हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। हिंदी के प्रश्नों का एक सेट यहां दैनिक आधार पर प्रकाशित किया जाएगा। यहां पोस्ट किए गए प्रश्न विभिन्न आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं (जैसे एसएससी, रेलवे (एनटीपीसी), बैंकिंग, सभी राज्य परीक्षाओं, यूपीएससी, आदि) में सहायक होंगे।
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क्रिया किसे कहते हैं?
वाक्य में प्रयुक्त ऐसे शब्द जो किसी कार्य के करने या होने की स्थिति को प्रकट करते है, उसे क्रिया कहते है।
जैसे- पढ़ना, खाना, लिखना , पीना, जाना, रखना इत्यादि।
सभी वाक्यों मे क्रिया होती है। यदि वाक्य मे क्रिया नही हो तो वाक्य नही होता है। ‘क्रिया’ का अर्थ होता है- करना। प्रत्येक भाषा के वाक्य में क्रिया का बहुत महत्त्व होता है। प्रत्येक वाक्य क्रिया से ही पूरा होता है। क्रिया को करने वाला ‘कर्ता’ कहलाता है।
1. बालक छत से कूद पड़ा।
2. राधा पढ़ कर सो गई ।
उपर्युक्त वाक्यों में राधा और बालक कर्ता हैं और उनके द्वारा जो कार्य किया जा रहा है या किया गया, वह क्रिया है; जैसे- कूद पड़ा, सो गई ।
क्रिया की रचना या धातु रूप
धातु क्रिया का मूल रूप होता है और ना जोड़कर क्रिया का सामान्य रूप बनाया जाता है। संस्कृत की धातु मे ना जोड़ दे तो क्रिया बन जाती है।
जैसे – लिखना, करना, सोना, जाना, चलना, आना इत्यादि।
क्रिया के भेद
क्रिया का वर्गीकरण तीन आधार पर किया जाता है –
कर्म के आधार पर
काल के आधार पर
प्रयोग/रचना के आधार पर
1. कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
इस आधार पर क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं –
सकर्मक क्रिया
अकर्मक क्रिया
(1) सकर्मक क्रिया:-
सकर्मक का मतलब कर्म के साथ होता है। अर्थात जिस क्रिया का प्रभाव कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है तो उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं।
इन क्रियाओं में कर्म का होना आवश्यक हैं, सकर्मक क्रियाओं के अन्य उदाहरण हैं –
जैसे-
1. वह एक पत्र लिखता है।
2. राम आम खाता है।
3. तुम एक किताब पढ़ते हो।
उपर्युक्त वाक्यों में पत्र, आम और किताब शब्द कर्म हैं, क्योंकि कर्ता का सीधा फल इन्हीं पर पड़ रहा है।
क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको लगाकर प्रश्न करने पर यदि उचित उत्तर मिले, तो वह सकर्मक क्रिया होती है; जैसे- उपर्युक्त वाक्यों में लिखता है, खाता है, पढ़ते हो क्रियाएँ हैं। इनमें क्या, किसे तथा किसको प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं। अतः ये सकर्मक क्रियाएँ हैं।
कभी-कभी सकर्मक क्रिया का कर्म छिपा रहता है।
जैसे- वह गाता है।
वह पढ़ता है।
यहाँ ‘गीत’ और ‘किताब’ जैसे कर्म छिपे हैं।
सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं :
अपूर्ण सकर्मक क्रिया
पूर्ण सकर्मक क्रिया
(1) अपूर्ण सकर्मक क्रिया :-
सकर्मक क्रिया का वह रूप जिसमें क्रिया के साथ ‘कर्म’ के अतिरिक्त किसी अन्य पूरक शब्द (संज्ञा एवं विशेषण) की आवश्यकता नहीं होती है, उस क्रिया को ‘अपूर्ण सकर्मक क्रिया’ कहते है। अपूर्ण सकर्मक क्रियाएं निम्न है – मानना, चुनना, समझना, बनाना।
1. हमने अजय को टीम का कप्तान बनाया।
2. राकेश अपने आपको गरीब समझता है।
3. सुरेश महेश को अपना मित्र समझता है।
(2) पूर्ण सकर्मक क्रिया :-
सकर्मक क्रिया का वह रूप जिसमें क्रिया के साथ ‘कर्म’ के अतिरिक्त किसी अन्य पूरक शब्द (संज्ञा एवं विशेषण) की आवश्यकता नहीं होती है, उस क्रिया को ‘पूर्ण सकर्मक क्रिया’ कहते है।
जैसे –
1. राम ने गाना गया।
2. श्याम खा रहा है।
पूर्ण सकर्मक क्रिया के भेद :- इस क्रिया के दो भेद होते हैं :
(i) एककर्मक क्रिया
जिस क्रिया में एक ही कर्म हो वह क्रिया एककर्मक क्रिया कहलाती है।
जैसे-
1. विपिन किताब पढता है।
2. श्याम रोटी खाता है।
(ii) द्विकर्मक क्रिया
जिस क्रिया में दो कर्म होते हैं वह द्विकर्मक क्रिया कहलाती है। पहला कर्म सजीव होता है एवं दूसरा कर्म निर्जीव होता है।
जैसे-
1. श्याम ने राधा को रूपये दिए।
2. मैंने राधा का खाना खा लिया।
(2) अकर्मक क्रिया:-
अकर्मक का अर्थ होता है:- ‘कर्म के बिना’। यदि वाक्य में प्रयुक्त क्रिया का प्रभाव एवं फल कर्ता पर पड़ता है अर्थात वाक्य में कर्म का प्रयोग नही होता है, तो उसे अकर्मक क्रिया कहते है।
जैसे –
1. राम रोता है।
2. शेर दहाड़ता है।
3. बच्चा रोता है।
अकर्मक क्रिया के भेद :- अकर्मक क्रिया के दो भेद होते हैं :
(i) अपूर्ण अकर्मक क्रिया :-
ऐसी अकर्मक क्रिया जिसके साथ वाक्य में किसी न किसी पूरक शब्द को लिखे जाने की आवश्यकता बनी रहती है तो वह क्रिया अपूर्ण अकर्मक क्रिया मानी जाती है। इसमें मुख्यतः होना, लगना व निकलना को शामिल किया जाता है।
जैसे –
1. साधु चोर निकला।
2. वह बीमार रहा।
3. आप मेरे मित्र ठहरे।
(ii) पूर्ण अकर्मक क्रिया
जिस अकर्मक क्रिया के साथ अन्य किसी पूरक शब्द की आवश्यकता नही होती है एवं कर्त्ता व क्रिया में लिखे जाने के कारण वाक्य का पूर्ण भाव स्पष्ट हो जाता है तो वह क्रिया अकर्मक क्रिया मानी जाती है।
जैसे –
1. बच्चा रो रहा है।
2. कुछ बालक हँस रहे थे।
3. चिड़िया आकाश में उड़ती है।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक दोनों होती है और प्रसंग अथवा अर्थ के अनुसार इनके भेद का निर्णय किया जाता है। जैसे-
अकर्मक | सकर्मक |
राम गाना गाता है। | राम खेलता है। |
तुम सच बोलते हो। | श्याम जाता है। |
2. काल के आधार पर क्रिया के भेद
काल के आधार पर क्रिया के मुख्यतः तीन भेद होते हैं :
1. भूतकालिक क्रिया
2. वर्तमानकालिक क्रिया
3. भविष्यकालिक क्रिया
1. भूतकालिक क्रिया :-
वे क्रियाएँ, जिनके द्वारा भूतकाल में कार्य के संपन्न होने का बोध होता है, उन्हें भूतकालिक क्रियाएँ कहते हैं। भूतकालिक क्रिया के 6 उपभेद माने जाते है –
(i) सामान्य भूतकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप से कार्य के बीते हुए समय में होने का बोध होता हो, लेकिन कार्य के पूर्ण होने का निश्चित समय का पता नहीं चलता हो तो, क्रिया के उस रूप को सामान्य भूतकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे या/ये/यी/आ/ए/ई हो।
जैसे –
1. रमेश जयपुर गया।
2. उसने चाय पी।
(ii) आसन्न भूतकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप से कार्य के कुछ समय पूर्व ही समाप्त होने का बोध होता हो, उसे आसन्न भूतकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे चुका है/चुकी है / चुके है/ है/ हो।
जैसे –
1. रमेश जयपुर गया है।
2. नवीन खाना खा चुका है।
(iii) पूर्ण भूतकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप से कार्य के बहुत समय पूर्व समाप्त होने का बोध होता हो, उसे पूर्ण भूतकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे था/थे/थी / चुका था/चुके थे/चुकी थी हो।
जैसे –
1. नवीन खाना खा चुका था।
2. उसने शराब पी थी।
(iv) संदिग्ध भूतकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप से कार्य के बीते हुए समय में होने पर संशय का बोध हो तो, क्रिया के उस रूप को संदिग्ध भूतकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे होगा/होगी/होंगे /चुका होगा/चुकी होगी/चुके होंगे हो।
जैसे –
1. रमेश जयपुर गया होगा।
2. उसने शराब पी होगी।
(v) अपूर्ण भूतकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप से कार्य का बीते हुए समय में जारी रहने का बोध होता हो, उसे अपूर्ण भूतकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे रहा था/रहे थे/रही थी/ता था/ ती थी/ ते थे हो।
जैसे –
1. वर्षा हो रही थी।
2. बच्चे सो रहे थे।
(vi) हेतुहेतुमद भूतकालिक क्रिया
क्रिया का वह रूप जिसमें बीते हुए समय के साथ कोई शर्त प्रयुक्त हुई हो तो, क्रिया के उस रूप को हेतुहेतुमद् भूतकालिक क्रिया कहते हैं।
जैसे –
1. यदि तुम मेहनत करते तो अवश्य सफल हो जाते।
2. अगर वर्षा होती तो फसल होती।
2. वर्तमानकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप के द्वारा किसी कार्य का जारी समय का होना पाया जाता है तो वहाँ वर्तमानकालिक क्रिया मानी जाती है। भूतकालिक क्रिया के 6 भेद माने जाते है –
(i) सामान्य वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक क्रिया का वह रूप जिससे कार्य का सामान्य रूप से वर्तमान समय में होने का बोध हो तो, क्रिया के उस रूप को सामान्य वर्तमानकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे ता है, ती है, ते हैं, ता हूँ, ती हूँ आया हो।
जैसे –
1. रवि चाय बनाता है।
2. हम स्कूल जाते हैं।
(ii) अपूर्ण वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक क्रिया का वह रूप जिससे कार्य का वर्तमान समय में जारी रहने का बोध हो तो, क्रिया के उस रूप को अपूर्ण वर्तमानकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे रहा है, रही है, रहे हैं, रही हूँ, रहा हूँ हो।
जैसे –
1. रमेश खाना खा रहा है।
2. सीता चाय बना रही है।
(iii) संदिग्ध वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक क्रिया का वह रूप जिससे कार्य के वर्तमान समय में होने पर संशय का बोध हो तो, क्रिया के उस रूप को संदिग्ध वर्तमानकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे रहा होगा, रही होगी, रहे होंगे में से हो।
जैसे –
1. रमेश खाना खा रहा होगा।
2. सीता चाय बना रही होगी।
(iv) आज्ञार्थक वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक क्रिया का वह रूप जिससे वर्तमान काल में आज्ञा या आदेश देने का बोध हो तो, क्रिया के उस रूप को आज्ञार्थक वर्तमानकालिक क्रिया कहते हैं।
जैसे –
1. बैठ जाओ।
2. सीता अब तुम चाय बनाओ।
(v) सम्भाव्य वर्तमानकालिक क्रिया
वर्तमानकालिक क्रिया का वह रूप जिससे वर्तमान समय में अपूर्ण क्रिया की संभावना या संशय होने का बोध होता हो तो, क्रिया के उस रूप को सम्भाव्य वर्तमानकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे रहा होगा, होगा, रही होगी, रहे होंगे, रहा हो, रही हो, रहे हो आदि हो।
जैसे –
शायद रवि आया हो
3. भविष्यकालिक क्रिया
क्रिया के जिस रूप के द्वारा किसी कार्य का आने वाले समय मे होना पाया जाता है वहां भविष्यकालिक क्रिया मानी जाती है। भूतकालिक क्रिया के 3 भेद माने जाते है
(i) सामान्य भविष्यतकालिक क्रिया
भविष्यकालिक क्रिया का वह रूप जिससे कार्य का सामान्य रूप से आने वाले समय में होने का बोध होता हो तो, क्रिया के उस रूप को सामान्य भविष्यकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे एगा, एगी, एंगे, उँगा, उँगी आया हो।
जैसे –
1. वह पुस्तक पड़ेगा।
2. मैं घर जाऊंगा।
(ii) आज्ञार्थक भविष्यतकालिक क्रिया
भविष्यकालिक क्रिया का वह रूप जिससे भविष्य काल में आज्ञा या आदेश देने का बोध प्रकट होता हो तो, क्रिया के उस रूप को आज्ञार्थक भविष्यकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत मे ‘इएगा’ हो।
जैसे –
1. आप अपनी पढ़ाई कीजिएगा।
2. आप कल अवश्य आइएगा।
(iii) संभाव्य भविष्यतकालिक क्रिया
संभाव्य भविष्यतकालिक क्रिया – भविष्यकालिक क्रिया के जिस रूप से कार्य के भविष्य काल में होने की संभावना या संशय होने का बोध होता हो तो, क्रिया के उस रूप को संभाव्य भविष्यकालिक क्रिया कहते हैं। यदि किसी वाक्य के अंत में सकता है, सकती है, सकते हैं, सकता हूँ, सकती हूँ, चाहिए हो।
जैसे –
1. दो दिन बाद रमेश आ सकता है।
2. अब मुझे क्या करना चाहिए।
3. रचना के आधार पर क्रिया के भेद
रचना के आधार पर क्रिया के 5 भेद होते हैं-
1. संयुक्त क्रिया
2. नामधातु क्रिया
3. प्रेरणार्थक क्रिया
4. पूर्वकालिक क्रिया
5. सामान्य क्रिया
1. संयुक्त क्रिया
जिस वाक्य में दो क्रियाओं से मिलकर एक क्रिया बनती है, वह संयुक्त क्रिया कहलाती है। इन दोनों क्रियाओं में पहली क्रिया मुख्य होती है और दूसरी क्रिया द्वितीयक होती है।
जैसे-
1. बच्चा विद्यालय से लौट आया।
2. किशोर रोने लगा।
3. वह घर पहुँच गया।
संयुक्त क्रिया के भेद :-
अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के 11 मुख्य भेद है-
(i) आरम्भबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से किसी क्रिया के आरंभ होने का बोध होता हो उसे आरंभबोधक क्रिया कहते हैं। आरंभबोधक क्रिया का निर्माण क्रियार्थक संज्ञा के विकृत रूप से होता है। यह क्रिया ‘लगना’ क्रिया के योग से बनती है।
जैसे-
1. पानी बरसने लगा।
2. राधा खाने लगी।
(ii) समाप्तिबोधक
जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह ‘समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया’ है। धातु के आगे ‘चुकना’ जोड़ने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
जैसे-
1. वह खा चुका है
2. वह पढ़ चुका है।
(iii) अवकाशबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से प्राप्त करने का बोध होता हो उसे अवकाशबोधक क्रिया कहते हैं।
जैसे-
1.वह मुश्किल से सोने पाया।
2. जाने न पाया।
(iv) अनुमतिबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह ‘अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया’ है। यह क्रिया ‘देना’ धातु के योग से बनती है।
जैसे-
1. मुझे जाने दो।
2. मुझे बोलने दो।
(v) नित्यताबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो, वह ‘नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया’ है। मुख्य क्रिया के आगे ‘जाना’ या ‘रहना’ जोड़ने से नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।
जैसे-
1. हवा चल रही है।
2. तोता पढ़ता रहा।
(vi) आवश्यकताबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह ‘आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया’ है। साधारण क्रिया के साथ ‘पड़ना’ ‘होना’ या ‘चाहिए’ क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
जैसे-
1. यह काम मुझे करना पड़ता है।
2. तुम्हें यह काम करना चाहिए।
(vii) निश्र्चयबोधक
जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्र्चयता का बोध हो, उसे ‘निश्र्चयबोधक संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
जैसे-
1. वह खाना दिये देता हूँ।
2. वह मुझे मारे डालती है।
(viii) इच्छाबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है। क्रिया के साधारण रूप में ‘चाहना’ क्रिया जोड़ने से इच्छाबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
जैसे-
1. वह घर आना चाहता है।
2. मैं खाना चाहता हूँ।
(ix) अभ्यासबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में ‘करना’ क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
जैसे-
1. यह पढ़ा करता है।
2. तुम लिखा करते हो।
(x) शक्तिबोधक
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से कार्य करने की शक्ति का बोध होता है। इसमें ‘सकना’ क्रिया जोड़ी जाती है।
जैसे-
1. मैं चल सकता हूँ।
2. वह बोल सकता है।
(xi) पुनरुक्त संयुक्त क्रिया
संयुक्त क्रिया के जिस रुप से दो समानार्थक अथवा समान ध्वनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें ‘पुनरुक्त संयुक्त क्रिया’ कहते हैं।
जैसे-
1. वह यहाँ प्रायः आया-जाया करता है।
2. पड़ोसियों से बराबर मिलते-जुलते रहो।
2. नामधातु क्रिया
क्रिया का वह रूप, जिसमें क्रिया का निर्माण संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण में प्रत्यय जोड़ने से होता है, उसे नामधातु क्रिया कहते है। आमतौर पर क्रिया का निर्माण धातु से होता है, लेकिन संज्ञा, सर्वनाम तथा विशेषण शब्दों में ‘ना’ प्रत्यय जोड़कर नामधातु क्रिया बनाई जाती है।
जैसे-
1. लुटेरों ने सम्पूर्ण धन हथिया लिया।
2. हमें गरीबों को अपनाना चाहिए।
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण शब्दों से निर्मित कुछ नामधातु क्रियाएँ इस प्रकार हैं :
संज्ञा शब्द | नामधातु क्रिया |
शर्म | शर्माना |
लोभ | लुभावना |
हाथ | हथियाना |
बात | बतियाना |
झूठ | झुठलाना |
लात | लतियाना |
शर्म | शर्माना |
दुख | दुखाना |
सर्वनाम शब्द | नामधातु क्रिया |
अपना | अपनाना |
पराया | परायापन |
विशेषण शब्द | नामधातु क्रिया |
साठ | सठियाना |
तोतला | तुतलाना |
नर्म | नरमाना |
लज्जा | लजाना |
लालच | ललचाना |
फ़िल्म | फिल्माना |
गर्म | गरमाना |
3. प्रेरणार्थक क्रिया
जब किसी वाक्य में कर्त्ता स्वयं की इच्छा से कार्य नही करके किसी अन्य की प्रेरणा से कार्य करता है तो वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है।
जैसे-
1. वह सबसे चालान भरवाता है।
2. महेश बच्चों को रुलाता है।
प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं:
(1) प्रेरक कर्ता – वह कर्ता जो क्रिया करने के लिए प्रेरणा देता है।
जैसे- मालिक, अध्यापिका आदि।
(2) प्रेरित कर्ता – प्रेरित होने वाला अर्थात जिसे प्रेरणा दी जा रही है।
जैसे- नौकर, छात्र आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप हैं :
(1) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
प्रेरणार्थक क्रियाओं के उदाहरण
मूल क्रिया | प्रथम प्रेरणार्थक | द्वितीय प्रेरणार्थक |
उठना | उठाना | उठवाना |
उड़ना | उड़ाना | उड़ाना |
चलना | चलाना | चलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
जीना | जिलाना | जिलवाना |
लिखना | लिखाना | लिखवाना |
जगना | जगाना | जगवाना |
सोना | सुलाना | सुलवाना |
पीना | पिलाना | पिलवाना |
देना | दिलाना | दिलवाना |
धोना | धुलाना | धुलवाना |
रोना | रुलाना | रुलवाना |
घूमना | घुमाना | घुमवाना |
पढ़ना | पढ़ाना | पढ़वाना |
देखना | दिखाना | दिखाना |
खाना | खिलाना | खिलवाना |
4. पूर्वकालिक क्रिया
जब किसी वाक्य में दो क्रियाएं एक साथ प्रयुक्त हुई हों और उनमें से एक क्रिया दूसरी क्रिया से पहले संपन्न हुई हो तो पहले संपन्न होने वाली क्रिया को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं। पूर्वकालिक क्रिया पर लिंग, वचन, पुरुष और काल आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पूर्वकालिक क्रिया का अर्थ पहले हुआ होता है।
जैसे-
1. मोहित खेलकर पढ़ने बैठेगा।
2. राखी ने घर पहुँचकर फोन किया।
5. सामान्य क्रिया
यदि किसी वाक्य में एक ही ‘क्रियापद’ का प्रयोग होता है, तो उसे सामान्य क्रिया कहते है।
जैसे:- रोना, धोना, खाना, पीना, नाचना, कूदो, पढ़ा, नहाना, चलना, आदि।
सामान्य क्रिया के द्वारा एक ही कार्य का बोध होता है। सामान्य क्रिया का अर्थ ‘एक कार्य’ और ‘एक क्रियापद’ वाली क्रिया होता है।
जैसे:-
1. राम खाता है।
2. श्याम नहा रहा है।
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