Varun Singh Gautam

कवित्त भाग – नौ

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM कवित्त भाग – नौ क्या स्थिति आ गई है भारत की ?अभी पशुओं भोजन तलाश रहेअब मनुष्यों की यही दशा होगीकुछ हैं भी, देखें है धुंध झोपड़ियों में रहतेकर रहे कुछ और हाहाकारकुछ तो‌ हैं शहंशाही परिवारअपना पेटी भरना बन्द करो दुर्जनोंकितना! और किसको खाओगेकुछ लुफ़्त पर्याय हो रहेअब आ रही …

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कवित्त भाग – आठ

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM कवित्त भाग – आठ अकस्मात् अँसुवानाअंबुनिधि – सीअकत है।अकथ् हैअंशुमाला कीगहना है किन्तुअकरासू को गहनताअकथ्य है।अकर्षण हैअकच्छ कीअकर्मण्यता, अकरास रखनाअकर है।अकरुण, अकरखो अकरणीयसमर्थ है,अउअंशुपति नहींअकिंचितज्ञ हैये अखिल सी अकावआच्छादित है। S. NO. VARUN SINGH GAUTAM 1 एक घड़ी या दो घड़ी…. 2 एक पैग़ाम ( ग़ज़ल ) 3 मैं हूँ निर्विकार …

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कवित्त भाग – सात

VARUN SINGH GAUTAM

तेरे शरीरों की चुम्बन पाने की तड़प सिर्फ शरीर में ही है कहां बिखेरे ! कहां उड़ेले ! बस विपरीत नफ़्स चाहत पाने…

कवित्त भाग – छः

VARUN SINGH GAUTAM

कल्पनाओं के पहाड़ों में मैं बोझिल हूँ, मरणासन्न ओर ठुकरा दिया ये महफ़िल भी मैं अब कवित्त भी नहीं…

कवित्त भाग – पांच

VARUN SINGH GAUTAM

मैं प्रेमी तो था, पर अब नहीं क्योंकि आसक्ति है ही नहीं झुरियां तो खिल उठीं है ज्वाला सी बवंडर बनके शरीर भी मेरी फूट…

निःशेष लिए… भाग – एक

VARUN SINGH GAUTAM

हाँ, कोई‌ है मेरे जीवन को सुदृढ़ लिए परिस्थितियां देख मुझे बताती, समझाती भी है सच‌‌ में वो बहुत ही ज्यादा…

कवित्त भाग – चार

VARUN SINGH GAUTAM

लोग छुट जाते समय के मध्यांतर से विरह की अग्नि को क्या कहूं ? बहुत ही ज्यादा तड़पाती है पता है सांत्वना देने के बजाय

इकतीस, December

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM इकतीस, December ये भी दिन साल के आखिरीइकतीस दिसम्बरभोर के आच्छादन हैकुहेलिका दुग्धवत हैशरीर पर थरथरीचुभती मगर किन्तुशोर मचातीस्पर्श मात्र सेरोंगटे खड़े हो जातेमानो ठंड का मौसम हैहाँ, जी ठंड ही है। पिता मेरे पाणिग्रहण कोचिन्ता भविष्यद के लिएचरम के गहराई तलक…मेरी माँ मेरे ममत्व मेंमेरे ले के भोजन बना रहीक्योंकि …

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कशिश

कशिश

कशिश By- VARUN SINGH GAUTAM परिस्थितियां कुछ भी होख्वाहिशें पूरी हो ही जातीजो मस्तिष्क के लकीरों मेंउत्कीर्णित बिछी हुई रहती उत्कृश्ट को कहो क्या ?क्यारी भी नीर के प्यासे हैंआकृति तो आकर्षणों मेंलिपटीं रहती गुड़ चिऊँटी सी मानता हूँ मैं रहूं या नहींपर अंतर्ध्यान हो जाऊंपर कोई है द्वन्द्व को, संघर्ष कोसंयोग बनता नहीं किसी …

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SCIENCE KA MAHAKUMBH 2022 TOPPER LIST

SCIENCE KA MAHAKUMBH 2022 TOPPER LIST

SCIENCE KA MAHAKUMBH 2022 TOPPER LIST हमारी वेबसाइट “Science ka Mahakumbh” में आपका स्वागत है। जिनका भी परिणाम 2022 मे सबसे ज्यादा बार 80+% आया है । उन सभी का नाम इस सूची में है। आप सभी को ढेर सारी शुभकामनायें। इसी प्रकार मन लगाकर पढ़ते रहे । हमारी वेबसाइट sciencekamahakumbh.com अपने परिवार और दोस्तों …

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स्पन्दन

स्पन्दन By- VARUN SINGH GAUTAM एक स्पन्दन की टूटी सांसें,पर प्रस्फुटन हो फिर चकाचौंध मेंउसकी स्मृतिचिह्नों के कदम ताल परकौन धराधर ओ लताएं बैरीकरें इसे हर कोई दंडवतरह रह इसे प्रणाम। अस्तित्व के न्यौछावर मेंएक भी बचा किसे जगहारतत्पुरुष के प्रतिक्षा मेंसाध्वी प्रज्ञा के प्रज्ज्वलित केकिसे करें संस्कार, सद्भाव ? ये मंत्र है उन दिग्गजों …

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मेरी सम्पूर्ण

मेरी सम्पूर्ण By- VARUN SINGH GAUTAM तुम्हारे पीछे की ओट सेतुम्हें मैं खुद में पाता हूंसमर्पण लिए सशरीरएक बार समिलन कोनव्य सृजन सृष्टि कोलूं थाम, करूं प्रस्फुटनजिसमें मैं तू को‌ लूं पातुम्हारे आँखों के कजरबन तुझमें ही लूं समातू ही दुनिया तू ही चाहतू ही अश्रु मेरी परिपूर्णतेरे पैरों को स्पर्श मात्र सेतन झन झन …

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गाँव की शामें

गाँव की शामें By- VARUN SINGH GAUTAM गाँव की शामेंझोंपड़ीनुमा आकृतियाँमोनू के घर कीशान्त वातावरणगऊ, भैंस गाछी सेचरके लौटती घर कोढ़लान से आती वोबथान कोबगल में नीम का पेड़लम्बे-लम्बे, ऊंचे-ऊंचेसामने तालाब के पानीबतख तैर रहेमुन्नी मटका लिएपानी केभोजन बनाने जातेघर को। किसी के घर सेउठती ऊपर नभ ओरचूल्हे के धूँआआकृति बनाती विशेषखुसबू आती घर सेलिट्टी-पकौड़े …

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ये अन्धेरी रात

ये अन्धेरी रात By- VARUN SINGH GAUTAM ये अन्धेरी रातमायूसी – सीचुपचाप कोने मेंचित्कार कर रहीपुकार रही मानोंजैसे हो बचाने कोपर कोई नहींसिर्फ दिख रहें इनकेआंशू की तेज धारआंखों से गालों तकरो‌-रो के बस भर रहेक्यों!इसे पेड़ काट रहेया काले-काले मंडरातेविषदूषित रातभरी-भरी सभा में येअपना दुखड़ा हृदयों मेंछिपाएं ख़ुश हैकोई जानने को हैइच्छुक या अपनत्वक्यों …

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