नवरात्रि का पर्व पूरे भारत में श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना की जाती है। माता दुर्गा के 9 रूप होते हैं जिन्हें नवदुर्गा कहा जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 2 अप्रैल से प्रारंभ हो रही है और 10 अप्रैल को इसका समापन हो रहा है।
चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है। इसी दिन घटस्थापना की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए माता को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं।माता ने दाएँ हाथ में त्रिशूल धारण कर रखा है और बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है।
चैत्र नवरात्रि के द्वितीया तिथि पर माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता ने घोर तपस्या की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इस देवी को तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है ।
चैत्र नवरात्रि के तृतीय तिथि पर माता चंद्रघंटा की पूजा की जाती है। इनका वाहन सिंह है। माता के मस्तक पर घंटे के आकार का आधा चन्द्र है। इसीलिए इस देवी को चन्द्रघण्टा कहा गया है। इनके दस हाथ हैं। वे खडग और अन्य अस्त्र-शस्त्र से विभूषित हैं।
चैत्र नवरात्रि के चतुर्थी तिथि पर माता कुष्मांडा की पूजा की जाती है। जब सृष्टि नहीं थी और चारों तरफ अन्धकार ही अन्धकार था, तब माता ने ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इसीलिए इसे सृष्टि की आदिस्वरूपा या आदिशक्ति कहा गया है। इनका वाहन सिंह है। माता की 8 भुजाएँ हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला है।
चैत्र नवरात्रि के पंचमी तिथि पर माता स्कंदमाता की पूजा की जाती है।इनका वाहन सिंह है। माता की चार भुजाएँ हैं। दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कन्द को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।
चैत्र नवरात्रि के षष्ठी तिथि पर माता कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनका वाहन सिंह है।माता की चार भुजाएँ हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। माँ के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है।
चैत्र नवरात्रि के सप्तमी तिथि पर माता कालरात्रि की पूजा की जाती है। माता के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्माण्ड के समान गोल हैं। माँ के बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है।
चैत्र नवरात्रि के अष्टमी तिथि पर माता महागौरी की पूजा की जाती है। इनका वाहन वृषभ है, इसलिए माता को वृषारूढ़ा के नाम से भी जाना जाता हैं। माता की चार भुजाएँ हैं इनके ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा है तथा नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किया हुआ है। ऊपर वाले बाएँ हाथ में डमरू धारण कर रखा है और नीचे वाले हाथ में वर मुद्रा है।
चैत्र नवरात्रि के नवमी तिथि पर माता सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। माता का वाहन सिंह है और कमल पुष्प पर भी आसीन होती हैं। माता के दाहिनी तरफ नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले हाथ में गदा तथा बायीं तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है।
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जय माता दी 🚩🚩🚩