हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। यहां पर सौरभ सिंह की कविता, कहानी प्रकाशित किया जाएगा। आप सभी इसका आनंद लीजियेगा।
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क्या करूँ क्या ना मैं ये सोचता हूँ
क्या करूँ क्या ना मैं ये सोचता हूँ,
तेरे लिए ही मैं जीता हूँ,
तुझको देख याद कर ये आँखे भर आयी है,
क्योकि इन आँखो मे तेरी तस्वीर छाई है।
कसूर इसका नहीं, कसूर हाथों का है,
क्योंकि इन हाथों से तुझे दोस्त बनाया था।
क्या करूँ क्या ना मैं ये सोचता हूँ,
तेरे लिए ही मैं जीता हूँ।
पहली बार तुझे देखा तो ऐसा लगा,
जैसे चाँद के रूप में तोहफा सजा।
मैं दोस्ती तुझ ही से करता हूँ,
इसलिए तुझ पर मरता हूँ।
क्या करूँ क्या ना मैं ये सोचता हूँ,
तेरे लिए ही मैं जीता हूँ।
तेरी आँखों का नशा मुझ पर ऐसा छाया,
पागल तो मैं था और तेरा दीवाना हो गया।
हमारी दोस्ती को मैं सलाम करता हूँ,
फिर तुझको याद करता हूँ।
BY – SAURABH SINGH
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