हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। यहां पर पुष्पा साहू मीरा जी की कविता प्रकाशित किया जाएगा। आप सभी इसका आनंद लीजियेगा।
PUSHPA SAHU KI KAVITA

शीर्षक:- रेडियो और तुम
हाँ…. तुम भी अब उस पुराने टूटे फूटे बेकार पड़े रेडियो की तरह हो गये हो, जिसे मैंने कभी बहुत शौक से खरीदा था | जो कभी मुझे मेरी हर एक चीज
से कहीं ज्यादा प्रिय हुआ करता था |
हाँ… बिल्कुल उसी तरह जिस तरह
तुम मेरे सबसे प्रिय हो गये थे।
उस बेकार पड़े रेडियो की तरह जिसे
ना तो फेकने का मन करता है,
ना कबाड़ में बेचने का और ना ही
अब वो किसी काम का है |
हाॅं… बिल्कुल उसी तरह अब तुम
भी हो गये हो |
जो किसी काम का नहीं है फिर भी ना छोड़ने का मन करता है, ना ब्लॉक करने का, ना ही तुम्हारा नंबर डिलीट करने का, ना तुम्हारी कोई भी आईडी डिलीट करने का । बस पड़े रहते हो तुम मेरे फोन के किसी कोने में चुपचाप शांत से।
व्हाट्सएप हो या फोन बुक में तुम्हारा नंबर बस पड़ा है मेरे फोन में बिल्कुल उसी टूटे फूटे पुराने रेडियो की तरह
घर के किसी कोने में चुपचाप शांत |
जिसपे कभी कभी नज़र अकस्मात ही चली जाती है जैसे तुम्हारी प्रोफाइल पर नज़र अकस्मात पड़ जाती है।
हाँ…. सच में अब एक जैसे हो गये हो मेरे लिए तुम और रेडियो।
पुष्पा साहू मीरा
प्रयागराज उत्तर प्रदेश