शृङ्गार अलङ्कृत
By- VARUN SINGH GAUTAM प्राण तरुवर को अलङ्गितअहर्निश स्पृहा मेरी लोकशून्य मेंक्या व्युत्सगँ , क्यों भृश ब्योहार ?इस तरस आहु कराह रहा अपराग हुँकार क्यों जग को ?तन – मन व्यथा लिप्त वारिधिमेरा जीवन तिमिर अनल्प – सीहोती मेरी क्यों व्याल हलाहल ? प्राण पखेरू विप्लव प्रतीरउर्वी छवि उदक शोणित मेंघनवल्लभी तरङ्गिणी अरिन्द ममगलिताङ्ग अविकल …