आँगन
By- VARUN SINGH GAUTAM बलाहक ऊर्मि का दहाड़ देखोरिमझिम – रिमझिम मर्कट दामिनीदेखो कैसे बुलबुलें भी उर्दङ्ग मचाती ?वों भी क्षणिक उसी में असि होती क्लेश विरह तनु अपने आँगन सेक्या विशिखासन विशिख टङ्कार ?कोई कुम्भीपाक कोई विहिश्त में विलीनक्या दैव प्रसू , तड़पन सुनें कौन ? बूँद – बूँद खनक प्रतीर दृग धोएँइस उद्यान …