विकल पथिक हूँ मैं
By- VARUN SINGH GAUTAM मैं चला शून्य के स्पन्दन मेंहिम कलित स्वर्ण आभा स्वर मेंन्योछावर हो चला इस जग सेप्रतिबिम्बित हूँ प्रणय के बन्धन सेक्षितिज आद्योपान्त विस्मृत – सीउऋण हूँ पतझड़ वसन्त के अशून्य उषा कुत्सित क्रन्दन गगन केयौवन प्रभा है सुरभीत प्राण मेंप्रज्वलित – सी राग – विराग के स्वप्न मेंउपाहास्य उपास्य के त्याज्य …