गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है
गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है।गणेश भगवान ज्ञान और बुद्धि के देवता माने जाते हैं। इन्हें गणपति भी कहते हैं, जहां गण का अर्थ- पवित्र और पति का अर्थ- स्वामी हैं। गणेश चतुर्थी का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश भगवान का जन्म हुआ था। गणेश जी की प्रतिमा को 9 दिन पूजा जाता हैं। और 10 वें दिन बड़ी धूमधाम से अनन्त चतुर्दशी के दिन मूर्ति का विसर्जन किया जाता हैं।
गणेश चतुर्थी कब मनाईं जाती हैं।
गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। यह हरतालिका तीज के अगले दिन मनाई जाती हैं। इस तीज के त्यौहार में सुहागिन स्त्री अपने पति के लिए व्रत रखती है और कन्याएं अपने मनचाहे वर के लिए कामना करती हैं। गणेश प्रतिमा की स्थापना के 10 दिन तक पूजा की जाती है और अनन्त चतुर्दशी के दिन प्रतिमा को विसर्जित कर दिया जाता हैं।
गणेश चतुर्थी की कहानी
गणेश चतुर्थी से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं।
एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था। गणेशजी ब्रह्माजी की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सम्मुख प्रकट हुए। और उनसे से वर मांगने को कहा तो उन्होंने मांगा कि मुझे सृष्टि की रचना करने का कभी भी मोह न हो। गणेशजी जैसे ही ‘तथास्तु’ कहकर चलने लगे, उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमा उनपे हंसने लगे। चंद्रमा के इस व्यवहार पर गणेशजी ने क्रूध होकर चंद्रमा को शाप दिया कि आज से कोई तुम्हारा मुख नहीं देखना चाहेगा।
गणेशजी चंद्रमा को शाप देकर अपने लोक चले गए और चंद्रमा शाप के कारण कहीं जाकर छिप गये। चंद्रमा के बिना प्राणियों को बहुत कष्ट हुआ। सभी के कष्ट को देखकर ब्रह्माजी की आज्ञा पाकर सभी देवताओं ने व्रत रखकर गणेशजी को प्रसन्न किया और वरदान वापस लेने के लिए कहा। गणेशजी ने कहा चंद्रमा शाप से मुक्त तो हो जाएगा, लेकिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा, उसे चोरी आदि का झूठा कलंक जरूर लगेगा। किंतु जो मनुष्य प्रत्येक द्वितीया को दर्शन करता रहेगा, वह इस कलंक से बच जाएगा। इस चतुर्थी को व्रत करने से सारे दोष छूट जाएंगे।
यदि किसी को गलती से चांद दिख जाए तो दोष को मिटाने के लिए इस मत्रं का पाठ करना चाहिए –
सिंहः प्रसेनमवधित्सिम्हो जाम्बवत हठ |
सुकुमारका मरोदिस्तव ह्यशा स्यामंतकाह ||
गणेश चतुर्थी 10 दिनों तक क्यों मनाईं जाती हैं?
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार जब महर्षि वेदव्यास जी ने गणेश जी को महाभारत की कथा 10 दिन तक सुनाई तो उन्होंने अपने नेत्र बंद कर लिये थे और जब 10 दिन बाद आंखें खोली तो देखा कि गणेश भगवान के शरीर का तापमान बहुत अधिक हो गया था। फिर वेदव्यास जी ने उसी समय निकट स्थित जलकुण्ड से गणेश जी को स्नान कराया। तब जाके उनका तापमान कम हुआ।
इसलिए गणेशजी की प्रतिमा को 10 दिन तक पूजा जाता हैं और अनन्त चतुर्दशी के दिन ही प्रतिमा को विसर्जित किया जाता हैं।
गणेश चतुर्थी मुख्य रूप से कहां मनाई जाती हैं?
यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता हैं। परन्तु मुख्य रूप से यह महाराष्ट्र में मनाया जाता हैं।
सन् 1893 में बालगंगाधर तिलक ने अंग्रेज़ो के विरुद्ध भारतीयों को एकजुट करने के लिए इस त्यौहार को चुना और विशाल आयोजन किया । जिसमें कई लोगों ने उनका समर्थन किया और ज्यादा से ज्यादा लोगों ने इस आयोजन में भाग भी लिया। बालगंगाधर तिलक ने इस आयोजन को महाराष्ट्र में किया तभी से यह त्यौहार महाराष्ट्र में और भी जोर शोर से मनाया जाता हैं। इससे पहले कभी भी यह त्यौहार सामूहिक रूप से नहीं मनाया जाता था। बालगंगाधर तिलक को अपनी बात सभी भारतीयों तक पहुंचाना था इसलिए उन्होंने इस त्यौहार को भव्य रूप में आयोजित किया और सभी को शामिल किया।
गणेश चतुर्थी भारत के अतिरिक्त और कहां मनाया जाता हैं ?
गणेश चतुर्थी का त्यौहार भारतीयों में बहुत प्रचलित हैं। वैसे तो यह मुख्य रूप से मुम्बई ( महाराष्ट्र ) में प्रसिद्ध हैं। लेकिन मुम्बई के अलावा भी ऐसी कई जगह है, जहां पर गणेश चतुर्थी 10 दिन तक बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं। यह त्यौहार माॅरीशस मे भी मनाया जाता हैं, जब 1890 में कोल्हापुर, रत्नागिरी, सतारा क्षेत्र के बहुत से मजदूर माॅरीशस में स्थित हुए, तभी से उन्होंने 10 दिन तक गणेश चतुर्थी का त्यौहार मनाना शुरू कर दिया। माॅरीशस ही नहीं बल्कि ऐसे और भी कई जगह हैं, जहां पर गणेश चतुर्थी को 10 दिन के लम्बे समय तक मनाया जाता हैं। जैसे – फिलाडेल्फिया ( अमेरिका,USA ), हाॅन्सलो चा राजा( लन्दन, UK ), बांग्लादेश, नेपाल, श्रीलंका, बाली, मलेशिया, इन्डोनेसिया, थाइलैंड, सिन्गापुर इन सब स्थानों पर भी गणेश चतुर्थी को श्रद्धापूर्वक 10 दिन तक बहुत धूमधाम से मनाया जाता हैं।
गणेश जी के 108 नाम हैं।
गणाध्यक्षिण , गुणिन, हरिद्र , हेरम्ब , कपिल , कवीश , कीर्ति, कृपाकर , कृष्णपिंगाश , क्षेमंकरी , क्षिप्रा , मनोमय , मृत्युंजय , मूढ़ाकरम , मुक्तिदायी , नादप्रतिष्ठित , नमस्थेतु ,नन्दन, अनन्तचिदरुपम, अवनीश ,अविघ्न, भीम, भूपति, भुवनपति, बुद्धिप्रिय, बुद्धिविधाता, चतुर्भुज, देवादेव , देवांतकनाशकारी, देवव्रत, देवेन्द्राशिक, धार्मिक , दूर्जा, द्वैमातुर , एकदंष्ट्र, ईशानपुत्र, गदाधर, महाबल, महागणपति, महेश्वर, मंगलमूर्ति, मूषकवाहन, निदीश्वरम, प्रथमेश्वर, शूपकर्ण, शुभम ,सिद्धिदाता, सिद्दिविनायक, सुरेश्वरम, वक्रतुण्ड , अखूरथ , अलम्पता , अमित ,बालगणपति, भालचन्द्र, बुद्धिनाथ, धूम्रवर्ण, एकाक्षर, एकदन्त, गजकर्ण, गजानन, गजवक्र , गजवक्त्र, गणाध्यक्ष, गणपति, गौरीसुत, लम्बकर्ण ,लम्बोदर ,सिद्धांथ, पीताम्बर, प्रमोद ,पुरुष , रक्त , रुद्रप्रिय, सर्वदेवात्मन, सर्वसिद्धांत, सर्वात्मन , ओमकार , शशिवर्णम, शुभगुणकानन , श्वेता , सिद्धिप्रिय , स्कन्दपूर्वज , सुमुख ,स्वरूप , तरुण,उद्दण्ड, उमापुत्र , वरगणपति , वरप्रद, वरदविनायक, वीरगणपति, विद्यावारिधि , विघ्नहर , विघ्नहत्र्ता, विघ्नविनाशन , विघ्नराज,विघ्नराजेन्द्र ,विघ्नविनाशाय ,विघ्नेश्वर, विकट,विनायक, विश्वमुख ,विश्वराजा , यज्ञकाय, यशस्कर , यशस्विन, योगाधिप।।
गणेश विसर्जन एक प्रकार से हमें ये भी बताता है कि यह शरीर मिट्टी का बना है और एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है।
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