हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। हिंदी के प्रश्नों का एक सेट यहां दैनिक आधार पर प्रकाशित किया जाएगा। यहां पोस्ट किए गए प्रश्न विभिन्न आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे एसएससी, रेलवे (एनटीपीसी), बैंकिंग, सभी राज्य परीक्षाओं, यूपीएससी, आदि) में सहायक होंगे।
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लोकोक्ति
लोकोक्ति – “लोकोक्तियाँ” का अर्थ होता है “लोगों की बोलचाल की कथाएँ”। ये कथाएँ जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने वाली गहरी सीख देती हैं और सामाजिक संज्ञान को बढ़ावा देती हैं। लोकोक्तियाँ अक्सर सार्थक और अर्थपूर्ण संदेशों के साथ होती हैं जो हमारे जीवन को सरलता और गहराई से समझाने का काम करती हैं।
लोकोक्तियाँ या प्रचलित कहावतें जीवन के अनुभवों और ज्ञान को संक्षेप में व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त होती हैं। ये कहावतें आमतौर पर जनसमुदाय की सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक जीवन को प्रकट करती हैं।
लोकोक्तियों का महत्व:
सरलता और समझदारी: लोकोक्तियाँ अक्सर सरल और समझदारी होती हैं। वे जीवन के जटिल मुद्दों को सीधे और सार्थक रूप से प्रकट करती हैं।
जीवन के सिखने का स्रोत: लोकोक्तियाँ जीवन के महत्वपूर्ण सिखने के स्रोत होती हैं। वे जीवन के तथ्यों और अनुभवों के आधार पर बनी होती हैं, जो हमारे लिए महत्वपूर्ण होते हैं।
साहित्यिक और सांस्कृतिक धन: लोकोक्तियाँ साहित्यिक और सांस्कृतिक धरोहर के रूप में महत्वपूर्ण हैं। वे कविता, कहानी, और नाटकों में भी आमतौर पर उपयोग होती हैं।
संवाद का माध्यम: लोकोक्तियाँ एक अच्छे संवाद के माध्यम के रूप में कार्य करती हैं। वे व्यक्ति के विचारों और विचारधारा को साझा करने में मदद करती हैं।
सामाजिक जागरूकता: लोकोक्तियाँ सामाजिक जागरूकता को बढ़ावा देती हैं। वे विभिन्न सामाजिक मुद्दों के साथ जुड़े होती हैं और लोगों को समझाती हैं कि वे सामाजिक परिवर्तन कैसे ला सकते हैं।
भाषा की समृद्धि: लोकोक्तियाँ भाषा की समृद्धि करती हैं। वे विभिन्न भाषाओं में होती हैं और भाषा कौशल को बढ़ावा देती हैं।
सामाजिक और नैतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व: लोकोक्तियाँ सामाजिक और नैतिक मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं। वे यह दिखाती हैं कि कैसे सच्चाई, ईमानदारी, और साझेदारी महत्वपूर्ण हैं।
विचारशीलता: लोकोक्तियाँ विचारशीलता को बढ़ावा देती हैं। वे विभिन्न पहलुओं के विचारों को प्रकट करती हैं और विचारशीलता को सामर्थ्यपूर्ण बनाती हैं।
व्यक्तिगत विकास: लोकोक्तियाँ व्यक्तिगत विकास को प्रोत्साहित करती हैं। वे हमें सोचने और सीखने का मार्ग प्रदान करती हैं जो हमारे व्यक्तिगत विकास में मदद करता है।
लोकोक्तियाँ और उनके अर्थ
Q. दीवार के भी कान होते हैं- रहस्य खुल ही जाता है।
Q. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम – दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
Q. जैसा देश वैसा भेष – प्रत्येक स्थान पर वहाँ के निवासियों के अनुसार व्यवहार करना। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. जैसे नागनाथ वैसे साँपनाथ – दो नीच व्यक्तियों में किसी को अच्छा नहीं कहा जा सकता।
Q. जैसी करनी वैसी भरनी – कर्मों के अनुसार फल की प्राप्ति होना। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. जो गरजते हैं बरसते नहीं – अकर्मण्य लोग ही बढ़-चढ़कर डींग मारते है। कर्मनिष्ठ लोग बातें नहीं बनाते।
Q. ढाक के वही तीन पात – कोई निष्कर्ष न निकलना।
Q. अन्त भला सो भला – परिणाम अच्छा रहता है तो सबकुछ अच्छा कहा जाता है।
Q. अन्धी पीसे कुत्ता खाय – परिश्रमी के असावधान रहने पर उसके परिश्रम का फल निकम्मों को मिल जाता है।
Q. अन्धे के आगे रोए अपने नैन खोए – जिसमें सहानुभूति की भावना न हो. उसके सामने दुःख-दर्द की बातें करना बेकार है।
Q. अन्धों में काना राजा -मूर्खो के समाज में कम ज्ञानवाला भी सम्मानित होता है।
Q. अक्ल बड़ी या भैंस – शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि अधिक बड़ी होती है।
Q. अधजल गगरी छलकत जाय – अधूरे ज्ञानवाला व्यक्ति ही अधिक बोलता है।
Q. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग-सबका अपनी-अपनी अलग बात करना। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. अपनी करनी पार उतरनी – अपने बुरे कर्मों का फल भुगतना ही होता है।
Q. अपने घर पर कुत्ता शेर होता है – अपने स्थान पर निर्बल भी खुद को बलवान् समझता है।
Q. अपना हाथ जगन्नाथ-अपना कार्य स्वयं करना।
Q. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला व्यक्ति कुछ नहीं कर सकता।
Q. आँख के अन्धे गाँठ के पूरे मूर्ख और हठी।
Q. आँखों के अन्धे, नाम नयनसुख-गुणों के विपरीत नाम होना।
Q. आई मौज फकीर की दिया झोपड़ा फूंक – वह व्यक्ति, जो किसी भी वस्तु से मोह नहीं करता है।
Q. आगे कुआँ पीछे खाई – विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. आगे नाथ न पीछे पगहा – कोई भी जिम्मेदारी न होना।
Q. आधी तज सारी को धाए, आधी मिले न सारी पाए-लालच में सब कुछ समाप्त हो जाता है।
Q. आप भला सो जग भला- अपनी नीयत ठीक होने पर सारा संसार ठीक लगता है।
Q. आम के आम गुठलियों के दाम – दुहरा लाभ उठाना।
Q. आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास – किसी महान कार्य को करने का लक्ष्य बनाकर भी निम्न स्तर के काम में लग जाना।
Q. आदमी आदमी का अन्तर कोई हीरा कोई कंकर –
हर आदमी का गुण और स्वभाव दूसरे से भिन्न होता है।
Q. उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे – अपना दोष स्वीकार न करके उल्टे पूछनेवाले पर आरोप लगाना।
Q. उल्टे बाँस बरेली को – परम्परा के विपरीत कार्य करना।
Q. ऊधो का लेना न माधो का देना-स्पष्ट व्यवहार करना।
Q. एक और एक ग्यारह होना – एकता में शक्ति होती है।
Q. एक तन्दुरुस्ती हजार नियामत – स्वास्थ्य का अच्छा रहना सभी सम्पत्तियों से श्रेष्ठ होता है।
Q. एक तो करेला, दूसरे नीम चढ़ा- अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना।
Q. एक तो चोरी दूसरी सीनाजोरी – गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना।
Q. एक पन्थ दो काज – एक ही उपाय से दो कार्यों का करना।
Q. तीन में न तेरह में, मृदंग बजावे डेरा में – किसी गिनती में न होने पर भी अपने अधिकार का हिंडोरा पीटनी।
Q. तुम डाल-डाल हम पात-पात – प्रतियोगी से अधिक चतुर होना।
Q. तुरत दान महाकल्याण- किसी का देय जितनी जल्दी सम्भव हो, चुका देना चाहिए। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. तू भी रानी मैं भी रानी, कौन भरेगा पानी – सभी अपने को बड़ा समझेगे तो काम कौन करेगा।
Q. तेली का तेल जले, मशालची का दिल- व्यय कोई करे, दुःख-किसी और को हो।
Q. थोथा चना बाजे घना – कम गुणी व्यक्ति में अहंकार अधिक होता है।
Q. दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते – मुफ्त की वस्तु का अच्छा-बुरा नहीं देखा जाता।
Q. दाल-भात में मूसलचंद किसी कार्य में व्यर्थ टांग अड़ाना।
Q. दिन दूनी रात चौगुनी गुणात्मक वृद्धि।
Q. दीवार के भी कान होते हैं – रहस्य खुल ही जाता है।
Q. दुविधा में दोनों गए माया मिली न राम – दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
Q. एक हाथ से ताली नहीं बजती – झगड़ा एक ओर से नहीं होता। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकत – एक ही स्थान पर दो विचारधाराएं नहीं रह सकती।
Q. कभी घी घना, कभी मुट्ठीभर चना, कभी वह भी मना – जो कुछ मिले, उसी से सन्तुष्ट रहना चाहिए।
Q. करघा छोड़ तमाशा जाय, नाहक चोट जुलाहा खाय – अपना काम छोड़कर व्यर्थ के झगड़ों में फँसना हानिकर होता है।
Q. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली – दो असमान स्तर की वस्तुओं का मेल नहीं होता।
Q. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमती ने कुनबा जोड़ा – इधर-उधर से उल्टे-सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना।
Q. कागज की नाव नहीं चलती-बिना किसी ठोस आधार के कोई कार्य नहीं हो सकता।
Q. काठ की हाँड़ी केवल एक बार चढ़ती है-कपटपूर्ण व्यवहार बार-बार सफल नहीं होता।
Q. काला अक्षर भैंस बराबर – निरक्षर।
Q. का बरसा जब कृषि सुखाने – उचित अवसर निकल जाने पर प्रयत्न करने का कोई लाभ नहीं होता।
Q. चोरी का माल मोरी में जाता है – छल की कमाई यो ही समाप्त हो जाती है।
Q. जल में रहकर मगर से बैर- अधिकारी से शत्रुता करना।
Q. जहाँ चाह वहाँ राह – इच्छा शक्ति से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होता है।
Q. जहाँ देखी भरी परात, वहीं गँवाई सारी रात-लोभी व्यक्ति वही जाता है, जहाँ कुछ मिलने की आशा होती है।
Q. जाके पाँव व फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई –
जिसने कभी दुःख न देखा हो, वह दूसरे की पीड़ा को नहीं समझ सकता।
Q. जिसकी लाठी उसकी भैंस – शक्तिशाली की विजय होती है। For all pdf search on google – science ka mahakumbh
Q. जिस थाली में खाना उसी में छेद करना – कृतघ्न होना।
Q. जैसे कंता घर रहे वैसे रहे विदेश – स्थान परिवर्तन करने पर भी परिस्थिति में अन्तर न होना।
Q. थोथा चना बाजे घना – कम गुणी व्यक्ति में अहंकार अधिक होता है।
Q. दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते – मुफ्त की वस्तु का अच्छा-बुरा नहीं देखा जाता।
Q. दाल-भात में मूसलचंद – किसी कार्य में व्यर्थ टांग अड़ाना।
Q. दिन दूनी रात चौगुनी – गुणात्मक वृद्धि।
Q. तबेले की बला बन्दर के सिरे – एक के अपराध के लिए दूसरे को दण्डित करना।
Q. तीन लोक से मथुरा न्यारी-सबसे अलग, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण।
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