कशिश
कशिश By- VARUN SINGH GAUTAM परिस्थितियां कुछ भी होख्वाहिशें पूरी हो ही जातीजो मस्तिष्क के लकीरों मेंउत्कीर्णित बिछी हुई रहती उत्कृश्ट को कहो क्या ?क्यारी भी नीर के प्यासे हैंआकृति तो आकर्षणों मेंलिपटीं रहती गुड़ चिऊँटी सी मानता हूँ मैं रहूं या नहींपर अंतर्ध्यान हो जाऊंपर कोई है द्वन्द्व को, संघर्ष कोसंयोग बनता नहीं किसी …