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PIYUSH GOEL पीयूष गोयल जी की कहानियाँ

शीर्षक:- ये लो पुस्तकें
“ये लो पुस्तकें” पुरानी लाइब्रेरी में एक बूढ़े आदमी ने कहा ….मुझे बचपन से ही पुस्तकें पढ़ने का शौक़ रहा है,मेरे मम्मी पापा अच्छी तरह से जानते थे इसको पैसे दे दो, किताबें ज़रूर लेकर आएगा.मेरे पास क़रीब २५००-३००० पुस्तकों का संग्रह हैं.मेरे पापा सरकारी नौकरी में हैं, समय-समय पर नौकरी के लिए हस्तांतरण होता रहता था, और मैं लाइब्रेरी ही ढूँढता यह और मुझे मिल भी जाती थी.आजकल बड़ा ही दुख होता हैं मोबाइल ने आने वाली पीढ़ियों को न सिर्फ़ पुस्तकों से दूर किया हैं बल्कि अपनों से भी.जहां मैं रहता था, आज से २०-२५ साल पहले मैं लाइब्रेरी में जाया करता था, वहाँ पर किताबों के साथ साथ आपको नए लोग भी मिलते थे, वहाँ पर अक्सर एक ४५ साल के एक व्यक्ति भी आया करते थे सरकारी नौकरी में थे, बहुत देर बैठ कर पुस्तकें पढ़ा करते थे और जब भी उनसे बात करता था बड़ा ही अच्छा लगता था हर विषय पर उनसे बात की जा सकती थी.
समय अपनी रफ़्तार से चलता हैं, मैं यांत्रिक अभियंता हो गया और नौकरी के लिए किसी और शहर चला गया, लेकिन लाइब्रेरी की यादें ताजा हो जाया करती थी, मेरी पहली नौकरी Gr Noida,फिर पिलखुवा चला गया, एक दिन अचानक पता चला कि मेरी नौकरी सोनीपत में एक अच्छी कंपनी में लग गई,पुस्तकों से प्रेम अभी भी था, अक्सर दिल्ली पुस्तक मेले में पुस्तकें लेने ही जाया करता था, कई बार ऐसा भी हुआ हैं पैसे के अभाव में पुस्तकें ख़रीद नहीं पाया.एक दिन रविवार के दिन सोनीपत के बाज़ार में घूम रहा था,दूर कहीं मुझे एक लाइब्रेरी दिखाई दी, मैं तुरंत सब काम छोड़ लाइब्रेरी जा पहुँचा, लाइब्रेरी में अंदर घुसतें ही “ये लो पुस्तकें” एक बूढ़े आदमी ने कहा, तुम्हारे मतलब की हैं.
अरे कमाल हो गया आप तो वो ही हैं जब हम साथ-साथ ३०-३५ साल पहले लाइब्रेरी में पढ़ते थे, और कई विषयों पर बातें भी करते थे.हाँ-हाँ मैं वो ही हूँ यहीं का रहने वाला था वहाँ तो नौकरी में था देखो क्या कमाल हुआ हैं पुस्तकों को प्रेम करने वाले फिर मिल गये,तभी तो तुमको देखते ही बोला “ये लो पुस्तकें” तुम्हारे मतलब की क्योंकि मुझे पता हैं,आप किस तरह की पुस्तकें पढ़ते हैं,बातों-बातों में पता चला ये पुस्तकालय उन्हीं का हैं, और इसके बाद मैंने ये decide किया कि मैं आपको अपने पुस्तक संग्रह से २०० पुस्तकें आपकी लाइब्रेरी को दूँ. शीघ्र ही देने जा रहा हूँ.
शीर्षक:- भगवद्गीता ने बदल दी ज़िंदगी.
मैं एक मध्यम वर्गीय परिवार से हूँ, बचपन गाँव में ही बीता,अपने भाई बहनों के साथ,शिक्षा भी गाँव में ही हुई.बचपन में किसी ने भी गाइड नहीं किया जो भी पढ़ाई की,पापा की पोस्टिंग गाँव में ही रही,ज़िंदगी में गाँव का ज़्यादा प्रभाव रहा,पिता जी के साथ सबदलपुर,चौमुहाँ,बरोला आदि गाँव में रहा.मेरी ज़िंदगी के सबसे सुनहरे पल चौमुहाँ में बीते,यहाँ से १२वी पास करने के बाद,गांधी पॉलीटेक्निक मुज़फ़्फ़रनगर(१९८४-१९८७) से यांत्रिक अभियंता का डिप्लोमा किया, वैसे तो मैं पायलट बनना चाहता था,एनडीए की परीक्षा दी पास नहीं कर पाया,फिर सोचा प्रोफेसर बनूँगा उच्च शिक्षा नहीं ले पाया और नहीं बन पाया,अभियंता(डिप्लोमा)बन गया और बड़ी अजीब बात हैं पुस्तकें लिख रहा हूँ,सबसे पहली नौकरी प्याऊ मनिहारी कुंडली में ६०० रुपये की उसके बाद,८०० रुपये की पिलखुआ में, उसके बाद १२०० रुपये की यामाहा सूरजपुर में अब २७ साल का अनुभव हैं.सन् २००० में ज़िंदगी बदल गई एक भयंकर दुर्घटना हो गईं.
सड़क पर अपनी ज़िंदगी की भीख माँग रहा था कोई उठा कर अस्पताल ले जाने को तैयार नहीं था.मैंने उठने की खूब कोशिश की पर नहीं उठ पाया,मेरी दो महीने की बेटी थी मुझे सबसे पहले मेरी बेटी याद आई,मैंने साँई बाबा से प्रार्थना की व माँ वैष्णों वाली माँ को याद किया,मुझे तब तक ज़िंदा कर दे जब तक मैं अपनी बेटी की शादी न कर दूँ, चमत्कार हो गया,अस्पताल पहुँच गया १० ऑपरेशन होने के बाद और ९ महीने खाट पर रहने के बाद मैंने दुबारा से जॉब जॉइन किया,सब कुछ सही चल रहा था सन् २००३ में नौकरी चली गईं और अवसाद में चला गया,यहाँ फिर एक चमत्कार हुआ, मेरे एक मित्र ने भगवद्गीता दी पढ़ने के लिए मैंने प्रसाद समझ कर लिया और ईश्वर के आशीर्वाद से १८ अध्याय ७०० श्लोकों को पढ़ा लिखा हिन्दी व इंगलिश दोनों भाषाओं में,अवसाद भी ख़त्म हो गया और नौकरी भी लग गईं.
मैं सोनीपत चला गया यहाँ पर भगवद्गीता पर दैनिक जागरण में लेख छपा, छपते ही न्यूज़ चैनल्स ने इंटरव्यू लेने शुरू कर दिये,किसी ने पूछ लिया आपने भगवद्गीता को दर्पण छवि में लिख दिया पर इसको कौन पढ़ेगा?.मैं उन सज्जन से बोला वाल्मीकि जी ने मरा मरा बोला और राम राम निकला और संस्कृत भाषा में रामायण लिख दी मेरा आप सबको एक संदेश हैं सीधी नहीं उल्टी पढ़ लो मेरी ज़िंदगी बदली हैं आपकी भी बदलनी चाहिए,फिर उसके बाद सुई से पुस्तक लिखी.भगवद्गीता ने मंच दिया सुई से लिखी पुस्तक ने गूगल दे दिया और २००३ से २०२२ तक १७ पुस्तकें लिख चुका हूँ.दोस्तों हमारा काम हैं करना,कुछ चीजे उसके हाथ में हैं …. और उसके हाथ में रहनी भी चाहिये.
शीर्षक:- समय बदलता तो हैं,पर थोड़ी देर से
एक सेठ बड़े ही रहीस, गुड की आढ़त का काम था,ईश्वर की पूरी कृपा थी.परिवार में सबसे छोटा बेटा बड़े ही लाड़ प्यार में पला, जिसका नाम किशोर था.सेठ ने किशोर की शादी भी बड़े ही धूम धाम से की थी.रहीसी ने किशोर को शराब पीनी सीखा दी थी.किशोर को शादी के बाद बच्चे भी नहीं हुए, समय बीतता रहा, माता पिता की मृत्यु के बाद सब भाई अलग-अलग रहने लगे बहनें शादी के बाद अपने-अपने घर चली गई,किशोर बचपन से बड़ा ही होशियार था.शहर का नामी वकील, कुछ समय के बाद घर में बच्चों की कमी महसूस होने लगी, किशोर ने अपनी सूसराल की तरफ़ से बेटी और बेटा गोद ले लिया.किशोर रहीस वकील थे,खाना पीना उनका अपना शौक़ था एक दिन अचानक तबीयत बिगड़ी सब को अकेला छोड़ चले गये.
अचानक से चले जाना पूरे परिवार पर जैसे पहाड़ सा टूट गया, सब बिखर गया, बेटे ने तो अभी स्कूल भी जाना शुरू नहीं किया था, मानो सब कुछ ख़त्म हो गया, बिना बतायें किशोर की पत्नी अपने दोनों बच्चों के साथ दूसरे शहर चली गई, किसी तरह से पता लगा कि इस शहर में रह रही हैं.किसी भी भाई ने कोई सहायता नहीं की. जैसे तैसे किशोर की पत्नी ने अपने दोनों बच्चों को पढ़ा लिखा कर काबिल बना दिया. किशोर ने जो बेटी गौद ली थी इतनी सुंदर थी कि उसको किसी ने अपने बेटे के लिए माँग लिया, किशोर की पत्नी ने पूरी जानकारी करने के बाद बिटिया की शादी कर दी, बिटिया अपने परिवार के साथ ख़ुशी से रह रही हैं.बेटा अपनी मेहनत से कंप्यूटर इंजीनियर बन गया,अच्छे वेतन पर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में उच्च पद पर कार्यरत हैं. बेटे ने एक दिन मम्मी को एक गाड़ी गिफ्ट की और दो साल बाद बिना बतायें मम्मी के पैर पकड़ कर बोला चलो मेरे साथ,एक अच्छी सी सोसाइटी में ले गया और अपनी मम्मी को 2BHK फ्लैट की चाबी दे दी, और अचानक से अपनी बेटी दामाद को देख मम्मी की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था.सभी ने वही पर एक ग्रुप फोटो क्लिक की.
शीर्षक:- और वो एक कंपनी का “COO” हो गया.
मैं अपने तीनों भाइयों में सबसे बड़ा और एक मध्यम वर्गीय परिवार में पला बड़ा हुआ, पिता जी द्वितीय श्रेणी के सरकारी कर्मचारी,मेरे पापा की पोस्टिंग मथुरा के एक गाँव में थी. चुकि हम तीन भाई थे ……बहन न होने के कारण माता जी के साथ घर के काम में हाथ बटाना पड़ता था, अब मैं घर में सबसे बड़ा था ज़िम्मेदारी मेरी सबसे ज़्यादा थी,सच बताऊँ घर में बहन का होना बहुत ज़रूरी हैं जब हम तीनों भाई साथ में होते हैं तो यही सोचते थे हमारे बहन क्यों नहीं हैं? जैसे-जैसे समय गुजरता रहा मेरे पापा का ट्रान्सफ़र मथुरा के ही दूसरे गाँव में हो गया,मैं अपनी पढ़ाई के लिए हॉस्टल चला गया, कुछ समय बाद मेरा छोटा भाई( बीच वाला) अपनी पढ़ाई के लिए घर से दूर चला गया,अब घर पर सिर्फ़ माता जी,पिता जी व सबसे छोटा भाई रह गये.जब कभी भी हम सभी त्यौहार पर घर पर इकट्ठे होते थे.
छोटे भाई को देखकर मज़ाक़ भी करते थे और कई बार भाई को देख कर ये भी सोचते थे इसको भी पढ़ना चाहिए और साथ ही साथ ये भी सोचते थे माता जी कि उम्र हो रही हैं माता जी के साथ कोई ना कोई तो होना चाहिए. एक दिन हमें खबर मिली की हमारा छोटा भाई घर से भाग गया हैं. मैंने किसी तरह से घर पकड़ा घर पर पहले से ही मेरा बीच वाला भाई भी था, वो मेरे से पहले पहुँच गया.(उन दिनों मोबाइल नहीं हुआ करते थे), घर पर सब परेशान समान इधर-उधर फैला हुआ पड़ा था.रात को जब सब लोग साथ बैठे हुए थे मैंने माता जी व पिता जी से पूछा आप लोगों ने तो कुछ नहीं बोल दिया उसको,पिता जी बोले मेरा तो मतलब ही नहीं हैं,कुछ कहने का ….हाँ माता जी एक दम बोली, मैंने उस से एक बात बोली थी जब वो कमरे में पोछा लगा रहा था मैंने उस से कहा तू भी पढ़ लिख ले नहीं तो तू ऐसे ही पोछा लगता रहेगा,मैं तपाक से बोला अरे माता जी आप ने ये क्या कह दिया पता हैं वो कितना ग़ुस्से वाला हैं और भावुक हैं.
शायद ये ही बात उसको लग गई,ख़ैर कोई बात नहीं, सुबह होने दो ढूँढते हैं उसको …. अगले दिन सुबह-सुबह दरवाज़े पर घंटी बजी मैंने जैसे ही दरवाज़ा खोला,मेरा सबसे छोटे वाला भाई सामने खड़ा था,पैर पकड़ कर बोला भैया मुझे माफ़ करना और गले लग कर बहुत रोया और रोते-रोते बोला भैया मुझे भी पढ़ना हैं घर में पोछा लगाते-लगाते थक गया हूँ.माता जी एक दिन मेरे से बोली तू भी पढ़ लिख ले नहीं तो ऐसे ही पोछा लगता रहेगा. भैया मैं कह नहीं पाया और मैं बिना बताएँ घर से चला गया मुझे आप सब माफ़ करना.छोटे बेटे और भाई को देख कर सब खुश हो गये … सबके पैर पकड़ कर माफ़ी माँगी … फिर उसके बाद उसने इतनी लगन से पढ़ाई की ….उसने एक नामी इंस्टिट्यूट में MBA की पढ़ाई की, लव मैरिज की, माता जी की एक छोटी सी बात ने उसके अंदर पढ़ाई की ऐसी लगन लगाई … वो बाद में बड़ी कंपनी के COO पद तक पहुँच गया. और मज़े की बात दोनों बड़े भाई अपना-अपना व्यापार कर रहे हैं …. और वो एक कंपनी का COO बन गया.