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रस की परिभाषा भेद और उदाहरण
रस का शाब्दिक अर्थ है – आनन्द।
भरतमुनि ने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में रस के स्वरूप को स्पष्ट किया था। रस की निष्पत्ति के सम्बन्ध में उन्होंने लिखा है –
“विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः।” अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस प्रकार काव्य पढ़ने, सुनने या अभिनय देखने पर विभाव आदि के संयोग से उत्पन्न होने वाला आनन्द ही ‘रस’ है। काव्य को पढ़ने, सुनने से उत्पन्न होने वाली आनंद की अनुभूति को ही रस कहा जाता हैं।
रस, छंद और अंलकार काव्य के अंग है।
रस को इंग्लिश मे Sentiments कहा जाता है।
रस के अंग
रस के चार अंग स्थाई भाव, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव होते हैं।
1. स्थायीभाव
स्थाई भाव रस का पहला एवं सर्वप्रमुख अंग है। भाव शब्द की उत्पत्ति भ् धातु से हुई है। जिसका अर्थ है संपन्न होना या विद्यमान होना।
अतः जो भाव मन में सदा अभिज्ञान ज्ञात रूप में विद्यमान रहता है उसे स्थाई या स्थिर भाव कहते हैं।
प्रत्येक रस का एक स्थाई भाव होता हैं।
अर्थात कुल स्थाई भाव की संख्या 9 हैं क्योंकि रसों की संख्या भी 9 हैं।
भरतमुनि के अनुसार मुख्य रसों की संख्या 8 थी शांत रस को इनके काव्य नाट्य शास्त्र में स्थान नहीं दिया गया।
मूल रूप से रसों की संख्या 9 मानी गई है जिसमें श्रृंगार रस को रस राजा कहा गया।
किन्तु बाद में हिंदी आचार्यों के द्वारा वात्सल्य और भागवत रस को रस की मान्यता मान ली गई।
इस प्रकार कुल रसों की संख्या 11 हो गई अतः स्थाई भाव की संख्या भी 11 हो गई।
2. विभाव
जो व्यक्ति वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं। विभाव 2 प्रकार के होते हैं।
(a) आलंबन विभाव
(b) उद्दीपन विभाव
(a) आलंबन विभाव :- जिसका आलंबन या सहारा पाकर स्थायी भाव जगते हैं आलंबन विभाव कहलाता हैं।
जैसे :- नायक नायिका।
आलंबन विभाव के दो पक्ष होते हैं।
(i) आश्रयालंबन :- जिसके मन में भाव जगे वह आश्रया लंबन कहलाता हैं।
(ii) विषयालंबन :- जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगे वह विषया लंबन कहलाता हैं।
उदाहरण :- यदि राम के मन में सीता के प्रति रति का भाव जगता हैं तो राम आश्रय होगें और सीता विषय।
(b) उद्दीपन विभाव :- उद्दीपन का अर्थ है उद्दीप्त करना भड़काना या बढ़ावा देना जो जागृत भाव को उद्दीप्त करें वह उद्दीपन विभाव कहलाते हैं।
जैसे :- चाँदनी, कोकिल कूजन, एकांत स्थल, रमणीय उधान, नायक या नायिका की शारीरिक चेष्टाएं आदि।
3. अनुभाव
मनोगत (मन में उतपन्न) भाव को व्यक्त करने वाली शारीरिक प्रक्रिया अनुभव कहलाती हैं।
यह 8 प्रकार की होती हैं स्तंभ, स्वेद, रोमांच, भंग, कंप, विवर्णता, अश्रु और प्रलय
4. संचारी भाव
हृदय/मन में संचरण (आने-जाने) वाले भावों को ही संचारी भाव कहा जाता हैं
यह भाव स्थाई भाव के साथ उतपन्न होकर कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं।
अर्थात यह स्थाई भाव मन में स्थाई रूप से नहीं रहते हैं।
संचारी भाव की संख्या 33 होती हैं।
हर्ष, विषाद, श्रास, लज्जा, ग्लानि, चिंता, शंका, असूया, अमर्ष, मोह, गर्व, उत्सुकता, उग्रता, चपलता, दीनता, जड़ता, आवेग, निर्वेद, धृति, मति, बिबोध, वितर्क, श्रम, आलस्य, निद्रा, स्वप्न, स्मृति, मद, उन्माद, अवहितथा, अपस्मार, व्याधि, मरण।
रस के प्रकार
रस 11 प्रकार के होते हैं।
1. श्रृंगार रस
जहां नायक और नायिका की अथवा महिला पुरुष के प्रेम पूर्वक श्रेष्ठाओं क्रिया कलापों का श्रेष्ठाक वर्णन होता हैं वहां श्रृंगार रस होता हैं।
श्रृंगार रस का स्थाई भाव रति होता हैं।
यह दो प्रकार का होता हैं।
1. संयोग श्रृंगार
2. वियोग श्रृंगार
1. संयोग श्रृंगार – जब कविता में नायक – नायिका के मिलन का वर्णन किया जाए, तब संयोग शृंगार होता है।
उदाहरण :-
चितवत चकित चहूँ दिसि सीता। कहँ गये नप – किसोर मन चिंता।।
लता ओट तब सखिन्ह लखाए। स्यामल गौर किसोर सुहाए।।
देख रूप लोचन ललचाने। हरषे जनु निज निधि पहिचाने।।
थके नयन रघुपति छवि देखे। पलकन्हिहूँ परिहरी निमेषे।।
अधिक सनेह देह भइ भोरी। सरद ससिहिं जन् चितव चकोरी।।
लोचन मग रामहि उर आनी। दीन्हें पलक कपाट सयानी।।
2. वियोग श्रृंगार – जब अपने प्रेमी से बिछड़ने पर वियोग की अवस्था में नायक या नायिका के प्रेम का वर्णन हो, तो उसे वियोग शृंगार कहते हैं।
उदाहरण :-
मैं निज अलिंद में खड़ी थी सखि एक रात
रिमझिम बूंदें पड़ती थीं घटा छाई थी।
गमक रही थी केतकी की गंध चारों ओर
झिल्ली – झनकार यही मेरे मन भाई थी।
करने लगी मैं अनुकरण स्व नूपुरों से
चंचला थी चमकी घनाली घहराई थी।
चौंक देखा मैंने चुप कोने में खड़े थे प्रिय,
माई मुखलज्जा उसी छाती में छिपाई थी।
2. हास्य रस
हास्य रस मनोरंजक है। ‘हास्य’ नामक स्थाई भाव अपने अनुकूल, विभाव, अनुभाव और संचारी भाव के सहयोग से अभिव्यक्त होकर जब आस्वाद का रूप धारण कर लेता है तब उसे हास्य कहा जाता है।
हास्य रस का स्थाई भाव हसी होता हैं।
उदाहरण :-
इस दौड़-धूप में क्या रखा हैं।
आराम करो आराम करो।
आराम जिंदगी की पूजा हैं।।
इससे न तपेदिक होती।
आराम शुधा की एक बूंद।
तन का दुबलापन खो देती।।
3. करुण रस
इसमें किसी प्रकार की दुख से संबंधित अनुभूति से प्ररेति काव्य रचना को पढ़ने से करुण रस उत्पन्न होता हैं।
करुण रस का स्थाई भाव शोक होता हैं।
उदाहरण :-
शोक विकल सब रोवहि रानी।
रूपु सीलु बलू तेजु बखानी।।
करहि विलाप अनेक प्रकारा।
परिहि चूमि तल बारहि बारा।।
4. वीर रस
जब काव्य में उमंग, उत्साह और पराक्रम से संबंधित भाव का उल्लेख होता हैं तब वहां वीर रस की उत्पत्ति होती हैं।
वीर रस का स्थाई भाव उत्साह होता हैं।
उदाहरण :-
मैं सत्य कहता हूँ सखे सुकुमार मत जानो मुझे।
यमराज से भी युद्ध में प्रस्तुत सदा मानो मुझे।
है और की तो बात ही क्या गर्व मैं करता नहीं।
मामा तथा निज तात से भी समर में डरता नहीं।
5. अदभूत रस
जहां पर किसी आलौरिक क्रिया कलाप आश्चर्य चकित वस्तुओं को देखकर या उन से सम्बंधित घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहाँ पर अदभुत रस होता हैं।
अदभुत रस का स्थाई भाव आश्चर्य होता हैं।
उदाहरण :-
अखिल भुवन चर अचर सब , हरिमुख में लखि मात।
चकित भई गदगद वचन विकसित दृग पुलकात।।
6. भयानक रस
जहां भयानक वस्तुओं को देखकर या भय उत्पन्न करने वाले दृश्यों/घटनाओं को देखकर मन में जो भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर भयानक रस होता हैं।
भयानक रस का स्थाई भाव भय होता हैं।
उदाहरण :-
एक और अजगरहि लखि , एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही परयो मूर्छा खाए।
7. रौद्र रस
जिस काव्य रचना को पढ़कर या सुनकर हृदय में क्रोध के भाव उत्पन्न होते हैं वहां पर रौद्र रस होता हैं। इस प्रकार की रचनाओं में उत्प्रेरण सम्बन्धी विवरण होता हैं।
रौद्र रस का स्थाई भाव क्रोध होता हैं।
उदाहरण :-
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुवादी बालक वध जोगू॥
बाल विलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनहार भा साँचा॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उत्तर देत छोडौं बिनु मारे। केवल कौशिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ भ्रम थोरे ॥
8. वीभत्स रस
जिस काव्य रचना में घृणात्तम वस्तु या घटनाओं का उल्लेख हो वहां पर वीभत्स रस होता हैं।
वीभत्स रस का स्थाई भाव घृणा होता हैं।
उदाहरण :-
हाथ में घाव थे चार
थी उनमें मवाद भरमार
मक्खी उन पर भिनक रही थी,
कुछ पाने को टूट पड़ी थी
उसी हाथ से कौर उठाता
घृणा से मेरा मन भर जाता।
9. शांत रस
वह काव्य रचना जिसमें श्रोता के मन में निर्वेद के भाव उत्पन्न होता हैं।
शांत रस का स्थाई भाव निर्वेद होता हैं।
उदाहरण :-
मन पछितैही अवसर बीते
दुरलभ देह पाइ हरिपद भुज, करम वचन भरु हिते।
सहसबाहु दस बदन आदि नृप, बचे न काल बलिते।।
10. वात्सल्य रस
माता-पिता एवं संतान के प्रेम भाव को प्रकट करने वाला रस वात्सल्य रस है।
वात्सल्य रस का स्थाई भाव स्नेह होता हैं।
उदाहरण :-
कबहूँ ससि माँगत आरि करें कबहूँ प्रतिबिंब निहारि डरैं।
कबहूँ करताल बजाइ के नाचत मातु सबै मन मोद भरें।।
कबहूँ रिसिआई करें हठि के पनि लेत सोई जेहि लागि अरें।
अवधेस के बालक चारि सदा तुलसी मन मंदिर में विहरैं।
11. भक्ति रस
जिस काव्य रचना में ईश्वर के प्रति भक्ति विश्वास के भाव उत्पन्न हो वहां पर भक्ति रस होता हैं।
भक्ति रस का स्थाई भाव वैराग्य/अनुराग होता हैं।
उदाहरण :-
मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।।
साधुन संग बैठि – बैठि, लोक लाज खोई।
अब तो बात फैल गई, जानत सब कोई।।
असुअन जल सींचि – सींचि प्रेम बेलि बोई।।
मारां को लगन लागी होनी होइ सो होई।
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