सुनसान
By- VARUN SINGH GAUTAM मैं आया सुनसान जगत सेक्या करुणा – सी क्या काया ?तुम उठें हो इस धरा सेवाम से ही जलती है ज्वाला बीत चुकी है इस पतझड़ मेंमृदु वसन्त की अंतिम छायाइस कगारे जीवन में सब हमविचलित मधुकर मतवाला धू – धू जलती इस तड़पन मेंमोह का बलिण्डा प्रज्वलित मायारख लें तुम …