रावण को रावण नाम क्यों दिया गया?
एक युग था जिस युग का नाम द्वापर युग था , कहा जाता है कि प्रत्येक युग में भगवान अवतार लेते हैं , और परमात्मा की महिमा का गुणगान करवाते हैं l भगवान प्रत्येक युग में धरती पर इंसान के रूप में जन्म लेते हैं ताकि सत्य की विजय तथा सत्य की राह चलने के लिए राह बताते हैं l भारत एक ऐसा ही देश है जहां भगवान का गढ़ है और हिंदू धर्म में भगवान को अनेक रूपों में पूजते हैं l हिंदू धर्म में भगवान कम से कम 33 करोड़ का अंश माना जाता है l भारत एक ऐसा देश है जो पूरी दुनिया में सबसे अधिक भगवानों की मूर्तियां पाए जाते हैं l
जब द्वापर युग का समय था , विश्रवा नामक एक महर्षि थे , जो अपने जीवन तप तथा पूजा – अर्चना में गुजार रहे थे l एक दिन की बात है , जब महर्षि विश्रवा जंगल में भ्रमण कर रहे थे । तभी दूर में एक बुड्ढी औरत बैठे देखी , तो महर्षि ने उसके पास जाकर कहा ” हे देवी ” आप कौन हैं और यहां आप घनघोर जंगल में आप क्या कर रहे हैं , तो देवी ने उत्तर दिया ” मैं विधि ब्रह्मा हूं ” । यह सुनकर वह हैरान हो गए और बोले नहीं मैं विश्वास नहीं करता अगर आप विधि ब्रह्मा है तो बताइए मेरे भाग्य में क्या लिखा है ? विधि ब्रह्मा ने सब कुछ बताया पर वह उनके बातों पर विश्वास ना करके वहां से चले गए l
कुछ वर्षों बाद जब महर्षि विश्रवा भगवान सूर्य की पूजा करके रास्ते से होते हुए अपने कुटिया लौट रहे थे , लेकिन उसी दौरान दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी अपने वेश-भूषा बदलकर एक कुमारी का रूप धारण करके बीच रास्ते में ही खड़ी थी l जब वहां महर्षि विश्रवा पहुंचे तो देख के एक अत्यंत सुंदर सुशील कुमारी खड़ी है जो अपने चेहरे ढके हुए हैं l यह देखकर महर्षि विश्रवा ने कहा “आप कौन हैं देवी “और इस तरह रास्ते में क्यों खड़ी है उस कुमारी ने कुछ भी नहीं बोला ; फिर महर्षि विश्रवा ने पूछे कि “आपका नाम क्या है देवी ” और ” कहां से आए हैं ” तब उस कुमारी ने रोने लगी तो महर्षि ने उसे चुप होने को कहा और बोले कि क्यों रो रही हो ? कारण तो बताओ ! उस देवी ने कहा कि मेरी कोई नहीं है ” आप मुझसे शादी करोगे ” तभी मैं बताऊंगी l
यह सुनकर महर्षि विश्रवा आश्चर्य में पड़ गए और बोले कि नहीं मेरी शादी हो चुकी है , फिर देवी ने रोने लगी l यह सुनकर और देखकर महर्षि विश्रवा का मन पिघल गया और बोले कि ठीक है मैं तुमसे शादी करूंगा लेकिन अब तो बताओ कि तुम कौन हो और ” कहां से हो “और क्यों रो रही हो ? फिर उस देवी ने कहा कि ठीक है मैं बताऊंगी पहले आप अपना वचन दीजिए l महर्षि ने फिर सोचा और कहां कि मैं वचन देता हूं कि मैं आपसे शादी जरूर करूंगा ; यह कहकर वचन दे दिया तो उस देवी ने कहा – मैं राक्षसराज सुमाली की पुत्री कैकसी हूं और पिताजी का इच्छा है कि मैं आपसे शादी करू ? यह सुनकर और देखकर महर्षि विश्रवा आश्चर्य में पड़ गए और बोले कि तुम्हें अलग वेशभूषा धारण क्यों की और मुझसे शादी करना क्यों चाहती है l
कैकसी ने सारे बातें बताई और महर्षि विश्रवा और कैकसी दोनों कुटिया पहुंच गई और फिर और फिर कुछ दिनों बाद एक अशुभ मुहूर्त में गर्भ धारण कर ली और फिर कुछ महीने बाद महर्षि विश्रवा को कहीं घूमने का मन किया और अच्छा जगह देखने का तो वह कुटिया से निकल ही रहे थे तभी महर्षि विश्रवा की पत्नी कैक्सी पानी लेकर उधर से आ रही थी और फिर बोली कि कहां जा रहे हैं “आप” तो बोले कि बहुत दिन से कहीं यात्रा नही किया तो आज हमे घूमने का मन कर रहा है तो आज जा रहे हैं l तभी विश्रवा की पत्नी बोली कि हम भी चलेंगे आपके साथ तो विश्रवा ने मना किया फिर वह हट करने लगी और जबरदस्ती चलने का आग्रह किया । फिर महर्षि विश्रवा मान गए और बोले ठीक है चलो कुछ देर बाद दोनों ने घूमने निकला और घूमते घूमते इतने दूर चले गए कि वर्तमान समय में मिस्र (eygpt) देश है , जिसका पुराना नाम मिस्त्र है ।
वहां चले गए हालांकि रास्ते में ही शाम हो गया जाते जाते तो दंपति ने निश्चय किया कि आज वन में ही रहेंगे क्योंकि सिर दर्द और रास्ते में आते-आते थक भी गए थे इसीलिए वन में ही ठहर गए । जब सुबह हुआ तो महर्षि विश्रवा ने देखा कि कैकसी सुबह से ही शोर कर रही है और वह मां बनने वाली है ।सूरज निकल ही रहा था तभी वह मां बन गई और चारों तरफ बादल गरजने और हवाएं तेज चलने लगी । कुछ समय बाद बालक का नामकरण के लिए विश्रवा सोच ही रहे थे तभी बादल गरजते समय आकाशवाणी हुए जो कि शिव का रूप था ।
महर्षि विश्रवा को भगवान का भक्त होने के कारण आकाशवाणी से आवाज आई कि इस बालक का नाम परिस्थिति पर रखा जाए तो कुछ समय सोचने के बाद उन्हें याद आया कि आज हमने भगवान सूर्य की जल अर्पित नहीं की क्योंकि उसी समय बालक ने जन्म लिया और मिस्र देश में सूर्य देवता को ” रा ” बोला जाता है तथा वन में जन्म होने के कारण अर्थात उस समय जब वह जंगल में थे और सूर्य भगवान उदय हो रहे थे इसलिए रा+वन = अर्थात रावण नाम दिया गया । बालक का नामकरण रावण होते ही वह अचानक से बड़े हो गए और हंसते , हाहाकार मचाते हुए बालक कहने लगा _ रावण, रावण, रावण, मैं हूं रावण l यह देखकर उनके माता-पिता आश्चर्य हो गए । कुछ दिनों में यात्रा के बाद जब वापस लंका आए तो राक्षसो में खुशी और उनके परिवार सभी हर्ष – उल्लास में थे l
लेखक :- सोनू कृष्णन
कविता लिखने का मन मुझे तब से करने लगा , जब मैं लगभग बारह वर्ष का था। मेरा कविता लिखने का कारण यह भी था की जब मुझे शिक्षक पढ़ाते थे कि लेखक का जन्म इतना ईo में हुआ है , मतलब आज से 200-400 साल पहले हुआ है और हमलोग आज भी उनकी जन्म-मृत्यु के बारे में पढ़ रहे हैं । फिर भी आज उनको याद किया जाता है। तब से मुझे लगने लगा कि मैं भी कविता- कहानी लिखूंगा।
मुझे यह याद है कि मैंने वर्ग प्रथम से लेकर वर्ग तृतीया तक अपने वर्ग में सबसे प्रथम अंक प्राप्त किये थे। उसके बाद जब मैं चौथी कक्षा में था , तब मुझे किसी बच्चे के द्वारा गिराए जाने के कारण मेरा हाथ टूट गया । जिससे मुझे काफी गरीब होने के कारण मेरा जिंदगी और पढ़ाई में नुकसान हुआ। फिर उसके बाद मैं अपने ननिहाल में ही रहकर पढ़ाई करने लगे। वहां पढ़ाई करने के बाद मै अपने कक्षा पांचवी और षष्ठी में द्वितीय अंक से उत्तीर्ण हुए थे ।
इसी दौरान मेरे विद्यालय में कविता प्रतियोगिता भी हुआ था और इसी प्रतियोगिता में मुझे सर्वश्रेष्ठ कविता लिखने के बदले पुरस्कार भी मिला तथा कुछ लब्बज भी कहा गया था। जिससे मैं अतिप्रसन्न होकर मुझे कविता लिखने का भी शौक आ गया ।
फिर कुछ वर्षों के बाद पूरे दुनिया में कोविड-19 नामक बीमारी पूरे देश भर में हाहाकार मचाया हुआ था । इस बीमारी से काफी लोग मर रहे थे , इसी डर की वजह से मुझे भी अपने गांव आना पड़ा था। वहां पर मुझे गरीब परिवार से होने के कारण मुझे अपने जीवन में पैसे का काफी अभाव हुआ तब मैं कक्षा आठवीं में पढ़ाई कर रहा था । पैसा का अभाव होने के कारण मैं कक्षा आठवीं से ही छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाने लगा ।
इसी तरह कुछ महीनों के बाद जब मैं कक्षा नवमी में पहुंचा तो मैंने कविता-कहानी लिखना आरंभ कर दिया । जो भी बच्चों को पढ़ाकर पैसा होता था उसे अपने एक अच्छी जिंदगी बनाने में खर्च करने लगे और अपना जीवन सुधारने में पैसा लगाने लगे। जिसके बाद बहुत कड़ी मेहनत के बाद रात को भी दिन बनाकर अपने जीवन का एक पहला कदम बढ़ाया और तब मैं आखिरकार एक ” नवरवि ” नामक पुस्तक को लिखा ।
यह पुस्तक मेरे जीवन का एक अद्भुत ही स्वर्ण के रूप में रहेगा । यह पुस्तक को लिखने में मैं अपना सारा ज्ञान को लगाया। यह पुस्तक एक विद्यार्थी को प्रेरणा के रूप में काम करेगा ।
इस पुस्तक का नाम ”नवरवि” रखने का पीछे का भी कारण है । यह खुद को मानते हैं कि मैं उगता हुआ सूरज की तरह हूं और जिस तरह सूर्य सभी को भलाई करता है तथा नया दिन के साथ नया संदेश देता है , उसी तरह मैं वर्तमान से भविष्य तक सबको भलाई और शिक्षा देना तथा शिक्षित करने का काम करूंगा ।
सोनू कृष्णन
“कवि काल्पनिक के संबंध से ही कवित्व की रचना करती है।”
सोनू कृष्णन का ‘ नवरवि ‘ नामक पुस्तक सबसे प्रथम पुस्तक है , जो अपने पढ़ाई के साथ-साथ यह पुस्तक को भी लिखे थे । यह पुस्तक के लिए कविता लिखना 20 मई 2022 को शुरूवात किए तथा 16 दिसम्बर 2022 को पूरा हुआ था ।
उनका मानना है कि यह पुस्तक भविष्य के सुनहरा अक्षर पुस्तकों में एक यह भी पुस्तक रहेगा । इस पुस्तक में 101 कविता है , जो प्राकृतिक , प्यार , प्रेरक तथा महापुरुषों पर कविता है ।
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Sonu Krishnan
Writer Sonu Krishnan
Author Sonu Krishnan
Sonu Krishnan Jharkhand
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रावण से जुड़ी हुई यह एक के काल्पनिक कहानी है जिसे पढ़ने के बाद बहुत ही आनंद आएगा यह एक मनोरंजक कहानी है आप सभी पढ़िए और इससे अगर कोई दिक्कत या पूछना हो तो आप सच संपर्क कर सकते हैं इस नंबर पर इस नंबर पर कॉल करने के बाद आप अपना एड्रेस पहले जरूर बताएं 7979779023
Thankyou for support sir
Jai hind