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क्या आप जानते हैं कि धनतेरस क्यों मनाया जाता है अगर नहीं, तो आइए हम आपको बताते हैं.
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ था। इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मंथन के समय हुआ था। कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन समुद्र-मंन्थन के समय भगवान धन्वन्तरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। धनतेरस को ‘धन्य तेरस’ या ‘ध्यान तेरस’ भी कहते हैं।
मंथन के समय त्रयोदशी को धन्वंतरी और अमावस्या को माता लक्ष्मी जी सागर से उत्पन्न हुई थी। इसीलिये दीपावली के दो दिन पूर्व भगवान धन्वंतरी का जन्म धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। इन्हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य आरोग्य का देवता कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी।
भारत सरकार ने धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय किया है। इन्हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं ऊपर की दोंनों भुजाओं में शंख और चक्र धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत कलश लिये हुये हैं। आमतौर पर धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी (छोटी दीवाली) आती है और उसके अगले दिन बड़ी दीपावली आती है। लेकिन इस बार (2022) धनतेरस के अगले दिन ही बड़ी दीपावली आ रही है। धनतेरस पर कुछ नया खरीदने की परंपरा है।
धनतेरस के दिन जरूर करें ये खास काम
धनतेरस के दिन कोई भी नये बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है और इस दिन नयी झाड़ू भी खरीदना शुभ मानते हैं क्योंकि मान्यता है कि इस दिन नये सामान खरीदने से घर में लक्ष्मी आती है।
इस दिन अपने सामर्थ्य अनुसार किसी भी रूप में चांदी एवं अन्य धातु खरीदना अति शुभ है। भगवान धन्वन्तरी का प्रिय धातु पीतल माना जाता है इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है। धन संपत्ति की प्राप्ति हेतु कुबेर देवता के लिए घर के पूजा स्थल पर दीप दान करें एवं मृत्यु देवता यमराज के लिए मुख्य द्वार पर भी दीप दान करें।
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