Varun Singh Gautam

VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- खालीपन अकेला रहता सूर्यजैसे पृथ्वी की चन्द्रमाएँकहोगे! मुझे भी उपमान दोअकेलापन की।मेरे मन की कल्पनाओं की।मेरे वजूद की।मेरे अंतर्रात्मा की काली रात!खौफनाक हैलौटता मेरा खालीपनजिसमें याद आती हैं मेरी माईजिनके भाषा की खड़ी पाई की परिभाषा कीप्रमाणिकता पर बीतता मेरा वसंत का होनापर अब उनके अनुपस्थिति मेंमेरा अकेला रहना …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- मौन जैसे, तुम्हारा टूटनापतझड़ में सूखी पत्तियों का ढ़ेरपके बाल, सफ़ेद, स्थूलकाय का होनाआदमी हैं। यह टूटनायाद दिलाता मशक्कत करताकिसानमेढ़ पर बैठा उम्मीद। जहाँ-तहाँ आम के डालियों मेंमंज़री आनाशादी का लगन भी है, सुनाई दे रही हैनिमंत्रण नहीं है इसलिए मैं तुम्हें पढ़ता हूँ कविता { शमशेर बहादुर सिंह …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- उपमान तुम्हें किस नाम की उपमा दूँ ?हिन्द महासागर गहराइयों का प्रेमजिसके स्रोतस्विनी पाकरवहीं, प्रशांत महासागर तुम होबताओं, सिन्धु नदी कीलहरियाँ, हिलोरें आदि सबअब किस श्रेणी में बहती हो तुम ?जिन्होंने तुमसे प्रेम किया थावह अरब सागर कहाँ है!वह सागर जिन्होंने मेसोपोटामिया, हड़प्पासभ्यताओं का एकमात्र साक्षी हैहाँ, एकमात्र साक्षी!जिसकी …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- प्रेम की संज्ञा तुम थी मैंने तुमको देखा जब जबअपने संघर्षों के आगेतेरी मान-मर्यादा, सादगी, समर्पण, रूप-गुण मेंतुमसे कम थाकिन्तु हाँ , मेरा प्रेम असीम थाब्रह्माण्ड में सबसे सुन्दर की जो प्रतिमान हैउसकी संज्ञा तुम थीइसलिए मैं तुमसे दूर थाक्योंकि सबकुछ में मैं तुमसे कम थापर आज मैं नहीं …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- महफ़िल भी जल उठी चल दिया अंतिम बेला तट के यहाँमहफ़िल भी जल उठी पन्नग व्याल मेंअधम लहू दृग धो रही चिरते – चिरते चिर कोअवपात मै , चाल भी मेरे कच्छप के… कारुण्य दामिनी प्रवात के रश्मि आँगन में नहींखोजता नभ पे वों भी मद में पड़ाक्षितिज प्राची …

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VARUN SINGH GAUTAM KI KAVITA शीर्षक:- बरखा आई घूम – घूम के बरखा आई बूँद – बूँद के करते मृदङ्गबढ़ – बढ़ आँगन के चढ़ते – उतरते बहिरङ्गसङ्गिनी चली बयार की लीन्ही सतरङ्गजल – थल मिलन मिली छूअन हर्षित अनुषङ्गओढ़ घूँघट के दामिनी स्वर में झूम – झूमआती क्षितिज से घूमड़ – घूमड़ घूम – …

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देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

देह या मानव (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM देह या मानव ये प्रिय तुम्हारे हृदय के भूगोल मेंखगोलीय कांति हैजो मुझे बार – बार आकर्षित कर रही हैया फिर तुम्हारे देह के भूगोल मेंआखिर कौन इतिहास है!जो बार – बार तुम्हें और ज्यादा ही सौन्दर्य बनाती हैहै प्रिय सच जान लो मैं अपने प्रीत लिएतुम्हें …

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होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

होली आई (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM होली आई होली आई होली आईढ़ेर सारी खुशियाँ लायीरङ्गों का त्योहार हैबच्चों का भी हुड़दङ्गकहीं पिचकारी की रङ्ग तोकहीं कीचड़ों की दङ्गजहाँ भी अबीर – गुलाल के सङ्गकहीं ढोल बाजा तोकहीं अंगना की गीत – गानाफाल्गुन की होलीवसन्त की होलीजहाँ खेतों में सरसोंइठलाती हुई गेहूँ की बालियाँआम्र मञ्जरियों …

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दीपावली (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

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दीपावली (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM दो दीये दिन में जलेदो दीये रातचार चांदनी लगेदो दिन बरसातक्षिति का स्पंदन हैकिरणें बिखेरती प्राची सेप्रतीची भी शरमा गए दोनों दीप-ज्योति सी फैल गएचहुंओर…..!रात में कांति उमंग उत्साह उत्सव हैश्रीराम शरवृष्टि की हुंकार गर्जन हैलंकापति रावण भी थरथरा गये अयोध्या की नगरी सरयू हैकाशी में अस्सी घाटहजार-लाख-करोड़ दीप …

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भारत (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM

भारत (कविता) By- VARUN SINGH GAUTAM मैं भी हूं भारत के नागरिक आप आश्चर्य होंगे, किन्तु हूं भूखें नंगे गरीब गंदे में फैले इंसान  मेरे मां बाप भी हैं, दो बच्चें भी बीमारी, आंशू की रक्त बहा‌ रहे जो कचरों के ढ़ेरों में चुनने गए हैं अपनी भविष्य या सुनहरी स्वप्न नहीं! , अपितु फेंके …

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गूंज उठी भुवन में

By- VARUN SINGH GAUTAM गूंज उठी भुवन में गूंज उठी भुवन में, ज्योति जली सकल अविनाशीसुर सुर सुरेश्वरी, दसो दिशाओ में तेरी जय जयकारबाधा विध्न को हरण कर , संताप हरे वैष्णवी करूणेश्वरीरास जीवन हंस विहारनी श्वेतकमल कली सृजनहारजय जय जय श्री नारायणी हंसवाहिनी सर्वेश्वरीदिव्य स्वरूपी सुरवन्दिता बिखरे पंचभूत कण – कण मेंरचे कला स्वर …

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बसन्त पंचमी

By- VARUN SINGH GAUTAM बसन्त पंचमी बसन्त पंचमी का महोत्सवचहुंओर फैली खुशियोंत्सवपेड़ों को डालियाँ झूल उठीक्या बच्चें या पक्षियों का खेल !कहीं दूर से देखो बन्धुसुनायी दी कू की अमराईमानो जैसे वो दे रहा…..निमंत्रण ऋतु के ऋतुराज कोसूर्य के देखो ऊपर की किरणेकितने जगमग ज्योति विशालपक्षियों की चहचहाहट गूंज उठीयह किलकारियाँ किस शैशव की !मुरली …

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शारदा माँ

By- VARUN SINGH GAUTAM शारदा माँ बसन्त पंचमी शारदा का महापर्वज्ञान ज्योति जग घर – घर विशालधूप – दीप – अगरबत्ती – फल – मेवापूजा वन्दन करे माँ भवानी के हमवीणा बजी स्वर ध्वनि सा रे ग म पमणि जड़ित माला फेर करें हुँकारपुस्तक ले पढ़ें महाज्ञान का पाठयह लय मधुर – मधुर सरगम सारकभी …

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निःशेष लिए… भाग-2

VARUN SINGH GAUTAM

By- VARUN SINGH GAUTAM निःशेष लिए… भाग-2 हाँ, कोई‌ हैमेरे जीवन को सुदृढ़ लिएपरिस्थितियां देखमुझे बताती, समझाती भी हैसच‌‌ में वोबहुत ही ज्यादा अच्छी हैंइस सफ़र को आनन्द मेंउत्साह भर भर देती हैएक हुँकार लिएसमर शंखनाद कोकृष्ण नहीं पार्थ हैपर कोई हैसशरीर‌ नहीं, है सहृदयदेखूँ तो कैसेपर इसे तईं हैशब्द मात्र कहूँया वर्ण मात्रया सिर्फ …

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