आत्मशून्य मैं
आत्मशून्य मैं By- VARUN SINGH GAUTAM आत्मशून्य मैंहोना चाहता कबसे!एक वक्त विस्मृत-सीस्मृतियाँ की गीतगूंजायमान है.. निरन्तर,इसे समरशेष बचे हैंधनञ्जय के स्वर!देवदत्त नामक शंखनादघनघोर भूतलाकाश तकप्रतीतमान् प्रदीप्त-सीदेखो कोई सज है… शिथिल इन्द्रियोंजाग्रत करइन्द्रियां भी भरीकिस उच्चट् को नहींउच्छाह में कहोपर, पर बदन प्रियया वदनपरिणीता पान हैया पुरूष…. S. NO. VARUN SINGH GAUTAM 1 एक घड़ी या …