ वों चली रङ्ग मनाने ! कल – कल कलित पुष्प आँगन मेंपन्थ – पन्थ पङ्ख क्यों बिखेरती ?छोटी – छोटी रङ्ग – बिरङ्गी शहजादीसौन्दर्य – सी क्यारी रङ्ग फैलाएँ बढ़े चलों उस गुञ्जित किरणों …

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तन्हा मैं

By- VARUN SINGH GAUTAM उड़ जा धूल उस महिधर मेंयहाँ धारा धार में द्वेष भरामत रूक ढ़ाल तरणी को जगाप्रवार वसन्त में गरल व्याल पथ – पथ प्रतिशोध क्यों ज्वाला ?अवशी जीवन अवृत्ति विषादछीन लिया तिनका नहीं है कुन्तलओझल भी नहीं जीवन चषक दिलकशी भरी कुच कीस हरणलूट गया हूँ सदेह सीकड़ मेंतीहा नहीं शाण …

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पङ्खुरी

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM टूट पड़ा पलकों से आँसू बनकेमत पूछ मेरी हालात इस गर्दिशों मेंबिखर गया हूँ पङ्खुरी के पङ्ख सेमैं साँझ बन चला इस दीवानें के अजनबी राही में गस्ती , ठहराव कहाँ मुझे ?व्यथा भरी शहर में मैं भी फँस गयाक्यों काँटे भर पड़ी इस तन में ?इस शोले वेदन में , …

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अग्निपथ का अग्निवीर

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM मैं अग्निपथ का अग्निवीरनायक था किन्तु अब नहींमहानायक का भी स्वप्न नहींदेखूं भी अब कैसे यहाँ पेदूधमुंहा चलेगी सरहद तैयारी.कैसे बचे, किन्हें कहें ये दर्द जुबानी क्या कहूँ, जो सोचा, देखा नहींकैसे बताऊँ ये उपद्रवी संसारकिन्तु दुष्कर्ता यहाँ पर देखोअनुकूल नहीं प्रतिकुल यहाँभौकाल हैं ये, भ्रष्ट हैं येन समझ हैं ये, …

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सतरङ्गी

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM सुबह – सुबह देखो सूरज आयाइसकी कितनी है सुन्दर लालिमा !नीलगगन सतरङ्गी स्वरूप – सीवसुन्धरा जीविका की परवरिश है खेत – खलियान भी है हरे – भरेसुन्दर‌ – सुन्दर कितने मोहक !छोटे – छोटे कलित कलियाँ तरुवरकुसुम मीजान कितने मृदु धरा ! खेचर कलरव कितने अनमोल !कितने दिलकश पन्थ पङ्ख निराले …

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आँगन

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM बलाहक ऊर्मि का दहाड़ देखोरिमझिम – रिमझिम मर्कट दामिनीदेखो कैसे बुलबुलें भी उर्दङ्ग मचाती ?वों भी क्षणिक उसी में असि होती क्लेश विरह तनु अपने आँगन सेक्या विशिखासन विशिख टङ्कार ?कोई कुम्भीपाक कोई विहिश्त में विलीनक्या दैव प्रसू , तड़पन सुनें कौन ? बूँद – बूँद खनक प्रतीर दृग धोएँइस उद्यान …

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शून्य हूँ

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM दर्द दिलों में दृग अंगारों केबिखरी मैं दास्ताँ के पन्नों सेलौट आ तन्हा पतझड़ व्योम केपिक वसन्त प्रतीर के दृश्य अतुल स्वप्निल धार असीम तुहिन मेंबढ़ चला क्षितिज किरणों में , मैं समीरमत रोक मुझे प्रस्तर पन्थ तड़ित्मैं दीवाने मीत स्वप्न तमन्नाओं के तरणि तपन शृङ्गार रग – रग मेंद्विज प्रतिबिम्बि …

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विजय गूञ्ज

By- VARUN SINGH GAUTAM वीर भूमि की है तीर्थ धरोहरविजय गूञ्ज हमारी कारगिल कीपथ – पथ करता पन्थी मेरी पुकारशौर्य मेरी धड़कन की गङ्गा बहार यौवन बढ़ चला सिन्धु में ज्वारराष्ट्र एकता अखण्डता का करें हुँकारआर्यावर्त स्वच्छन्द के मस्तष्क धरा मैंइन्कलाब के रङ्गभूमि में मैं पला तड़पन मेरी माँ की एक पैग़ामचिङ्गारी मेरी अंकुरित बचपन …

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कबीर

By- VARUN SINGH GAUTAM निर्विकार ब्रह्म पराकाष्ठाप्रीति मानिन्द कलेवर भीरूकबीर माहात्म्य निर्वाण आस्मांमार्गिक तुङ्ग अर्णव भव अपार जकात उसूल नाही यथार्थ रहीअमाया परहित सर्वतोभावआडम्बर का माहुर व्यालअधिक्षेप पिपासु अगण्य अश्मन्त आरसी आगस अध्याहार नाहीवाम जगत अस्मिता जहलइत्मीनान मृगाङ्क में नखत हैकर रहा इख़्तियार अर्दली धीर शमा अङ्गार प्रस्फुटित नाहीप्रत्यागमन कर जा तमिस्त्रा मेंज्योति धवल समर …

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शृङ्गार अलङ्कृत

By- VARUN SINGH GAUTAM प्राण तरुवर को अलङ्गितअहर्निश स्पृहा मेरी लोकशून्य मेंक्या व्युत्सगँ , क्यों भृश ब्योहार ?इस तरस आहु कराह रहा अपराग हुँकार क्यों जग को ?तन – मन व्यथा लिप्त वारिधिमेरा जीवन तिमिर अनल्प – सीहोती मेरी क्यों व्याल हलाहल ? प्राण पखेरू विप्लव प्रतीरउर्वी छवि उदक शोणित मेंघनवल्लभी तरङ्गिणी अरिन्द ममगलिताङ्ग अविकल …

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विकल पथिक हूँ मैं

By- VARUN SINGH GAUTAM मैं चला शून्य के स्पन्दन मेंहिम कलित स्वर्ण आभा स्वर मेंन्योछावर हो चला इस जग सेप्रतिबिम्बित हूँ प्रणय के बन्धन सेक्षितिज आद्योपान्त विस्मृत – सीउऋण हूँ पतझड़ वसन्त के अशून्य उषा कुत्सित क्रन्दन गगन केयौवन प्रभा है सुरभीत प्राण मेंप्रज्वलित – सी राग – विराग के स्वप्न मेंउपाहास्य उपास्य के त्याज्य …

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अकेला

By- VARUN SINGH GAUTAM मैं अकेला रह गया हूँ बसहताश भरी ज़िन्दगी व्यर्थ मेरेपूछता नहीं कोई इस खल मेंमोहताज भरी मैं अवलम्ब स्नेही केफूट – फूट तीर रहा रुदन मेरी कायास्वप्न धूमिल मेरी असमञ्जस में बावला हूँ विकल तन के तन्हा मैंनिन्दा तौहीन मेरे शृङ्गार भरीपथ – पथ समर्पण होती व्यथा मेरीफिर भी अपरिचित – …

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साँझ हुई

By- VARUN SINGH GAUTAM साँझ होने को है , हुईतम तिमिर में ढ़कती जाती हौले – हौलेवक्त भी लुढ़कते विलीन मेंमचल – मचलकर होते तस्वीर ऋजुरोहित सप्तरङ्गी अचिर में छँटीप्रस्फुटित तीर व्योम में होते शून्यअपावर्तन ओक में खग प्रस्मृतक्रान्ति धार पड़ जाती शिथिल शशाङ्क ज्योत्स्ना अपरिचित कामिनीत्वरित ओझल वल्लभ ऊर्मि किञ्चितमृगनयनी रणमत्त अधीर अगोचरनिवृत्ति निवृति …

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क्यों है तड़पन ?

By- VARUN SINGH GAUTAM क्या तृष्णा टूट पड़ी यहाँ ?इस भिखमङ्गों के बाजारों मेंकोई अट्टालिका खड़ा करता जाताकिसी की अँतड़ियाँ अंगारों में पथ – पथ पर क्या कुर्बानी हैं ?त्राहि – त्राहि कर रहा मानवभ्रममूलक का जञ्जाल यहाँकोई रोता तो कोई चिल्लाता यहाँ हाहाकार की नाद देखो गूञ्ज उठीं !अशरत की पुजारी बन बैठे यहाँज़ख़्म …

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मैं हूँ निर्विकार

By- VARUN SINGH GAUTAM पथिक हूँ उस क्षितिज केकर रहा जग हुँकार मेरीलौट आया हूँ उस नव स्पन्दन सेकल – कल कलित कुसुम धरा पथ – पथ करता मेरी स्पन्दनहोती प्रस्फुटित जलद सागर सेक्रन्दन के जयघोष शङ्खनाद मेरीतम समर में आलोक अपना पलकों में नीहार मन्दसानु नलिनआगन्तुक के अन्वेषण प्रीति कलीमैं प्रवीण इन्दु प्राण ज्योत्स्नाविस्तृत …

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