ये अन्धेरी रात

ये अन्धेरी रात By- VARUN SINGH GAUTAM ये अन्धेरी रातमायूसी – सीचुपचाप कोने मेंचित्कार कर रहीपुकार रही मानोंजैसे हो बचाने कोपर कोई नहींसिर्फ दिख रहें इनकेआंशू की तेज धारआंखों से गालों तकरो‌-रो के बस भर रहेक्यों!इसे पेड़ काट रहेया काले-काले मंडरातेविषदूषित रातभरी-भरी सभा में येअपना दुखड़ा हृदयों मेंछिपाएं ख़ुश हैकोई जानने को हैइच्छुक या अपनत्वक्यों …

ये अन्धेरी रात Read More »