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DR. PRAMOD JHA KI KAVITA

शीर्षक:- चिन्ता
हमर इर्द गिर्द
एकटा चिड़ै
हरदम चकभौर कटैत रहैये
आष्चर्य तँ ई जे-
ने ओकरा पाँखि छै
आ ने पयर
रंग रूप आस्वभाव मे सेहो
ने मायक वात्सल्यता छै
आ ने पिताक मृदुलता
ओ ने आकाश मे रहैत अछि
ने धरती पर
अदृश्य.रूप मे ओ
खोता बना लेलक अछि
हमर माथ पर
अजगुत तँ ई जे
ओकरा पेट मे हरदम
भूख पियासक अगराही
लागल रहैत छैक
तेँ ओ हरदम नोचि नोचिके
हमर देहक सुवदगर मौस
खाइत रहैये,आँजुरक आँजुर
लाल टुह टुह खून पिबैत रहैये
निस्चेष्ट परल परल हम
तकैत रहै छी टुकुर टुकुर
निरुपाय असहाय
ओ खुनीमा चिड़ै आर क्यो नै
छोट छिन ओकर नाम छै
जीवित हन्ता चिन्ता /
शीर्षक:- जिन्दगी
रुइ सी उड़ती फिरती
तितली सी फरफराती
वेचैन जिन्दगी अपनों को ढूँढ़ती
आस पास अरोस परोस
इर्द गिर्द इस सुनसान जगह में
पर सब बहम ही बहम
और इस बहम की पिंजरे में
बन्द मेरी जिन्दगी
फरफराती छटपटाती अकुलाती
मुक्त आकाश की ओर कभी निहारती
कितने बेवस नयनों से !
अरे! कोई तो मिले
कहे प्यार भरी दो बातें
आओ ! जी लो !!
सुकून भरी अमरित सी जिन्दगी
शीर्षक:- मदारी का बन्दर
ऐ बेरका जाड़ा
खेप लिया यार
का कहूँ तोहरा
कैसै कैसे काटा
ई जानलेबा ठाड़ा ।
स्वेटरो फटल है
कइये जगह से
सीयैन हटल है
जगह जगह से
ऊ भी फल्लर बेडौल
अंगा और पजेमा धोतिया
मैल किट किट
ऊहो नाहीं जोड़ा
जवाहर कोटवा
दिये रहे बीच बाली बिटिया
पौरे साला दुशाला के साथ
जैसन तैसन काट रहे है ई चंडलवा जाड़ा ।
दर दिहारी कै कै के
काट काट के पेटवा
जोड़ रक्खे हैं
दस पनरह हजार रुप्पा
गाँव में घरवा बनाबै के है
अपना घर•••••
तोहरे त’ सब पता हौ
हमरे घरवा में अभी
चान सुरुज के दर्शन
बिना अराधने के ही
साच्छात हो जात है साच्छात••••
ऊपर वाले का लाख सुक्कर है
घरनी मिली सुघरनी
नाहीं तो का हाल होता हमरी
हम ही जानत है
चार चार वच्चे ई गरीबी मे
कैसे कैसे पाली ऊ ।
विना शबद मूहँ से निकाले
गौ है गौ विचारी
सम्हाल ली हमरी
सारी दुनियाँ दारी ।
हाँ एक बात और यारा
परधान मंत्री के जन धन योजना तहत
खतवा खुलवा लिये बंक में
हल्ला मचल है शहर में
रूपा दीहें सरकार उस में
घरवा भी दिहीन पक्का बनल बनल
हमरे लिये होगा ऊ महल
अगर सच!
तो भागेगा दुख छू मन्तर
अगर झूठ !!
तो ऐसे ही बने रहेंगे
मदारी का बन्दर
शीर्षक:- आफद सहजहिं नोति लेल
मोन लगैये खसल खसल
हुसल हुसल
अपने सँ जेना रुसल रुसल
मुहँ लटकल तुम्मा सन
फुलल फुलल।
पलक पर निन्न चढ़ल चढ़ल
दबल दबल
खन फों फाँ गुँजल गुंजल
खन पल उठल उठल
आँखि मातल मतल निन्न उचटल उचटल।
कहल केओ सहमल सहमल
जनु रक्तचाप बढ़ल बढ़ल
हँ हँ राति औषध छुटल छुटल
भै सकैये तेँ बढ़ल प्रवल।
काल्हुक कथा रोचक रोचक
भेल छलै भोजन तिखगर चहटगर
नोनगर नोनगर थैहर थैहर
तरल झूर झूर लाल लाल
तिलकोर कुर कुर
आलुक चक्का कदीमोक परिपूर
आलू परोर छौंकल घी छह छह।
डालनाक अबहेलना करितौं कोना?
आमक टिकुला सँ अमिलौल बड़ी छोडितौं कोना?
दही मधूरक धूर तोड़ि देल
आफद सहजहिं नोति लेल।
शीर्षक:- राग अलापी मनगढ़ंत
चैत वसंत कुपित काम
संधानल धनु दिव्य प्रसून
खीचि कान तक ठाम ठाम
मलय पवन बह थीर थीर
उत्कंठित मनके रहि रहि
ओ करय अधीर।
मजर महुवा फूल सुवास
दिग दिगंत पसरल चास वास
स्वर गूंजय मधुपक
मधुमाछी हतास।
तरु लता वन वाटिका
नव किसलय कुंज भेल
रतिहर काल कूजित कोकिल
हृदयक बान्ह तोड़ि देल।
दूर देशमे बैसल कंत
भगवामे भेल जनु संत
दारुण दुसह हंत बेकंत
राग अलापी मनगढ़ंत।
शीर्षक:- गामक बात
घर आङन देहरि दलान
गाछी बिरछी खेत खरिहान
पोखैर डबड़ा ओ नदीक तान
अर्रवाँ गाय महिंसीक बथान ।
देखब दुर्लभ दुर्खाक गुमान
शान म्लान मेटल पहिचान
गाम अलापय शहरुवा गान
दरकि रहल सब आन मान।
कतय गेलै ओ मेल जोल?
खोज पुछारी टोल टोल
उचित उपकार मधुर बोल
डाँटो डपटमे मिसरीक घोल।
दिन कुदिन बेर कुबेर
चिंता नहिं ककरो कथू केर
संपति हो कि बिपतीक फेर
धैर्य सिनेहक बटय बेर बेर।
एक दोसराक हितमे सब एक प्राण
बैमनस्यताक नहिं कतौ नामो निसान
धन कुवेर होथु कि मजदूर किसान
मर्यादा सबहक सदिखन एक समान।
परंच आइ बहय हा उनटा बयार
शालीनता भै रहल अछि तार तार
उकटा पैंचीक लागल घनगर पथार
स्वार्थेटा मे सब संवंध आ सरोकार।
उजरल फूस उपटल कूश
महल मरैयाके मुहँ दूस
ककरो सँ केओ कहाँ झूस
लाचार देखि चूसय लवनचूस ।
परती परांँठ भेल पुरनका बात
रस्तो पेड़ा पर जवर्दस्त घात
सुनय कहाँ केओ ककरो बात
कहू कते आर हम गामक बात।
शीर्षक:- कहमुकरी-१ चितचोरा
कखनो चुम्मा लै अछि गाल
पुनि अधरपानले रहय बेहाल ।
आवद्ध वाहु कय देखबय ताल
सुतली राति ओ करय खियाल।।
के सखि प्रीतम? नहिं नहिं वाल!
कुचयुग एक मुखमे दाबय
दोसर पर चुटकी साधय।
पेट हँसोथय मूहँ निहारय
चित्ते सदैत हमरा राखय।।
के सखि प्रीतम?नहिं वालक खेलय!
नङ चङ् करय सदिखन हमरा
मानयले तैयार नै केनहुँ निहोरा ।
हारि थाकि बनैछी वलिके बकड़ा
हहा हा हंसि ओ करय ठिठोरा ।।
के सखि प्रीतम?नहिं ननकिरबा चितचोरा!
शीर्षक:- मुक्ति
मुक्ति !मुक्ति !! मुक्ति !!!
बस मुक्ति !
चाही यैहटा सुक्ति ।
दिन रैत झखैत
भखैत रहलौं अहूँ
आ,हमरहु आइ भय रहल
यैह प्रवृत्ति ।
कारण,
सूझि नै रहल
आर कोनो युक्ति
तेँ चाही हमरो बस मुक्ति !
त्रिगुणी माया मे लपटैल
हमर सांसारिक काया
उनमुक्त होयवाक लेल
छटपटा रहल अनवरत ।
मुदा,
श्रेष्ठताक चक्रव्यूह मे फसि
स्वयं से स्वयं
गोहारि कय रहल
आखिर,वंधन ते वंधने होइ छै ने !
खाहे ओ रहौक
स्वर्ण रजत,वा
लौह श्रृंखलाक किएक ने ।
तेँ,
हे पाश मोचक !
हम थाकि गेल छी
चित वृत्तिक मोह मे
पाकि गेल छी ।
आब
सब वृत्तिक श्रृंखला सँ
मुक्ति सुक्तिक बाट देखाउ !
तमो सतो आ रजोक टाट हटाउ !!
शीर्षक:- छूटल ठाम हेरायल गाम
सर सरोकार सब भेल तार तार
गौवाँ घरुवा तक भेल अनचिन्हार
संबन्धोमे नइं रहलै ओ प्रखर धार
झक झक उघार घोंटि लाज विचार
आठो याम अविराम जपय मंत्र सब हेरा फेरी।
छूटलै गाम हेरयलै ठाम आम लताम झरबेरी ।।
बहि रहलै सगरो उनटा बयार
खेतोपथार भेलै अनचिनहार
भाइ भाइ सङ करय तकरार
स्वार्थक डंका बजय आर पार
बेटा भातिज तैयार फोरैले कपार
इरखा द्वेखक बाजार सजल छै सेर पसेरी।
छूटलै ठाम हेरयलै गाम आम लताम झर बेरी।।
दौड़ा दौड़ी झिझ्झुर कोना
खेल कबड्डी बिलायल कोना
अथरा बिथरा अटकन मटकन
बनल किरकेटक दास मुहँ पोछना
अतीतक द्वारि पर वर्तमानक जबर्दस्त पहरेदारी ।
छूटलै गाम हेरयलै ठाम आम लताम झरबेरी।।
ग्रील बन्द घरक छै जोर लगन
अपनेमे रहय सब मस्त मगन
मतलबेमे चूड़ा दहीक ओठगन
अतिथि अकच्छ गनथि तरेगन
भैया भीतर बन्द अवाक बाहर भौजी करथि तक्काहेरी।
छूटलै ठाम हेरयलै गाम आम लताम भरबेरी।।
धियिपुता बपजेठ भेल
मोबाइलक सङ सेट भेल
कौवा सँ गेल बुधियार भेल
असमये यौवन बहार भेल
जे बूझल बत्तीसक बाद से ओकरा लेल एखने रसभरी।
छूटलै ठाम हेरयलै गाम आम लताम झरबेरी।।
शीर्षक:- मिथिलामे की अछि?
मिथिलामे की अछि ?
रौदी अछि दाही अछि
भुखमरी अकाल अछि
लगानी केर धाही अछि
बैमानक वाहवाही अछि ।
मिथिलामे की अछि?
पाठशाला अछि इस्कूल अछि
मैथिलीमे पढ़ाइ नै अछि
तैले सगरो किलोल अछि
सरकारक कान बन्द अछि।
मिथिलामे की अछि?
दहेजक जोर अछि
बेटिक बियाहमे झमेल अछि
भोज भातमे डीह आँट अछि
मान सम्मानमे नाक सीधा अछि ।
मिथिलामे की अछि?
साग अछि सजमैन अछि
कुम्हर कदीमा अछि
रामतोरोइयो अगियायल अछि।
मिथिलामे की अछि?
ओल अरिकोंच अछि
अल्हुवा खम्हरुवा अछि
भट्टा परोर अछि
सबहक मुहँ जोर अछि।
मिथिलामे की अछि?
चौमासमे धान अछि
धनहरमे धोङही डोका अछि
जल निकासी भेल जाम अछि
कनैत गिरहत किसान अछि।
मिथिलामे की अछि?
नहैर खाली चिरायल अछि
खजाना भेल खाली अछि
सबटा नेताक कमाल अछि
जनता बेहाल अछि।
मिथिलामे की अछि?
उद्योग धंघा चौपट्ट अछि
सरकार निपट्ट अछि
रोगक कहर अछि
बेरोज़गारी बढ़ल अछि।
मिथिलामे की अछि?
बेगारी अगारी अछि
छूटल धंधा पानी अछि
चाउर गहूमक खैरात अछि
मोदीजीक सौगात अछि ।
मिथिलामे की कछि?
दिल्ली मुम्बईक आस अछि
कहैले यैह विकास अछि
नेताजीके भोंट खास अछि
सरकार बदमाश अछि।
मिथिलामे की अछि?
टूटल टाटल सड़क अछि
मनरेगाक भरक अछि
मुखियाजीके फाग अछि
डिबिया तर अन्हार अछि
मिथिलामे विकास अछि।
डॉ• प्रमोद झा ‘गोकुल’
दीप,मधुवनी (विहार)