कवित्त

कवित्त 2

कवित्त 2 By- VARUN SINGH GAUTAM तुम्हारी वासनाओं केतुझे पाने कोतुझमें ही समाना प्रिय मुझे। तुम्हारी शरीर के प्रश्नचिह्न परस्पर्श होने की ख्वाहिशमन‌ में, भावनाओं मेंगंग – सी बहना प्रिय मुझे। बिन्दुत्व मिलन को हैप्रणत्व नव्यसृजन चले ओरमैं और तू संगम कोदो विपरीत शरीर प्रिय मुझे। तू प्रिय मैं तेरी प्रियवरतन्हां गंधर्व इनके कौन!तेरी मेरी …

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कवित्त

कवित्त By- VARUN SINGH GAUTAM एक बात हैहृदयों मेंचाहों मेंपर कैसे कहूं ?मैं खुद-ब-खुदअसमंजसबरकरार इसतलक तकयाद नहींबेकसूर थेहम कभीया अभी-अभी…..!अंतर्द्वंद्व हैईच्छा भीपर पूछूं क्या ?किससे और कहाँकैसे या क्योंकिसके या परन्तुकिसके लिए न….हाँ हाँ हाँ हाँ हाँहैं कौनयाद नहींपर बात हैकसर-सीहै किन्तुरहस्यमयी औरअश्रुपूर्ण ये तलकगहराईयों के तह तक। S. NO. VARUN SINGH GAUTAM 1 एक …

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