VARUN SINGH GAUTAM KAVITA

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- उपमान तुम्हें किस नाम की उपमा दूँ ?हिन्द महासागर गहराइयों का प्रेमजिसके स्रोतस्विनी पाकरवहीं, प्रशांत महासागर तुम होबताओं, सिन्धु नदी कीलहरियाँ, हिलोरें आदि सबअब किस श्रेणी में बहती हो तुम ?जिन्होंने तुमसे प्रेम किया थावह अरब सागर कहाँ है!वह सागर जिन्होंने मेसोपोटामिया, हड़प्पासभ्यताओं का एकमात्र साक्षी हैहाँ, एकमात्र साक्षी!जिसकी …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- प्रेम की संज्ञा तुम थी मैंने तुमको देखा जब जबअपने संघर्षों के आगेतेरी मान-मर्यादा, सादगी, समर्पण, रूप-गुण मेंतुमसे कम थाकिन्तु हाँ , मेरा प्रेम असीम थाब्रह्माण्ड में सबसे सुन्दर की जो प्रतिमान हैउसकी संज्ञा तुम थीइसलिए मैं तुमसे दूर थाक्योंकि सबकुछ में मैं तुमसे कम थापर आज मैं नहीं …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- महफ़िल भी जल उठी चल दिया अंतिम बेला तट के यहाँमहफ़िल भी जल उठी पन्नग व्याल मेंअधम लहू दृग धो रही चिरते – चिरते चिर कोअवपात मै , चाल भी मेरे कच्छप के… कारुण्य दामिनी प्रवात के रश्मि आँगन में नहींखोजता नभ पे वों भी मद में पड़ाक्षितिज प्राची …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- बरखा आई घूम – घूम के बरखा आई बूँद – बूँद के करते मृदङ्गबढ़ – बढ़ आँगन के चढ़ते – उतरते बहिरङ्गसङ्गिनी चली बयार की लीन्ही सतरङ्गजल – थल मिलन मिली छूअन हर्षित अनुषङ्गओढ़ घूँघट के दामिनी स्वर में झूम – झूमआती क्षितिज से घूमड़ – घूमड़ घूम – …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- सर्पपाश आलिंगन!ये कोई प्रेमिका का नहींअपितु सर्पपाश हैक्यों ?अकेलापन, अहं, एटीट्यूडपाश कर जकड़ रखी हैजो मुझे बार-बार कौंधता हैजब उससे छिपता हूँतोमेरे देह में भूचाल का नृत्यशोर करने लगता हैफिर वही सर्प पाश मेंदफ़न हो मृत्यु शय्या पर सो जाता हूँ! शीर्षक :- पुतला मैं उस दिन का पुतला …

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देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM देह या मानव ये प्रिय तुम्हारे हृदय के भूगोल मेंखगोलीय कांति हैजो मुझे बार – बार आकर्षित कर रही हैया फिर तुम्हारे देह के भूगोल मेंआखिर कौन इतिहास है!जो बार – बार तुम्हें और ज्यादा ही सौन्दर्य बनाती हैहै प्रिय सच जान लो मैं अपने प्रीत लिएतुम्हें …

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होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM होली आई होली आई होली आईढ़ेर सारी खुशियाँ लायीरङ्गों का त्योहार हैबच्चों का भी हुड़दङ्गकहीं पिचकारी की रङ्ग तोकहीं कीचड़ों की दङ्गजहाँ भी अबीर – गुलाल के सङ्गकहीं ढोल बाजा तोकहीं अंगना की गीत – गानाफाल्गुन की होलीवसन्त की होलीजहाँ खेतों में सरसोंइठलाती हुई गेहूँ की बालियाँआम्र मञ्जरियों …

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दीपावली (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

दीपावली (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

दीपावली (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM दो दीये दिन में जलेदो दीये रातचार चांदनी लगेदो दिन बरसातक्षिति का स्पंदन हैकिरणें बिखेरती प्राची सेप्रतीची भी शरमा गए दोनों दीप-ज्योति सी फैल गएचहुंओर…..!रात में कांति उमंग उत्साह उत्सव हैश्रीराम शरवृष्टि की हुंकार गर्जन हैलंकापति रावण भी थरथरा गये अयोध्या की नगरी सरयू हैकाशी में अस्सी घाटहजार-लाख-करोड़ दीप …

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भारत (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

भारत (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM मैं भी हूं भारत के नागरिक आप आश्चर्य होंगे, किन्तु हूं भूखें नंगे गरीब गंदे में फैले इंसान  मेरे मां बाप भी हैं, दो बच्चें भी बीमारी, आंशू की रक्त बहा‌ रहे जो कचरों के ढ़ेरों में चुनने गए हैं अपनी भविष्य या सुनहरी स्वप्न नहीं! , अपितु फेंके …

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